बस्तियां तो छोड़िए जनाब यहां के पेड़ पौधे तक हो रहे तबाह Dhanbad News
झरिया शहर धीरे-धीरे जलते ही जा रहा है। इस आग के ऊपर यह शहर बसा हुआ है। जहां तीन लाख से भी अधिक की आबादी अपना गुजर बसर कर रही है। धरती के सीने पर दरारों से उफनती गर्म जहरीली गैस जमीन इतनी गर्म कि लोगों के जूते गल जाए।
झरिया, सुमित राज अरोड़ा: झरिया शहर धीरे-धीरे जलते ही जा रहा है। इस आग के ऊपर यह शहर बसा हुआ है। जहां तीन लाख से भी अधिक की आबादी अपना गुजर बसर कर रही है। यहां की धरती के सीने पर दरारों से उफनती गर्म जहरीली गैस, जमीन इतनी गर्म कि लोगों के जूते गल जाए। आबो हवा भी एसी कि सांस लेना भी नाकाफी हो जाए। नजारा कुछ एसा की मानों दोजख उतर आया हो धरती पर। कोयले की खदानों में भूमिगत लगी बेकाबू आग बस्तियां की बात छोड़िए जनाब यहां पेड़ पौधे तक तबाह हो जा रहे है। हम बात कर रहे है झरिया की जहां के लोग विगत कई वर्षों से कोयले की धधकते अंगारों पर यहां के वसिंदे ना सिर्फ चल रहे है बल्कि जहरीले धुंए के बीच अपनी जिंदगी के बचे दिनों को जीने के लिए विवश है। यू तो कोयले खदानों में भूमिगत आग वर्षो पूर्व से ही लगी हुई थी। लेकिन अधिकारी के लापरवाही यह आग फेलते ही जा रही है। जानकारों के अनुसार अंग्रेजों द्वारा सन् 1890 में धनबाद के आसपास पहली बार कोयले की खोज हुई जिसके बाद शहरीकरण शूरू हो गया। धनबाद तो बनता गया पर समय के साथ-साथ झरिया इसपर पिसता गया। अब झरिया का नसीब जहरीली गैस व भू धंसान बन कर रह गया है। गैस रिसाव से यहां का वातावरण से मानों लोगों का दम घोट देगा। पेट की आग ने इसे यहां जीने को मजबूर कर रखा है।
झरिया में कई क्षेत्र है जहां भू धंसान व जहरीली गैस रिसाव लगातार होते जा रहा है। यहां रह रहे लोग दहशत में जीने को मजबूर है। वहां रह रहे लोगों ने बताया की बारिश का मौसम आते ही घर के कई सदस्य रात भर सोते नही है। उन्हें डर लगा रहता है कही भू धंसान से कही रात के अंधेरे में उनका परिवार बिछड़ ना जाए। इसी वजह से वह रात भर चेन की नींद तक नही ले पाते है। इसके बावजूद अधिकारियों के कान में जू तक नही रेंग रहा है। अधिकारी उक्त इलाकों को भू धंसान क्षेत्र घोषित कर अपना पल्ला झाड़ देते है। लेकिन उन इलकों में रह रहे लोगों को पुनर्वास के नाम पर कुछ नही मिल रहा है। यदि जेआरडीए व बीसीसीएल द्वारा पुनर्वास जल्द नही किया गया तो कभी भी बड़ा हादसा होने का डर बना हुआ है।
बारिश का मौसम आते ही यहां की जमीनों से जहरीले धुंए की रफ्तार इतनी बढ़ जाती है कि यहां जीना भी दुश्वार हो जाता है पेट की आग की वजह से ना चाह कर भी घुट घुट कर यहां जीना पड़ रहा है
- मिथुन राम, लिलोरी पथरा झरिया।
आश्वासन के अलावा यहां के लोगों को कुछ नहीं मिलता। जान हथेली पर रखकर यहां जीने को विवश है। हाल में ही आसपास के कई जगहों पर भू-धसान हो रहा है। उसके बावजूद भी यहां के लोगों को सुरक्षित जगह पर नहीं ले जाया जा रहा है।
- सुलेखा देवी, लिलोरी पथरा झरिया।