लखनपुर जाने की दोनों सड़क कच्ची

गांव पहुंचने के लिए दो पथ है एक जरजोखा पीडब्लूडी से तो दूसरा लकड़जोरिया पीडबल्यूडी से। विडंबना की दोनों रास्ते आज भी कच्ची सड़क ही हैं। बरसात के दिनों में यह पथ पूरी तरह कीचड़मय हो जाता है।

By JagranEdited By: Publish:Sat, 14 Dec 2019 08:00 AM (IST) Updated:Sat, 14 Dec 2019 08:00 AM (IST)
लखनपुर जाने की दोनों सड़क कच्ची
लखनपुर जाने की दोनों सड़क कच्ची

रोहित कुमार, चिकनियां: जामा प्रखंड मुख्यालय से 12 किमी की दूरी पर एक गांव है लखनपुर। गांव पहुंचने के लिए दो पथ है एक जरजोखा पीडब्लूडी से तो दूसरा लकड़जोरिया पीडबल्यूडी से। विडंबना की दोनों रास्ते आज भी कच्ची सड़क ही हैं। बरसात के दिनों में यह पथ पूरी तरह कीचड़मय हो जाता है। बैलगाड़ी तो कीचड़ में किसी तरह चल जाता है, लेकिन साइकिल और बाइक फिसलने लगता है। यह तो है आवागमन की कहानी। अब रोटी, कपड़ा, रोजगार व स्वास्थ्य सुविधा की बात करते हैं। एक खेती धान की खेती है। अब कुछेक ग्रामीण नकदी खेती में भी लग गए हैं। बात की जाए स्वास्थ्य सुविधा की तो यहां के ग्रामीणों को दो किमी दूर उपस्वास्थ्य केंद्र चिकनियां जाना पड़ता है। गांव में आंगनबाड़ी केंद्र तो है लेकिन भवन नहीं रहने के कारण सेविका अपने घर पर चलाती है। लेकिन विकास की कहानी बताने के लिए यह काफी है पांच वर्ष बीत जाने के बाद भी गांव की सुध लेने के लिए कोई जनप्रतिनिधि नहीं पहुंचते। गांव के चापाकल का पानी गांव की गलियों और सड़क से होकर बहता है जिसके कारण अनचाहे ही लोगों को कीचड़ से सना पैर लेकर घर घुसना पड़ता है। शिक्षा की बात करें तो गांव में एक प्राथमिक विद्यालय है यहां के लोगों को रोजगार के तलाश में पलायन की विवशता है। मिर्धा परिवार के अधिकांश लोग रिक्शा चलाने दुमका जाते हैं। मोहली समाज अपना रोजी के लिए बांस का समान बनाकर हाट बजार में बेचते हैं। और उसी से गुजर बसर करते है।

ग्रामीण सनातन मोहली कहते हैं कि नेताओं कि उदासीनता के चलते गांव का विकास नहीं हुआ है। पिछले चुनाव में नेताजी पक्की पथ बनाने का वादा कर गये थे पांच साल बीत जाने के बाद भी नही बना।

कमलु मोहली कहते हैं कि साठ के पार हो गये हैं लेकिन पेंशन नही मिलता है। गांव में कोई पदाधिकारी नहीं आते हैं।

कुन्ती देवी कहती है कि शौचालय के अभाव मे खुले में शौच को मजबूर हैं। सोख्ता के अभाव मे चापाकल का पानी गांव की गलियों से बहता है।

खुशबु मोहली कहती है कि बाबू यहां रोजगार कहां मिलता है। रोजगार के लिए बाहर जाना पड़ता है।

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