कतरी नदी का जल प्रवाह रुका, जमा पानी भी सूखने लगा
संवाद सहयोगी कतरास कतरास कोयलांचल से गुजरनेवाली कतरी नदी का जल प्रवाह बेहद कम हो गया है।
संवाद सहयोगी: कतरास: कतरास कोयलांचल से गुजरनेवाली कतरी नदी का जल प्रवाह बेहद कम हो गया है। नदी में जगह-जगह जमा पानी भी अब सूखने लगा है। छपायवा रेलवे पुल के नीचे, मां लिलोरी मंदिर और( मुक्ति धाम) श्मसान घाट के पास नदी में बहुत कम पानी बचा है। जो पानी है, वह इतना प्रदूषित है कि लोग उसका उपयोग नहीं कर सकते। मजबूरी में लोग उसी पानी का उपयोग कर रहे हैं। छपायवा पुल के नीचे नदी में रेलवे ने चेक डेम बनाया है, जहां से पानी कतरासगढ़ रेलवे कॉलोनी में पानी आपूर्ति की जाती है। उस डेम में भी पानी बहुत कम हो गया है। वहां से कुछ ही दूरी पर गंगा गोशाला द्वारा नदी में पंप लगाया है, जिसके जरिये मवेशियों के लिये पानी आता है। उक्त स्थल पर भी पानी कम हो गया है। गोशाला प्रबंधन ने पानी की वैकल्पिक व्यवस्था के लिए पहल शुरू कर दी है। कारण यह कि गोशाला में मवेशियों के लिए बोरिग कराई गई है, लेकिन गर्मी में पर्याप्त मात्रा में पानी नहीं देता है। समय पर बारिश नहीं हुई तो रेल कॉलोनी, गोशाला सहित पड़ोस गांव के लोगों को पानी के लिए भयंकर परेशानी उत्पन्न होने संभावना से इंकार नही किया जा सकता है। हालांकि रेल अधिकारी कहते है कि तब तक बारिश आ जाएगा या टैंकर से कॉलोनी में जलापूर्ति की जाएगी।
झिझिपहाड़ी, लश्करीटांड, बेलनजाबाद, केवट टोला सहित कतरास नगर के कई मोहल्ले कतरी नदी के किनारे हैं। गांव के के लोगों की यह नदी लाइफ लाइन है। इसी नदी में लोग नहाने धोने की नित्य क्रिया कर्म करते है। लेकिन नदी में पानी का बहाव नही होने जमा पानी काफी कम हो जाने से गर्मी में लोगों की मुश्किलें बढ़ जाने की संभावना बन गयी है।
कतरी नदी के अस्तिव को बचाने की जरूरत
कतरी नदी के अस्तिव को बचाने के लिये ना तो तंत्र ने कभी प्रयास किया और ना हीं जनप्रतिनिधियों की इस पर कृपादृष्टि हुई। यही वजह है कि खनन कार्य के लिए डायवर्सन किए जाने लगे। तीन साल पूर्व कोयले की ट्रांसपोर्टिंग के लिए बीसीसीएल ने गजलीटांड़ के पास नदी में पल बना दिया। कतरास शहर के पास नदी की छाती खुली खनन परियोजनाएं के ओवरबर्डेन से ऊंची हो गयी। ऐसे में नदी में कहां से हो सकेगा पानी की ठहराव।
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पीने को पानी नहीं, ईंट भट्ठा में जा रहा पानी
कतरी नदी के किनारे दर्जनों ईंट भट्ठा है, जिसके संचालक पानी को रोककर ईंट बनाने में इस्तेमाल कर रहे हैं। इसे कोई देखने वाला नहीं है, जबकि संबंधित विभाग पीने के लिए पानी लेने पर सार्वजनिक कंपनियों से पैसा वसूल करती है।