सावरकर की सुनी जाती तो 1947 में नहीं होता देश का विभाजन
कठोर यातनाएं सहकर वीर सावरकर ने राष्ट्रहित में हजारों पृष्ठों का साहित्य लिखा। धर्म का स्थान हृदय में बताते हुए कारावास में धर्मांतरित हिन्दुओं का शुद्धीकरण किया। सावरकर ने हिन्दुओं को राष्ट्रीय अस्मिता बचाना सिखाया। सावरकर ने हिंदुओं को सदैव सतर्क किया।
धनबाद, जेएनएन। वीर सावरकर का प्रखर राष्ट्रवाद मुसलमानों के तुष्टीकरण में बाधा बन रहा था। इस कारण कांग्रेस ने उसका विरोध किया था। सावरकर की बात सुनी जाती तो 1947 में देश का विभाजन नहीं होता। आज भी सावरकर के विचारों का अनुपालन किया जाए तो संपूर्ण देश एक हो सकता है। यह बातें वीर सावरकर के अंडमान कारावास से मुक्त होने की शताब्दी पर आयोजित ऑनलाइन परिचर्चा कार्यक्रम को संबोधित करते हुए सूचना आयुक्त उदय माहूरकर ने कही। हिंदू जनजागृति समिति की ओर से यह कार्यक्रम आयोजित किया गया था।
समिति के धनबाद संयोजक अमरजीत प्रसाद ने बताया कि इस ऑनलाइन परिचर्चा में देश भर के जाने माने लोगों ने शिरक्त की। चर्चा के मुख्य केंद्र में एक विशेष समुदाय की बढ़ती जनसंख्या को रखा गया था। बताया गया कि इस समुदाय की बढ़ती जनसंख्या को लेकर वीर सावरकर ने हिंदुओं को सदैव सतर्क किा है। उनकी कही हुई अनेक बातें सत्य हुई हैं। वर्ष 1920 में तत्कालीन भारत के इस समुदायक की जनसंख्या 22 फीसद हुई तो देश भर में दंगे हुए। अब 100 वर्ष बाद पुन: इतिहास की पुनरावृत्ति कर दिल्ली में दंगे किए गए। 1947 में उनकी जनसंख्या 35 फीसद होने पर भी देश भर में दंगे का भारत का विभाजन किया था। यदि वर्ष 2047 में उनकी संख्या 35 फीसद हो गई तो एक बार फिर से देश का विभाजन होगा।
प्रसिद्ध लेखक सच्चिदानंद ने कहा कि अंडमान की यातनाओं के कारण कुछ कैदियों ने आत्महत्या की, तो कुछ पागल हो गए। लेकिन ये सभी कठोर यातनाएं सहकर वीर सावरकर ने राष्ट्रहित में हजारों पृष्ठों का साहित्य लिखा। धर्म का स्थान हृदय में बताते हुए कारावास में धर्मांतरित हिन्दुओं का शुद्धीकरण किया। सावरकर ने हिन्दुओं को राष्ट्रीय अस्मिता बचाना सिखाया। संवाद को हिन्दू जनजागृति समिति के युवा संगठक सुमीत ने कहा कि जेएनयू में सावरकर के पुतले को काला रंग लगानेवाले टुकडे-टुकडे गैंग पहले यह बताए कि डांगे ने ब्रिटिशों से माफी क्यों मांगी थी और ब्रिटिशों के प्रति निष्ठावान रहूंगा यह शपथ क्यों ली।