ये क्या भाई, एसीबी के पीछे सीबीआइ; पढ़ें स्वास्थ्य घोटाले की जांच की कहानी

कोरोना काल में पूरा अमला वायरस को काबू करने में लगा है। सफलता भी मिल रही पर यह क्या? कोरोना वायरस पस्त होने लगा तो इंसानों का वफादार साथी (कुत्ता) बेकाबू हो झपट रहा है। अब वह ठहरा साथी तो उसकी गुर्राहट को हल्के में लिया।

By MritunjayEdited By: Publish:Sat, 19 Jun 2021 09:34 AM (IST) Updated:Sat, 19 Jun 2021 09:34 AM (IST)
ये क्या भाई, एसीबी के पीछे सीबीआइ; पढ़ें स्वास्थ्य घोटाले की जांच की कहानी
भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो और केंद्रीय जांच ब्यूरो ( सांकेतिक फोटो)।

धनबाद [ दिनेश कुमार]।  स्वास्थ्य विभाग में घोटाला हुआ। सात करोड़ का। इतनी बड़ी रकम का खेल हुआ तो खिलाड़ी भी शातिर होंगे। मगर जांच करने वालों को यह बात समझ नहीं आई। बेचारा छुटकऊ (संविदा कर्मी) लपेटे में आया। उस पर प्राथमिकी दर्ज हुई। मामला कोर्ट पहुंचा तो पहली नजर में न्यायाधीश महोदय भांप गए। खेल हुआ, मगर बड़कऊ कैसे बच गए। सो, भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) पर कड़ी टिप्पणी की। आश्चर्य जताया कि सात करोड़ की गड़बड़ी और प्राथमिकी सिर्फ एक पर। लगता है बड़ों को बचाने का इंतजाम है। उनकी भूमिका की जांच क्यों नहीं। यह भी कहा कि एसीबी की जांच सही नहीं पाई गई तो उसके खिलाफ सीबीआइ जांच हो सकती है। कोर्ट का रुख देख खिलाडिय़ों के पांव कांप रहे हैं। न जाने कब नंबर आ जाए। जनता भी कह रही, अब आया ऊंट पहाड़ के नीचे।

वायरस पस्त, वफादार बेकाबू

कोरोना काल में पूरा अमला वायरस को काबू करने में लगा है। सफलता भी मिल रही, पर यह क्या? कोरोना वायरस पस्त होने लगा तो इंसानों का वफादार साथी (कुत्ता) बेकाबू हो झपट रहा है। अब वह ठहरा साथी तो उसकी गुर्राहट को हल्के में लिया। मगर वह हमला करने लगा। चार दिनों में 168 लोगों को अस्पताल का दरवाजा दिखा दिया। कई को तो ऐसा भंभोड़ा कि टांके लगवाने पड़े। इतने लोग तो 10 दिन में कोरोना से संक्रमित होकर अस्पताल नहीं पहुंचे थे। शहर से लेकर गांव तक दौड़ा रहा है। आलम ये है कि अनलॉक होने के बाद उसके खौफ से लोग बाहर निकलने से बच रहे हैं। रात बिरात जो आते हैं वे तो डंडा लेकर चल रहे। हाकिम जागे हैं, आमजन भी साथी को दोस्ती का हवाला दे पुचकार रहे हैं। अब देखना है, साथी कैसे काबू में आता है।

नेताजी के भौकाल पर पानी

सत्तारूढ़ पार्टी वाले नेताजी का तगड़ा भौकाल है। जहां से निकलते हैं, दो चार जीहुजूरी में लग जाते हैं। ठसक भी बढ़ गई है। इधर, कोरोना ने ऐसा रंग दिखाया कि सभी टीका-टीका रट रहे हैं। गुरुवार सुबह नेताजी ने तय किया कि शागिर्दों का टीकाकरण हो जाए। सबको लेकर पहुंचे रेडक्रॉस सोसाइटी केंद्र। कर्ॢमयों को देख बोले, जरा सबको अच्छा वाला टीका लगाओ। कॢमयों ने पूछा आप कौन, नेताजी का पारा चढ़ गया, बोले नहीं जानते। नए हो का, नेता हूं। कर्मी बोले, हम का करें, नियम तोड़ दें। चलो निकल लो। नहीं लगेगा टीका। 40 वाले को 45 पार बता रहे, शर्म करो। नेताजी भड़क गए। मंत्री-अफसरों की दुहाई दी। बस कॢमयों का और पारा चढ़ गया। बोले, उनसे ही लगवा लो ना जाकर। हम तो ना लगाएंगे। नेताजी के भौकाल पर ऐसा पानी फिरा कि बेआबरू होकर कूचे से निकल लिए।

ना-ना बख्श दो, नहीं चाहिए कुर्सी

बीसीसीएल का केंद्रीय अस्पताल। 525 बेड वाला यह चिकित्सालय बिना सीएमएस चल रहा है। इस स्तर के दो चिकित्सा पदाधिकारी बीसीसीएल के पास हैं। एक डॉ. मुक्ता साहा मुख्यालय में स्वास्थ्य विभाग की अध्यक्ष, तो दूसरेे डॉ. एके गुप्ता नेत्र रोग विभाग के अध्यक्ष हैं। डॉ. गुप्ता सीएमएस बने थे। मगर कोविड-19 ड्यूटी में प्रशासन से छत्तीस का आंकड़ा बना बैठे। सो, पद छोड़ना पड़ा। तब प्रबंधन ने कई वरीय चिकित्सकों से पद संभालने का आग्रह किया। मगर दूध का जला छाछ फूंक फूंक कर पीता है। सो, आठ चिकित्सकों के इन्कार कर दिया। उनकी हिम्मत न हुई सीएमएस की कुर्सी पर बैठने की। तब सीएमओ डॉ. आरके ठाकुर को प्रभार दिया गया। हाल में कई पदोन्नति हुई, पर अस्पताल को सीएमएस नहीं मिला। डॉ. साहा इस माह व डॉ. गुप्ता दिसंबर में सेवानिवृत्त होंगे। तब क्या होगा? क्या पूरा महकमा प्रभार पर चलेगा।

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