Jharkhand Politics: रांची-देवघर इंटरसिटी के साथ रेल ने किया खेल, अब क्या करेंगे दुबे बाबा

Jharkhand Politics देवघर से रांची जानेवाली इंटर सिटी को अपनी सूची से ही गायब कर दिया। पूर्व रेलवे से परिचालन शुरू करने के लिए जो 218 ट्रेनों की सूची जारी हुई उसमें इस ट्रेन का उल्लेख नहीं है। बाबा मानने वाले नहीं है। कुछ तो होगा ही।

By MritunjayEdited By: Publish:Sun, 05 Dec 2021 07:48 AM (IST) Updated:Sun, 05 Dec 2021 08:31 AM (IST)
Jharkhand Politics: रांची-देवघर इंटरसिटी के साथ रेल ने किया खेल, अब क्या करेंगे दुबे बाबा
गोड्डा सांसद निशिकांत दुबे ( फाइल फोटो)।

तापस बनर्जी, धनबाद। नई ट्रेन चलवाने में निशिकांत दुबे बाबा का कोई जवाब नहीं है। हावड़ा-दुरंतो को जसीडीह वाले रूट से चलवाना हो या भागलपुर तक जानेवाली ट्रेन के पहिए को गोड्डा तक बढ़ाना हो, बाबा अपनी बात मनवा ही लेते हैं। बीते सितंबर में संताल को एक साथ पांच ट्रेनों का तोहफा देने वाले भी वही हैं। बाबा नगरी को गुजरात और महाराष्ट्र की सीधी ट्रेन मिल गई। धनबाद, बोकारो और रांची वालों को गोवा की सीधी ट्रेन का गिफ्ट भी मिला। रेलवे भी उनके लिए हमेशा तैयार रहती है। पर इस दफा रेलवे ने बाबा के गढ़ में सेंधमारी कर दी। देवघर से रांची जानेवाली इंटर सिटी को अपनी सूची से ही गायब कर दिया। पूर्व रेलवे से परिचालन शुरू करने के लिए जो 218 ट्रेनों की सूची जारी हुई, उसमें इस ट्रेन का उल्लेख नहीं है। बाबा मानने वाले नहीं है। कुछ तो होगा ही।

रेलवे में महिला पर गाज

लगता है कि धनबाद रेल मंडल का इंजीनियरिंग विभाग महिला कर्मचारियों से कुछ ज्यादा ही नाराज चल रहा है। यह हम नहीं, विभाग से निर्गत फरमान कह रहा है। इस विभाग से एक महिला कर्मचारी का स्थानांतरण हो गया। यूं तो सरकारी सेवा काम में स्थानांतरण सामान्य बात है। महिला कर्मचारी को एतराज इस बात पर है कि दो साल में उन्हें तीन बार स्थानांतरण का पत्र थमाया जा चुका है। नाराज महिला कर्मचारी अब आला अधिकारियों तक अपनी व्यथा पहुंचाने का मन बना चुकी है। पूछताछ होना तय है। ऐसी चर्चा है कि महिला ने अपने रांगाटांड़ के जर्जर क्वार्टर को लेकर शिकायत की थी। जब विभाग के अफसर नहीं सुनें तो उन्होंने डीआरएम का भी दरवाजा खटखटा दिया था। उन्हें इसी का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। अब उनके भी उद्धार की बात उठने लगी है जो 20-25 सालों से जमे बैठे हैैं।

अब एंबुलेंस की रकम भी खत्म

आपात हालात में किसी मरीज को अगर रेलवे अस्पताल से दूसरी जगह ले जाना चाहते हैं तो एंबुलेंस की व्यवस्था खुद करनी होगी। रेलवे का एंबुलेंस अभी किसी मरीज को कहीं लेकर नहीं जाएगा। इसमें एंबुलेंस चालक की कोई गलती नहीं है। वह बेचारा क्या करे। मामला रकम का है। एंबुलेंस परिचालन के लिए मिलने वाले रकम पर ब्रेक लग गया है। आठ-दस दिनों से एंबुलेंस के पहिए घूम नहीं रहे हैैं। कब तक नहीं घूमेंगे, कहना भी मुश्किल है। धनबाद से ज्यादा बुरा हाल गोमो का है। कई महीने से एंबुलेंस ही नहीं है। कर्मचारी कह रहे हैं कि लोको शेड वाले संवेदनशील स्टेशन पर एंबुलेंस न होना आपात परिस्थिति में जानलेवा हो सकता है। अगले सप्ताह मुख्यालय से वित्त विभाग के अफसर दौरे पर आ रहे हैं। यह बात उनकी जानकारी में आई तो शायद फंड मिल जाएगा। देखिए, क्या होता है।

इतने दिनों में तो पैदल आ जाता

रेलवे के पार्सल से सामान मंगवाना भी अब झमेले का काम हो गया है। बुक आज कराओ तो सामान महीनों बाद मिलता है। अगर समय पर मिला तो सारा सामान मिलने की गारंटी भी नहीं है। अब आसनसोल के आकाश चावला का उदाहरण ले लीजिए। नौ महीने पहले 26 फरवरी को उन्होंने दिल्ली से आसनसोल के लिए पार्सल बुक कराया था। पार्सल में मोबाइल पार्ट्स थे। उनमें से पांच बाक्स तो मिल गये। छठा बाक्स गायब था। अब उनका बाक्स कहां परिक्रमा कर रहा है, यह तो रेलवे भी जाने। वह खुद नौ महीने से आसनसोल के रेलवे पार्सल की परिक्रमा कर रहे हैं। भाग-दौड़ करने पर भी जब कुछ नहीं हुआ तो आखिरकार डीआरएम को ट्विटर पर संदेश भेजा। अब उन्होंने ढूंढ़वाना शुरू कराया है। आकाश भुनभुना रहे हैैं, जितने दिन लगे हैैं, उतने दिन में कोई पैदल चलकर पार्सल ले आता।

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