Lugunburu Ghantabari Dhorom Garh: इनके भगवान लुगूबाबा, बारह साल तपस्या कर रचा आदिवासी संविधान, कार्तिक पूर्णिमा पर होता जुटान

Lugunburu Ghantabari Dhorom Garh बोकारो के ललपनिया के समीप लुगूबुरु घंटाबाड़ी। संताल समाज के लोगों का यह प्रमुख तीर्थस्थल है। मान्यता है कि हजारों वर्ष पहले दोरबारी चट्टान में लुगूबाबा की अध्यक्षता में 12 वर्ष तक बैठक कर उनके सामाजिक संविधान एवं संस्कृति की रचना की थी।

By MritunjayEdited By: Publish:Thu, 18 Nov 2021 06:48 PM (IST) Updated:Thu, 18 Nov 2021 07:27 PM (IST)
Lugunburu Ghantabari Dhorom Garh: इनके भगवान लुगूबाबा, बारह साल तपस्या कर रचा आदिवासी संविधान, कार्तिक पूर्णिमा पर होता जुटान
लुगूबुरु घंटाबाड़ी धोरोमगढ़ में पूजा के लिए पहाड़ की चढ़ाई करतीं आदिवासी महिलाएं ( फोटो जागरण)।

जागरण संवाददाता, बोकारो/ ललपनिया। बोकारो के गोमिया स्थित ललपनिया के समीप स्थित है लुगूबुरु घंटाबाड़ी धोरोमगढ़। संताल समाज के लोगों का यह प्रमुख तीर्थस्थल है। मान्यता है कि हजारों वर्ष पहले उनके पूर्वजों ने लुगू पहाड़ की तलहटी स्थित दोरबारी चट्टान में लुगूबाबा की अध्यक्षता में 12 वर्ष तक बैठक कर उनके सामाजिक संविधान एवं संस्कृति की रचना की थी। इसका पालन आज भी संताली समुदाय के लोग करते हैं। संतालियों का मानना है कि संताली सहित अन्य समुदाय के जो लोग भी यहां लुगूबाबा की पूजा-अर्चना करते हैं, उनकी मनोकामना पूरी होती है। कार्तिक पूर्णिमा के मौके पर यहां मेला लगता है। इस बार भी देश विदेश के श्रद्धालु हिस्सा लेंगे। श्रद्धालुओं में ज्यादातर संख्या झारखंड के अलावा सीमावर्ती राज्य पश्चिम बंगाल और ओडिशा से आने वालों की होती है। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के भी आने का कार्यक्रम है। 

लुगूबूरु घंटाबाड़ी धरोमगढ़ स्थित पूजा स्थल।

चट्टानों पर पूर्वज लगाते थे दरबार

लुगूबुरु घंटाबाड़ी धोरोमगढ़ के आसपास चट्टानों की भरमार है, जो संताली समुदाय के बीच दोरबारी चट्टान के नाम से विख्यात है। कहा जाता है कि इन्हीं चट्टानों को आसन के तौर पर इस्तेमाल कर इनके पूर्वज हजारों वर्ष पूर्व यहां दरबार लगाया करते थे। घंटाबाड़ी स्थित दोरबारी चट्टान के लगभग आधा दर्जन चट्टानों में संतालियों के पूर्वजों ने गड्ढा कर ओखली के रूप में उपयोग किया था, जो आज भी मौजूद है। उनमें कुछेक देखरेख के अभाव में भर गए हैं, लेकिन कई आज भी अपने पुराने स्वरूप में मौजूद हैं। बताया जाता है कि इन्हीं ओखलियों में संतालियों के पूर्वज धान आदि कूटा करते थे।

मुख्यमंत्री के कार्यक्रम को लेकर तैयारियों का जायजा लेते एसडीएम और एसडीपीओ।

हर विधि-विधान में लुगूबुरु का जिक्र

संतालियों के हर पूजन के विधि-विधान एवं कर्मकांडों में लुगूबुरु का जिक्र किया जाता है। इस समुदाय के लोकनृत्य एवं लोकगीत बिना घंटाबाड़ी के जिक्र के पूर्ण नहीं होता। यह परंपरा हजारों वर्ष पूर्व से संतालियों के बीच प्रचलित है, जो लुगुबुरु के प्रति संतालियों की अटूट आस्था व विश्वास का प्रतीक है। संताली समुदाय के दशहरा के मौके पर किए जाने वाले लोकनृत्य दशांय में भी लुगूबुरु घंटाबाड़ी धोरोमगढ़ का जिक्र किया जाता है।

मेला में भाग लेने लुगूबुरु धरोमगढ़ की ओर जाते श्रद्धालु।

कार्तिक पूर्णिमा पर होता धर्मसम्मेलन

लुगूबुरु घंटाबाड़ी धोरोमगढ़ में प्रत्येक वर्ष कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर संतालियों का धर्म महासम्मेलन होता है। इस सम्मेलन को राज्य सरकार ने राजकीय महोत्सव का दर्जा दिया है। कोरोना की वजह से पिछले साल एवं इस साल भी धर्म महासम्मेलन का आयोजन नहीं किया जा रहा है। धर्म सम्मेलन में देश-विदेश के लगभग पांच से छह लाख संताली श्रद्धालु लुगूबुरु पहुंचते रहे हैं।

पेड़ की जटा से रिसता पानी अमृत

लुगू पहाड़ की तलहटी में ही छरछरिया जलप्रपात सह नाला है, जिसके समीप विशाल चट्टान में उगे बरगद के पेड़ की जटा से रिसते पानी की बूंदों को संताली आदिवासी अमृत मानते हैं। इसलिए लुगूबुरु घंटाबाड़ी धोरोमगढ़ में पूजा-अर्चना करने के बाद बोतलों व अन्य बर्तनों में यह अमृत भरकर संताली समुदाय के लोग ले जाते हैं। संतालियों की मान्यता है कि अमृत तुल्य यह पानी पीने से असाध्य रोगों से भी मुक्ति मिल जाती है।

सात हजार से ज्यादा पहुंचे श्रद्धालु

संथालियों के प्रमुख धर्मस्थल लुगूबुरु घंटाबाड़ी धोरोमगढ़ में गुरुवार को लुगू बाबा के पूजन-दर्शन को लगभग सात हजार श्रद्धालु पहुंचे। हालांकि कोरोना से बचाव के मद्देनजर पिछले वर्ष-2020 की तरह ही इस बार भी प्रत्येक वर्ष की भांति कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सरना धर्म महासम्मेलन नहीं हो पाया। उसके बजाय दो दिवसीय पूजन महोत्सव का आयोजन किया गया, जिसका शुभारंभ गुरुवार को किया गया। इस कार्यक्रम को राज्य सरकार की ओर से राजकीय महोत्सव का दर्जा दिया गया है। श्रद्धालुओं ने लुगू पहाड़ पर चढ़कर पूजा-अर्चना की। श्रद्धालु ललपनिया स्थित छरछरिया झरना में स्नान कर सात किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई चढ़कर लुगू पहाड़ स्थित पूजा स्थल गए, जहां अपने आराध्य देव लुगू बाबा व लुगू आयो की पूजा-अर्चना कर शुक्रवार को नीचे उतरेंगे और धोरोमगढ़ स्थित पूजन महोत्सव में भाग लेंगे। यहां मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का आगमन शुक्रवार को होगा। वे धोरोमगढ़, दोरबारी चट्टान व पुनाय थान में पूजा-अर्चना करेंगे।

लुगूबुरु घंटाबाड़ी धोरोमगढ़ संथालियों की आस्था एवं विश्वास का प्रतीक है। लुगू पहाड़ की तलहटी स्थित लुगूबुरु घंटाबाड़ी के दोरबारी चट्टान में संथालियों के पूर्वजों ने लगातार 12 वर्षों तक बैठक कर संथाली समाज की भाषा, संस्कृति व सभ्यता की रचना की थी।

-बबुली सोरेन, अध्यक्ष, लुगूबुरु घंटाबाड़ी धोरोमगढ़। 

जिन रीति-रिवाजों को हम सभी संथाली समाज के लोग मानते हैं, उसका निर्माण दोरबारी चट्टान में हमारे पूर्वजों ने किया था। इसके लिए लगातार 12 वर्षों तक हमारे पूर्वजों ने आराध्य देव लुगू बाबा के साथ बैठक की थी। तब जाकर संथाली समाज की रीति-रिवाज बनी।

-लोबिन मुर्मू, सचिव लुगूबुरु घंटाबाड़ी

हमारे पूर्वज बताते थे कि हम संथालियों की सभ्यता-संस्कृति व भाषा की रचना लुगूबुरु घंटाबाड़ी धोरोमगढ़ के दोरबारी चट्टान में बैठक कर आराध्य देव लुगूबुरु ने की थी। इसलिए लुगूबुरु घंटाबाड़ी धोरोमगढ़ संथाली आदिवासियों का सबसे महानतम धर्मस्थल है।

-चंद्रमोहन मुर्मू, श्रद्धालु, निवासी जमशेदपुर

लुगूबुरु घंटाबाड़ी में अत्यधिक शक्ति है। लुगू बाबा की कृपा से लोगों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। संथालियों के सभी धार्मिक कार्य सहित शादी-विवाह व अन्य कर्मकांडों में लुगूबुरु घंटाबाड़ी का जिक्र होता है। यहां लुगू बाबा की कृपा श्रद्धालुओं पर बरसती है।

-शत्रुघ्न हांसदा, श्रद्धालु, निवासी गम्हरिया टाटा

लुगू बाबा हम संथालियों के आराध्य देव हैं। संथालियों की रीति-रिवाज की रचना लुगू बाबा ने ही की थी, जिसका पालन सभी संथाली करते हैं। लुगूबुरु धोरामगढ़ संथालियो का महातीर्थ स्थल है। यही कारण है कि यहां आयोजित सरना धर्म महासम्मेलन सह पूजन महोत्सव में भाग लेने दूर-दूर से संथाली समाज के लोग आए हैं।

-सोराज मुर्मू, श्रद्धालु, निवासी सरायकेला खरसावां

लुगूबुरु की अध्यक्षता में हमारे पूर्वजों ने जो संविधान बनाया, उसका पालन संथाली समाज के लोग करते हैं। लुगू बाबा हम संथालियों के रक्षक हैं। लुगूबुरु घंटाबाडी धोरोमगढ़ सभी संथालियों की आस्था एवं विश्वास का केंद्र है। संथालियों के जीवन से मरण तक के सभी रीति-रिवाज का निर्माण यहीं किया गया।

-रामकुमार सोरेन, श्रद्धालु, निवासी तिलैया ललपनिया

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