Vijayadashami 2021: मां दुर्गा की विदाई के साथ दुगोत्सव संपन्न, महिलाओं ने खूब खेला 'सिंदूर खेला'

Vijayadashami 2021 नवरात्र में नाै दिन तक मां दुर्गा की आराधना के बाद दसवें दिन विजयादशमी को दुर्गोत्सव संपन्न हो जाता है। धनबाद के पूजा पंडालों से मां दुर्गा को विदाई दी गई। यह क्षण बड़ा ही भावुक था। महिलाओं ने सिंदूर खेला के साथ मां को विदाई दी।

By MritunjayEdited By: Publish:Fri, 15 Oct 2021 01:35 PM (IST) Updated:Fri, 15 Oct 2021 02:36 PM (IST)
Vijayadashami 2021: मां दुर्गा की विदाई के साथ दुगोत्सव संपन्न, महिलाओं ने खूब खेला 'सिंदूर खेला'
धनबाद के हीरापुर स्थित हरि मंदिर में 'सिंदूर खेला' में भाग लेती महिलाएं ( फोटो अमित सिन्हा)।

जागरण संवाददाता, धनबाद। नवरात्रि में नाै दिन तक मां दुर्गा की पूजा और भक्ति के बाद आखिर में दसवें दिन विजयादशमी मनाई जाती है। धनबाद कोयलांचल में विजयादशमी मनाई जा रही है। साथ ही आज दुगोत्सव भी संपन्न हो गया। मां दुर्गा की पूजा के लिए शहर में जगह-जगह बनाए गए पंडालों में स्थापित मां दुर्गा की प्रतिमा का सिर्जन किया गया। इस माैके पर सिंदूर खेला की रश्मअदायगी हुई। महिलाओं ने एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर खूब 'सिंदूर खेला' का खेल खेला। हालांकि यह क्षण थोड़ी देर के लिए बड़ा ही भावुक था। मां दुर्गा की विदाई के समय महिलाओं के आंख नम थे।

सदियों से चली आ रही 'सिंदूर खेला' की परंपरा

विजयादशमी को लेकर देश के अलग-अलग जगह पर अलग-अलग मान्याताएं हैं। इस दिन बंगाल में सिंदूर खेलने की परंपरा होती है, जिसे 'सिंदूर खेला' के नाम से जाना जाता है। इस दिन शादीशुदा महिलाएं पंडालों में मां दुर्गा को सिंदूर अर्पित करती हैं। दशमी पर सिंदूर लगाने की यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। खासतौर से बंगाली समाज में 'सिन्दूर खेला' का बहुत महत्व है। ऐसा माना जाता है कि यह परंपरा करीब चार सौ साल पुरानी है। झारखंड का धनबाद जिला पश्चिम बंगाल से लगा हुआ है। वैसे 1956 से पहले यह भाग पश्चिम बंगाल का ही हिस्सा था। ऐसे में धनबाद पर बंगाल की संस्कृति का प्रभाव है। इस कारण विजयादशमी पर यहां की महिलाएं सिंदूर खेला की रश्मअदायगी करती हैं।

सिंदूर खेला के मायने

सिंदूर खेला शादीशुदा महिलाओं का त्योहार माना जाता है। हिन्दू धर्म में सिंदूर का बहुत महत्व होता है, इसे महिलाओं के सुहाग की निशानी माना गया है। मां दुर्गा को सिंदूर लगाने का बड़ा महत्व‍ है। कहते हैं कि सिंदूर मां दुर्गा के शादीशुदा होने का प्रतीक माना जाता है, इसलिए दशमी वाले दिन सुहागिन महिलाएं लाल रंग की साड़ी पहनती है, और मांग में ढेर सारा सिंदूर भर कर पंडाल जाती है, जहां वे मां दुर्गा को उलूध्‍वनी निकालकर विदा करती हैं। सभी शादीशुदा महिलाएं मां दुर्गा को सिंदूर लगाती हैं। उसके बाद माँ को पान और मिठाई का भोग लगाती है, और आखिर में एक दूसरे को सिंदूर लगाती हैं। सिन्दूर लगाने की इसी प्रथा को सिन्दूर खेला कहते हैं। ऐसा माना जाता है कि जो महिलाएं सिंदूर खेला में शामिल होती हैं, उनके पति की उम्र लम्बी होती है और उनका सुहाग सलामत रहता है।

कैसे खेल

दशमी के दिन मां दुर्गा को विसर्जन से पहले उन्हें दुल्हन की तरह सजाया जाता है। सिंदूर खेला में सबसे पहले पान के पत्ते से मां दुर्गा के गालों को स्पर्श किया जाता है। फिर उनकी मांग और माथे पर सिंदूर लगाते हैं। इसके बाद माता रानी को मिठाई का भोग लगाते हैं। और आखिर में सभी महिलाएं एक-दूसरे को सिंदूर खेलकर पति के लम्बे उम्र और उनकी खुशहाली की कामना करती हैं। इसके बाद लोग ढाक की ताल पर नाचते झूमते मां दुर्गा को विसर्जन के लिए ले जाते हैं, और अगले साल फिर से आने की प्रार्थना करते हैं।

यह है इस खेल से जुड़ी मान्यता

मान्यता है कि मां दुर्गा साल में एक बार 10 दिनों के लिए अपने मायके आती हैं। कहते हैं कि जिस तरह से एक लड़की जब अपने मायके आती है, तो उसे खूब प्यार मिलता है, उसकी सेवा की जाती है। उसी तरह माँ दुर्गा के लिए भी जगह-जगह पंडाल लगते हैं और उनकी सेवा की जाती है। जब मां दुर्गा मायके से विदा होकर ससुराल जाती हैं, तो उनकी मांग को सिंदूर से भर कर ही उन्हें विदाई देते हैं।

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