Giridih: बांस के सहारे जीवन की ऊंचाइयां छू रही आधी आबादी, फुलजोरी गांव की 30 महिलाओं ने खुद गढ़ा मुकद्दर,

गिरिडीह का फुलजोरी गांव। गांव की 30 दलित महिलाओं ने खुद अपना मुकद्दर गढ़ा है। जीवन की ऊंचाइयों को वे बांस के सहारे छू रही हैं। जी हां पर अपने हाथों की कला बिखेर ऐसी सामग्रियां बना रही हैं कि जो देखता बेसाख्ता कह उठता वाह।

By MritunjayEdited By: Publish:Mon, 19 Jul 2021 11:53 AM (IST) Updated:Mon, 19 Jul 2021 11:53 AM (IST)
Giridih: बांस के सहारे जीवन की ऊंचाइयां छू रही आधी आबादी, फुलजोरी गांव की 30 महिलाओं ने खुद गढ़ा मुकद्दर,
गिरिडीह की महिलाएं बांस उत्पाद से अच्छी कमाई कर रहीं ( फाइल फोटो)।

ज्ञान ज्योति, गिरिडीह। गिरिडीह का फुलजोरी गांव। गांव की 30 दलित महिलाओं ने खुद अपना मुकद्दर गढ़ा है। जीवन की ऊंचाइयों को वे बांस के सहारे छू रही हैं। जी हां, पर अपने हाथों की कला बिखेर ऐसी सामग्रियां बना रही हैं कि जो देखता, बेसाख्ता कह उठता वाह। इन सामग्रियों की गिरिडीह से लेकर रांची, जमशेदपुर समेत कई शहरों में मांग हो रही है। हर महिला आराम से हर माह दस हजार से अधिक आय कर रही है। मन में सुकून भी कि वे अपने परिवार का अर्थतंत्र सुधारने में भूमिका अदा कर रही हैं। सभी महली समुदाय की महिलाएं हैंं। बांस पर कारीगरी दिखाना इनका पुश्तैनी काम है। मगर पहले वे सिर्फ सूप, टोकरी, डलिया बनाकर बेचती थीं। मगर आशातीत आय नहीं हो पाती थी। इस बीच नाबार्ड के सहयोग से लााइवलीहुड इंटरप्राइजेज डेवलपमेंट प्रोग्राम के तहत प्रगति केंद्र में इनको 15 दिन बांस हस्तशिल्प का प्रशिक्षण दिया गया। इससे इनकी कला में निखार आया। परंपरागत पेशे में आधुनिकता का समावेश हुआ तो बांस से खूबसूरत डलिया, पेड़, ट्रे, पेन स्टैंड, पंखा, गुलदस्ता, सजावटी झोपड़ी बना रही हैं।

यूं की पूंजी की व्यवस्था

ये महिलाएं स्वयं सहायता समूह से जुड़ी हैं। अपने जमा किए गए पैसों से आपस में लेनदेन कर एक पूंजी बनाई थी। उसी से थोक में बांस खरीदकर कारोबार शुरू किया।

हाथों हाथ बिक जाते उत्पाद

इनको बांस निर्मित सामग्रियां बेचने की ङ्क्षचता नहीं रहती। कच्चे माल के लिए परेशान नहीं होना पड़ता है। गांव के चार लड़कों को इसकी जिम्मेवारी दी है। वे कच्चा माल लाकर देते हैं। तैयार सामग्री गिरिडीह, जमशेदपुर, देवघर व रांची ले जाकर बड़े व्यवसायियों को उचित कीमत पर देते हैं। हर युवक को इससे पांच हजार रुपये तक प्रतिमाह आय हो जाती है। प्रतिमाह 15 लाख रुपये की बांस निर्मित सामग्रियों की बिक्री हो जाती है। आमदनी बढऩे से महिलाओं को गर्व है कि घर में वे समृद्धि लाने में सफल हुईं।

प्रशिक्षण ने तराश दी कला, मिलता वाजिब दाम

एक समय था जब व्यापारी गांव आकर औने-पौने दाम में सामान खरीदकर ले जाते थे। इससे आशातीत लाभ नहीं होता था। अब गांव में व्यापारियों को सामान नहीं बेचा जाता। चारों युवक सामान लेकर बाहर जाते हैं व बिक्री करते हैं। बांस से सामग्री बनाने वाली शोभा देवी, मेनवा देवी, मीना देवी, चमेली देवी, लक्ष्मी कुमारी ने बताया कि प्रशिक्षण पाकर हमारी कला और समृद्ध हो गई। नई चीजें भी हम प्रयोग के तौर पर बनाते हैं। पहले महीने में बमुश्किल तीन हजार रुपये कमाते थे, अब 10 से 12 हजार तक आमदनी आराम से हो रही है।

30 महिलाओं को प्रशिक्षण दिया है, इससे कला निखर गई, वे हुनरमंद बनीं। वे बांस से सजावटी सामग्री बना रही हैं। उन्हें नाबार्ड के क्षेत्रीय कार्यालय से जोड़ दिया गया है। वहां भी उनकी बनाई सामग्री क्रय होती है।

आशुतोष प्रकाश, डीडीएम, नाबार्ड

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