Weekly News Roundup Dhanbad: सफेद दाग मिटाने में दामन काला
जिद्दी से जिद्दी सफेद दाग का इलाज चर्म रोग विभाग के विशेषज्ञ डॉक्टर चुटकियों में कर देते हैं। भई करें भी क्यों नहीं। धनबाद के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल एसएनएमएमसीएच के चर्म रोग विभाग के विशेषज्ञ सफेद दाग मिटाते-मिटाते अपने दामन पर ही काला दाग लगा बैठे।
धनबाद, दिनेश कुमार: जिद्दी से जिद्दी सफेद दाग का इलाज चर्म रोग विभाग के विशेषज्ञ डॉक्टर चुटकियों में कर देते हैं। भई, करें भी क्यों नहीं। इतनी पढ़ाई के साथ तगड़ा अनुभव जो हासिल किया है, लेकिन धनबाद के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल एसएनएमएमसीएच के चर्म रोग विभाग के विशेषज्ञ सफेद दाग मिटाते-मिटाते अपने दामन पर ही काला दाग लगा बैठे।
विभाग की दो महिला डॉक्टरों ने ही मोर्चा खोल दिया। दो वरिष्ठ डॉक्टरों पर मानसिक और शारीरिक उत्पीड़न का आरोप जड़ दिया। बोलीं मरीजों से ज्यादा वे उन पर निगाह (बुरी) रखते हैं। तरह-तरह से परेशान करते हैं। नतीजा धनबाद से लेकर रांची तक हड़कंप। जांच शुरू हुई। आरोपित डॉक्टर खुद को पाक साफ बता रहे हैं। सफाई देते हैं-काम के लिए कहने पर आरोप लगाया जा रहा है। इसमें तनिक सच्चाई नहीं। अब देखिए, जांच टीम क्या रिपोर्ट देती है। काला दाग धुलेगा या गहराएगा।
टीके तक टिक जाओ
आखिरकार कोरोना से बचाव का टीका आ गया। पहले चरण में फ्रंट लाइन कोरोना योद्धाओं को टीका लगाया जाएगा। इनमें स्वास्थ्यकर्मी और चिकित्सक शामिल हैं। करीब नौ माह तक इंतजार करना पड़ा। अप्रैल में ही यहां कोरोना का पहला मरीज मिला था। फिर बीमारी का ऐसा प्रकोप बढ़ा कि नए अस्पताल खोलने पड़ गए। स्वास्थ्यर्किमयों ने भी जान दांव पर लगा काम किया। कई खुद संक्रमण के शिकार हो गए। कुछ की जान भी गई। खतरे को देख कई ने नौकरी छोड़ दी तो कई छोड़ने की तैयारी में थे। कोरोना के साथ वेतन कम मिलने का भी गम जो था। तभी खबर आई। बन गया टीका, 16 जनवरी से लगेगा। टीका क्या आया कि इनकी हिम्मत बढ़ गई है। कोरोना के खौफ के कारण जो सेवा छोड़ने की तैयारी में थे, अब टीके तक टिकने की तैयारी में हैं। कहते हैं-पहले जान बचा लें, फिर सोचेंगे।
दम मारो दम, बढ़ गया गम
चोरी करते पकड़ाने, पुलिस को छकाकर भागने और फिर पकड़ाने की यह बड़ी रोमांचक कहानी है। चोरों का गिरोह एसएनएमएमसीएच में गैस पाइपलाइन की सामग्री चोरी करने पहुंचा था। सुरक्षाकर्मी सजग थे, सो एक इम्तियाज को धर लिया। वह दम (नशा) मारकर पहुंचा था। खूब धुनाई हुई। एसएनएमएमसीएच में ही भर्ती कराया गया। खुमारी उतरी तो हाथ में हथकड़ी थी। बस भागने की जुगत में लग गया। निगरानी में तैनात पुलिसकर्मी कुछ ढीले पड़े तो सरक लिया। पुलिस की भद पिटी तो विभाग के पुराने चावलों ने दिमाग लगाया। कहा, छिड़काव से लेकर धुएं तक का लती है। सो अड्डों पर नजरें गड़ा दीं। इम्तियाज तो दम मारने का गुलाम था। तीन-चार दिन में ही अड्डे पर पहुंच गया। धरा गया। अब लाल कोठी में फिल्म हरे रामा, हरे कृष्णा का र्चिचत गाना नए अंदाज में गा रहा है-दम मारो दम, बढ़ गया गम।
बोतल पकड़े या रायफल
गैंग्स ऑफ वासेपुर। वर्ष 2012 की ब्लॉकबस्टर फिल्म। पर्दे पर फिल्म रिलीज होते ही वासेपुर का नाम देश में छा गया। वहां आपराधिक घटनाओं पर तुरंत कार्रवाई के लिए पुलिस की चौकी बनी। चौकी में तैनात जवानों को 24 घंटे इलाके में निगरानी का जिम्मा मिला। वे जिम्मेदारी निभाने लगे पर विभाग ने सुविधा देने में कन्नी काट ली। न रहने का बेहतर इंतजाम और न ही स्वच्छता की व्यवस्था। बेचारे जवान चौकी बनने से लेकर आज तक खुले में शौच को जा रहे है। वह भी चौकी से काफी दूर, सुनसान में। सुबह तो खैर किसी प्रकार चल जाता है पर यदि शाम को जरूरत पड़ गई तो! आखिर वह निगरानी का वक्त जो होता है। रायफल तो छोड़ नहीं सकते। सो एक हाथ में बोतल और दूसरे में रायफल लेकर निकलते हैं। लोग ठिठोली भी करते हैं। देखिए, विभाग का ध्यान कब जाता है?