विश्व थैलेसीमिया दिवस: 162 मासूम जान के रक्षक ये अनजान

कोयलांचल में ऐसे 162 बच्चे हैं, जिनकी लिए जिंदगी हर दिन किसी परीक्षा के समान है। इसलिए, क्योंकि ये बच्चे जानलेवा बीमारी थैलेसीमिया से पीड़ित हैं।

By Edited By: Publish:Tue, 08 May 2018 11:21 AM (IST) Updated:Tue, 08 May 2018 12:07 PM (IST)
विश्व थैलेसीमिया दिवस: 162 मासूम जान के रक्षक ये अनजान
विश्व थैलेसीमिया दिवस: 162 मासूम जान के रक्षक ये अनजान

दिनेश कुमार, धनबाद। वे मासूम हैं। महज तीन माह से लेकर 10-12 साल ही है अभी इनकी उम्र। यूं ये उम्र पढ़ने लिखने की मानी जाती है, लेकिन ये बच्चे पढ़ाई का नहीं बल्कि रोज अपनी जिंदगी का इम्तिहान देते हैं। कोयलांचल में ऐसे 162 बच्चे हैं, जिनकी लिए जिंदगी हर दिन किसी परीक्षा के समान है। इसलिए, क्योंकि ये बच्चे जानलेवा बीमारी थैलेसीमिया से पीड़ित हैं। अधिकतर बच्चे आर्थिक रूप से कमजोर परिवार के हैं। उनके परिजन इस बीमारी के इलाज में होने वाले लाखों का खर्च उठाने में बिल्कुल असमर्थ हैं। इस कारण उनकी जिंदगी जाने-अनजाने लोगों के रक्तदान पर टिकी है।

हर महीने-डेढ़ महीने पर इन पीड़ित बच्चों को खून की जरूरत पड़ जाती है। तब शुरू होती है परिजनों की मुश्किल। अपने जिगर के टुकड़ों के लिए उन्हें संबंधित ग्रुप के रक्त का तत्काल इंतजाम करना पड़ता है। समय पर पीड़ितों को रक्त मिल गया तो ठीक नहीं तो मुश्किल भयावह रूप धारण कर लेती है। कोयलांचल में इसके पीड़ितों की संख्या तो दिनोदिन बढ़ती जा रही है पर इसके इलाज की प्रारंभिक व्यवस्था भी यहां नहीं है। ज्यादा से ज्यादा पीड़ितों को रक्त चढ़ाने तक का इंतजाम यहां के अस्पतालों में है। स्थिति ज्यादा बिगड़ने पर पीड़ितों को बाहर के बड़े अस्पतालों की दौड़ लगानी पड़ती है।

जानें, क्या है थैलेसीमिया:

थैलेसीमिया बच्चों को माता-पिता से अनुवाशिक तौर पर मिलने वाला रक्त संबंधी रोग है। इस रोग में शरीर की हीमोग्लोबिन निर्माण प्रक्रिया में गड़बड़ी हो जाती है जिसके कारण रक्तक्षीणता के लक्षण प्रकट होते हैं। इसकी पहचान तीन माह की आयु के बाद ही होता है। बच्चे के शरीर में रक्त की भारी कमी होने लगती है जिसके कारण उसे बार-बार बाहरी खून चढ़ाने की आवश्यकता होती है।

एक पीड़ित को हर साल पड़ती 10 यूनिट खून की आवश्यकता:

थैलेसीमिया से पीड़ित बच्चे को हर साल औसतन 10 यूनिट खून की आवश्यकता पड़ती है। पीड़ित को महीने या फिर डेढ़ महीने के अंतराल में रक्त चढ़ाने की आवश्यकता पड़ जाती है। ऐसा नहीं होने पर उसकी तबीयत बिगड़ जाती है। इलाज और रक्त चढ़ाने के बाद ही उसकी स्थिति में सुधार होती है। रक्त की इतनी आवश्यकता की पूर्ति निकट संबंधी तक नहीं कर पाते। ऐसे में स्वैच्छिक रक्तदाता उनके लिए जीवनदाता साबित होते हैं।

कुल रक्त का 10 फीसद हिस्सा थैलेसीमिया पीड़ितों की जरूरत:

थैलेसीमिया पीड़ितों की बढ़ती संख्या के कारण रक्त की आवश्यकता भी बढ़ रही है। पीएमसीएच ब्लड बैंक में हर साल कुल संग्रहित रक्त का लगभग 10 फीसद हिस्सा थैलेसीमिया पीड़ितों को दिया जाता है। थैलेसीमिया पीड़ितों को बिना किसी शुल्क या डोनर के रक्त देने की व्यवस्था है। पीएमसीएच में हर साल करीब सात से आठ हजार यूनिट रक्त का संग्रह होता है जिसका लगभग 10 फीसद हिस्सा थैलेसीमिया के मरीजों को दे दिया जाता है।

50 बच्चों को रक्तदान-महादान ने लिया गोद:

सामाजिक संस्था रक्तदान महादान ने 50 थैलेसीमिया पीड़ितों को गोद ले रखा है। संस्था के सदस्य आवश्यकता पड़ने पर न सिर्फ इन बच्चों के लिए रक्त का इंतजाम करते हैं बल्कि उनका उपचार कराने में भी सहयोग करते हैं। संस्था के अंकित राजगढि़या कहते हैं कि थैलेसीमिया से लड़ाई के लिए लोगों को बढ़ चढ़कर रक्तदान करना चाहिए। जरूरतमंदों को खून देने में कोयलांचल के आम लोग भी पीछे नहीं है। यहां के सिर्फ स्वैच्छिक रक्तदाता हर साल करीब पांच हजार यूनिट रक्तदान करते हैं। वह भी सिर्फ एक पीएमसीएच ब्लड बैंक में। इस रक्तदान से हजारों लोगों को नई जिंदगी मिलती है। उनमें ये 162 मासूम बच्चे बच्चे भी शामिल हैं।

390 बार चढ़ा खून, लेकिन उफान पर जीने का जुनून:

काफी सारे लोग छोटी छोटी तकलीफों से हार मान जाते हैं। ऐसे लोगों के लिए बोकारो की रहने वाली अमृता किसी मिसाल से कम नहीं है। अमृता अपने मां-पिता की इकलौती बेटी है। अभी वह 24 वर्ष की है। जब वह महज 5 महीने की थी तभी परिजनों को पता चल गया था कि वह दुनिया की बेहद गंभीर बीमारी थैलेसीमिया से पीड़ित है। अभिभावकों ने इसके बावजूद हिम्मत नहीं हारी और उसका इलाज कराते रहे। हफ्ते दर हफ्ते अमृता को ब्लड चढ़ता। इधर अमृता ने अपनी पढ़ाई भी जारी रखी। अमृता ने 2015 में ग्रेजुएशन किया और फि लहाल एक कंपनी में काम कर रही है। वह खुद अपने इलाज का खर्च उठाती है। अमृता को बचपन से अब तक करीब 390 यूनिट ब्लड चढ़ चुका है।

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