मैदान आवंटित करने की क्या है प्रक्रिया, नहीं बता पा रही जिला परिषद Dhanbad News

राष्ट्रीय चेतना संघ ने 5 मार्च से 14 मार्च तक के लिए जिला परिषद का मैदान आवंटित करने की मांग की थी। यहां मेला लगाया जाना था। लेकिन जिला परिषद अधिकारियों ने उन्हें मेला लगाने नहीं दिया। मैदान दूसरे ग्रुप को आवंटित कर दिया।

By Atul SinghEdited By: Publish:Fri, 30 Apr 2021 04:17 PM (IST) Updated:Fri, 30 Apr 2021 04:17 PM (IST)
मैदान आवंटित करने की क्या है प्रक्रिया, नहीं बता पा रही जिला परिषद Dhanbad News
5 मार्च से 14 मार्च तक के लिए जिला परिषद का मैदान आवंटित करने की मांग की थी। (प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर)

धनबाद, जेएनएन: राष्ट्रीय चेतना संघ ने 5 मार्च से 14 मार्च तक के लिए जिला परिषद का मैदान आवंटित करने की मांग की थी। यहां मेला लगाया जाना था। लेकिन जिला परिषद अधिकारियों ने उन्हें मेला लगाने नहीं दिया। वहीं 12 मार्च से लगने वाले मेला के लिए मैदान दूसरे ग्रुप को आवंटित कर दिया।

इस मामले में जब 5 मार्च को सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत जन सूचना पदाधिकारी से जानकारी मांगी गई तो जिला परिषद अधिकारियों ने कोई जवाब नहीं दिया। गंभीर बात यह है कि 1 महीने तक जवाब का इंतजार करने के बाद भी जब कोई उत्तर नहीं मिला तो प्रश्न कर्ता ने 17 अप्रैल को प्रथम अपीलीय पदाधिकारी के पास आवेदन दिया। 

प्रथम अपीलीय पदाधिकारी ने भी ना तो मामले की कोई सुनवाई की और ना ही जिला परिषद से जवाब ही दिलवाया। आवेदन कर्ता प्रवीण कुमार झा का आरोप है कि जिला परिषद अधिकारियों की ओर से मैदान आवंटन करने में  धांधली की जा रही है। इसका ताजा उदाहरण यह है कि सहारनपुर के एक फर्नीचर निर्माता को मैदान में न सिर्फ फर्नीचर निर्माण बल्कि रहने के लिए टेंट लगाने की भी स्थायी इजाजत दे दी गई है।

मात्र ₹12000 महीना और जीएसटी के एवज में जिला परिषद का पूरा पार्किंग एरिया आज सहारनपुर के फर्नीचर व्यवसाई ने कब्जा कर लिया है। इतना ही नहीं मुख्य द्वार के सामने सड़क पर भी उनका कब्जा है। यहां तक कि मैदान का इलाका जहां बच्चे खेलते थे और अन्य दिनों में मेला लगाया जाता था, उस पर भी टेंट और वर्कशॉप बना लिया गया है।

कुल मिलाकर जिला परिषद मैदान और पार्किंग का आधा इलाका फर्नीचर व्यवसाई ने कब्जा कर रखा है। जिसकी वजह से मेला के दौरान वाहनों के ठहराव और मेला लगाने के कुल क्षेत्रफल में भी कमी आ गई है। मैदान अतिक्रमण का शिकार हो गया। यह कुछ अधिकारियों की मिलीभगत की वजह से हुआ है। यह अधिकारी मनमाने तौर पर संस्थाओं को मेला लगाने की इजाजत देते हैं।

जो उनकी मांग पूरी नहीं कर पाता उन्हें इजाजत नहीं दी जाती। यह गंभीर मसला है। इसे वे राज्य सरकार तक ले जाएंगे। झा के मुताबिक उन्होंने जिला परिषद से सिर्फ यह पूछा था कि जब 5 मार्च से मेला लगने के लिए इजाजत मांगी गयी तो उसे क्यों नहीं दे दिया गया और 12 तारीख से मेरा लगाने की इजाजत दूसरे संस्था को कैसे दे दी गई। मेला लगाने का क्राइटेरिया क्या है।

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