Indian Tradition: साहिबगंज में सदियों से चली आ रही जलसमाधि की परंपरा, सोच यह कि मरने के बाद भी किसी के काम आए शरीर
शंकर दास कहते हैं कि कबीर पंथ को मानने वाले लोग मरने से पूर्व ही अपनी इच्छा व्यक्त कर देते हैं। उन्होंने स्वयं जल समाधि की इच्छा रखी है। बताया जाता है कि जिले के राजमहल महाराजपुर सकरी रामपुर दियारा सरकंडा राजमहल गोपालपुर दियारा शांतिनगर आदि में कबीरपंथी हैं।
साहिबगंज [ डॉ. प्रणेश ]। Indian Tradition साहिबगंज जिले में भी कबीर पंथ को मानने वाले लोगों के शवों के जल व मिट्टी समाधि की परंपरा है। यह वर्षों से चली आ रही है। पूर्व में जल समाधि की परंपरा ज्यादा प्रचलित थी लेकिन नदियों में शवों के प्रवाहित करने पर रोक लगाने के बाद मिट्टी समाधि की परंपरा प्रचलित हो गई। जिले में कबीरपंथियों की संख्या कम है इस वजह से साल-दो साल पर किसी का निधन होता और उन्हें जल या मिट्टी समाधि दी जाती है। इसी साल जनवरी-फरवरी माह में महाराजपुर के गरीब साहब का निधन हो गया था। उन्हें गंगा किनारे ही मिट्टी समाधि दे दी गई। महाराजपुर के बतोरन साहब का निधन दो साल पूर्व हुआ तो उन्हें महाराजपुर में ही गंगा में जल समाधि दी गई थी।
यह है जल समाधि के पीछे का निहितार्थ
गांधी चौक कबीर आश्रम के महंत शंकर दास कहते हैं कि कबीर पंथ को मानने वाले लोग अपना जीवन परमार्थ में लगा देते हैं। वे गरीब, दीन-दुखियों की सेवा करते हैं। मरने के बाद भी उनका शरीर किसी के काम आए यह उनकी सोच है। जल समाधि देने पर शरीर को पानी में रहनेवाली मछली व अन्य जीव खाकर तृप्त होते हैं। मिट्टी समाधि के बाद मिट्टी में रहनेवाले कीड़े-मकोड़े शरीर को खाते हैं। इस प्रकार मरने के बाद भी शरीर किसी न किसी के काम आ जाता है। शंकर दास कहते हैं कि कबीर पंथ को मानने वाले लोग मरने से पूर्व ही अपनी इच्छा व्यक्त कर देते हैं। उन्होंने स्वयं जल समाधि की इच्छा रखी है।
सदियों से चली आ रही यह परंपरा
झारखंड में गंगा सिर्फ साहिबगंज जिले से होकर गुजरती है। जिले क राजमहल, महाराजपुर, सकरी, रामपुर दियारा, सरकंडा, राजमहल, गोपालपुर दियारा, शांतिनगर आदि में कबीरपंथी हैं। हालांकि, इनकी संख्या डेढ़-दो सौ के आसपास ही हैं। राजमहल के नयाबाजार में करीब 10 परिवार हैं जो इस पंथ को मानते हैं। इस पंथ को माननेवाले लोग वैष्णव या वैरागी कहलाते हैं। यहां तक कि इन लोगों के खतियान में भी वैष्णव/वैरागी लिखा गया है। राजमहल के नित्यानंद दास ने बताया कि हमलोगों में काफी प्राचीन समय से यह परंपरा चली आ रही है। जब भी किसी की मृत्यु होती है तो शव को गंगा तट पर समाधि दे दिया जाता है या फिर गंगा नदी के जल में प्रवाहित कर दिया जाता है।
काैन हैं कबीरपंथी
राजमहल के ही राम कृष्ण दास व तपन कुमार दास ने बताया कि हमलोगों के पूर्वज पश्चिम बंगाल के नदिया से यहां आकर बसे। चैतन्य महाप्रभु को अपना गुरु मानते हैं। इस संप्रदाय के लोग भजन कीर्तन करते हैं और उसी से अपनी आजीविका चलाते हैं। हालांकि, वर्तमान में कुछ लोग अन्य व्यवसाय से भी जुड़ गए हैं। भजन कीर्तन करनेवाले लोग माथे पर गिरी मिट्टी का तिलक लगाते हैं जो कपाल से लेकर नाक तक रहता है। सफेद वस्त्र धारण करते हैं।