चिड़ियों संग मैं बाज लड़ाऊं, तभी गोबिंद सिंह नाम कहा हूं...

चिड़ियों संग में बाज लड़ाऊं। गीदड़ों को मैं शेर बनाऊं। तभी गोबिंद सिंह नाम कहा हूं...।सिख धर्मवालंबियों के दसवें गुरु सरबंसदानी श्री गुरु गोबिंद सिंह का 354वां प्रकाश दिहाड़ा (प्रकाशोत्सव) बुधवार को कोयलांचल में श्रद्धाभाव व उल्लास के साथ मनाया गया।

By Atul SinghEdited By: Publish:Wed, 20 Jan 2021 05:55 PM (IST) Updated:Wed, 20 Jan 2021 06:08 PM (IST)
चिड़ियों संग मैं बाज लड़ाऊं, तभी गोबिंद सिंह नाम कहा हूं...
चिड़ियों संग में बाज लड़ाऊं। गीदड़ों को मैं शेर बनाऊं। तभी गोबिंद सिंह नाम कहा हूं। (प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर)

धनबाद, जेएनएन: चिड़ियों संग में बाज लड़ाऊं। गीदड़ों को मैं शेर बनाऊं। तभी गोबिंद सिंह नाम कहा हूं...।सिख धर्मवालंबियों के दसवें गुरु सरबंसदानी श्री गुरु गोबिंद सिंह का 354वां प्रकाश दिहाड़ा (प्रकाशोत्सव) बुधवार को कोयलांचल में श्रद्धाभाव व उल्लास के साथ मनाया गया। बड़ा गुरुद्वारा में अवतार दिवस को लेकर विशेष समागम गुरुद्वारा मैदान में सुसज्जित पंडाल में सजाया गया। यहां जागती जोत श्री गुरुग्रंथ साहिब का प्रकाश सम्मान के साथ किया गया। कोयलांचल की हजारों संगत अपने गुरु के सन्मुख नतमस्तक हुई। इससे पूर्व सुबह में एक जनवरी से चल रहे सहज पाठ का भोग पड़ा। उसके बाद पंडाल में कीर्तन दरबार का आगाज हुआ। हजूरी रागी भाई दवेंद्र सिंह निरोल, स्थनक बच्चों ने भी गुरवाणी कीर्तन कर संगत को निहाल किय। दोपहर ढाई बजे तक समागम सजे। संगत गुरु भक्ति में लीन रही। अंत में अरदास हुई और संगत के बीच कड़ाह प्रसाद का वितरण भी किया गया।

शाम को भी दीवान में भरी हाजरी

अवतार दिवस के मौके पर शाम की पाली में भी संगत ने गुरुद्वारा दरबार में हाजरियां भरी। सोदर रहिरास साहिब के पाठ उपरांत दीवान में संगत गुरु के उपदेशों से निहाल हुई। देर रात तक संगत सेवा भाव में जुटी रही।

सुती कौम नूं जगा के सुता कंडिया ते....

विशेष समागम में संगत को निहाल करने पंजाब के अमृतसर से कवि भाई अवतार सिंह तारी और बलबीर सिंह कमल ने संगत को दर्शन दिए। उन्होंने कविता के माध्यम से संगत में गुरु के सिंह सजने का जोश भरा। गुरु गोबिंद सिंह के इतिहास से रू-ब-रू कराया। कवि अवतार सिंह तारी ने राही कोई प्रीत दीयां मंजलां दा, एदां मंजल मुकाम वेखया न। हंसा जेहे प्यासे पुत्रा नूं, मुंह मौत से पौंदा वेखया ना। पैर-पैर ते राज नूं मार ठोकर हीरा लाल लुहावदां वेखया ना, पिता कोई वी पुत दी लाश उते, गीत खुशी दे गावंदयां वेखया ना...की सुरीली अंदाज में हुंकार भरी। वहीं भाई कमल ने वेखो बदली पलां च किवें समय ने नोहार, किवें हुक्म वजाया मेरी सच्ची सरकार। फिर गढ़ी चमकौर दी त्याग ती दातार। पिछले मुगलां दी फौत उतरे रात सुनसान, सुती कौम नूं जगा के सूता कंडया ते...कविता के माध्यम से संगत को बताया कि जब चमकौर की गली में जंग हुई तो भाई दया सिंह गुरु से कहा कि आप चले जाएं। तब गुरु ने संगत सिंह के शीश में कलगी सजा के चमकौर छोड़ी। आपको बता दें कि कवि तारी गत 1985 से लगातार कोयलांचल की सिख संगत को गुरु इतिहास से जोड़ने के लिए आ रहे हैं।

पांच हजार लोगों ने ग्रहण किया गुरु का अटूट लंगर

प्रकाश दिहाड़े पर आयोजित समागम में बड़ा गुरुद्वारा में गुरु का अटूट लंगर भी तैयार किया गया। इस दौरान कोयलांचल की संगत समेत अन्य समाज के लोगों ने लंगर ग्रहण किया। करीब पांच हजार लोगों के लिए लंगर की व्यवस्था की गई थी।

:: इनका रहा सहयोग

 सदस्य राजेंद्र सिंह चाहल, तेजपाल सिंह, इंद्रजीत सिंह टॉक, तीर्थ सिंह, गुरजीत सिंह, जगजीत सिंह, दरबारा सिंह, गुरचरण सिंह माजा, दिलजॉन सिंह, देवेंद्र सिंह गिल, सतपाल सिंह ब्रोका, राजेंद्र सिंह समेत स्त्री सत्संग सभा, नौजनाव सभा के सदस्य।

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