बकरी पालन में ऐसी रमी कि भूल गई अपना देस

संजय सिंह निरसा नेपाल से आकर निरसा में रह रही माया देवी लगभग 31 वर्षों से बकरी पालन कर

By JagranEdited By: Publish:Wed, 05 May 2021 06:15 PM (IST) Updated:Wed, 05 May 2021 06:15 PM (IST)
बकरी पालन में ऐसी रमी कि भूल गई अपना देस
बकरी पालन में ऐसी रमी कि भूल गई अपना देस

संजय सिंह, निरसा : नेपाल से आकर निरसा में रह रही माया देवी लगभग 31 वर्षों से बकरी पालन कर स्वयं आत्मनिर्भर बनी है। अन्य लोगों को भी बकरी पालन के लिए प्रेरित कर रही है। इसके यहां वर्तमान समय में बड़े से लेकर छोटी लगभग 55 बकरियां हैं। इसमें उन्नत किस्म की बकरियां बीटल, सिरोही, बोर व जमुनापारी शामिल है। बकरी पालन कर माया देवी प्रतिमाह 25000 रुपए कमा रही है। माया देवी ने बताया कि उसकी शादी नेपाल में राम बहादुर सिंह के साथ हुई थी। उसके बड़े भाई सीताराम निरसा कोलियरी में काम करते थे। 1987 में मेरे पति व मुझे साथ लेकर निरसा आए। मेरे पति को पेट्रोल पंप में काम पर लगा दिया। मैं घर में अकेली रहती थी। आस पड़ोस के लोगों की भाषा व रहन सहन हम लोगों से बिल्कुल अलग था । पति काम पर चले जाते थे। दिन भर में घर में अकेले रहती थी। मैंने अपने पति से कहा कि मुझे यहां मन नहीं लगता है। मुझे नेपाल पहुंचा दो या तो मुझे बकरी ला दो। उससे मेरा समय आसानी से गुजर जाएगा। मेरे पति व बड़े भाई ने वर्ष 1990 में एक बकरी ला दिया। अपना मन लगाने के लिए बकरी पालन शुरू किया। एक बकरी से बाद में लगभग 20 बकरियां हो गई। मैंने बकरियों की बिक्री शुरू की जिससे अच्छी आमदनी होने लगी। इसके बाद मेरा मन बकरी पालन में ही रम गया।

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वर्ष 2011 में उन्नत प्रजाति की बकरियों से की थी शुरुआत

माया देवी ने बताया कि वर्ष 2011 में निरसा में प्रखंड पशुपालन पदाधिकारी के पद पर डॉक्टर श्रीनिवास सिंह आए। मैं बकरियों की दवा लेने वहां आया-जाया करती थी। उन्होंने मेरी लगन को देखकर मुझसे कहा कि उन्नत किस्म की बकरियों का पालन करें। उसके बाद मैंने पंजाब से बिटल प्रजाति, राजस्थान से सिरोही प्रजाति, उत्तर प्रदेश से जमुनापारी प्रजाति की बकरियां मंगवाई तथा उसका पालन शुरू किया। बकरी पालन का पूर्व से अनुभव था इसलिए ज्यादा परेशानी नहीं हुई। उन्नत किस्म की बकरियां लाने के बाद मुझे फायदा भी ज्यादा होने लगा। डॉक्टर श्रीनिवास सिंह के जाने के बाद प्रखंड पशुपालन पदाधिकारी के रूप में डॉक्टर संतोष कुमार आए। उन्होंने भी मुझे बकरी पालन के लिए हमेशा प्रोत्साहित किया और बकरियों को बीमारी ना हो इसके लिए स्वयं आकर उनका इलाज करते हैं। उन दोनों के कारण आज मेरे पास देश में पाई जाने वाली सभी उन्नत प्रजाति की बकरियां मौजूद हैं।

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दूर-दराज से नस्ल बदलवाने के लिए आते लोग

माया देवी ने बताया कि मेरे यहां उतना प्रजाति के बकरे हैं। इसके कारण धनबाद एवं दूर-दराज से लोग मेरे यहां अपनी बकरियों की नस्ल बदलने के लिए क्रॉसब्रिड करवाने पहुंचते हैं। उन्नत किस्म के बकरों से क्रॉसब्रीड करवाने के एवज में मैं 500 रुपये लेती हूं।

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30 से 40 हजार रुपये में बिकता एक से डेढ़ वर्ष का बकरा

उन्होंने बताया कि उन्नत प्रजाति का बकरा एक से डेढ़ वर्ष में 40 000 में आसानी से बिक जाता है। इतने सालों में ज्यादातर लोग हमलोगों को जान गए हैं, इसलिए वह मेरे घर से आकर ही खरीदारी कर जाते हैं। पूजा पर्व के समय बिक्री ज्यादा होती है। 4 माह की उन्नत प्रजाति की बकरी की बिक्री दस हजार रुपए तक में हो जाती है। हम लोग बकरी बेचकर प्रतिमाह लगभग 25000 कमा लेते हैं।

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पांच वर्ष से पति भी कर रहे बकरी पालन में मदद

माया देवी के पति राम बहादुर सिंह भी 5 वर्षों से पेट्रोल पंप का काम छोड़कर पूरी तरह पत्नी के साथ बकरी पालन में रम गए हैं। बकरियों के लिए लगभग पांच किलोमीटर दूर जाकर प्रतिदिन हरी पत्तियां लाना, उन्हें समय पर भोजन व पानी देने में पत्नी का हाथ बंटा रहे हैं। पति-पत्नी दोनों पूरी तरह बकरी पालन में लगे हैं।

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