अफसरों की कार्यशैली ऐसी कि कुछआ भी शर्मा जाए

मोहलबनी में बना विद्युत शवदाह गृह अफसरों की लचर कार्यशैली के कारण बंद पड़ा हुआ है। जबकि कोरोना की पहली लहर में इसे शुरू करने के लिए उपायुक्त ने खुद निर्देश दिए थे। लेकिन दस माह बीतने के बाद भी इसका न तो डीपीआर बना और न ही आगे काम बढ़ा।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 06 May 2021 06:24 AM (IST) Updated:Thu, 06 May 2021 06:24 AM (IST)
अफसरों की कार्यशैली ऐसी कि कुछआ भी शर्मा जाए
अफसरों की कार्यशैली ऐसी कि कुछआ भी शर्मा जाए

जागरण टीम, धनबाद-झरिया : जिले भर के श्मशान घाटों पर प्रतिदिन दर्जनों शव जल रहे हैं। कभी ऐसा भी हो रहा है कि यहां शवों की कतारें लग रही है। वहीं शव जलाने के लिए लकड़ी की कमी भी सामने आ रही है। ऐसे में विद्युत शवदाह गृह की कमी खल रही है। वहीं 23 साल पहले झरिया के मोहलबनी में बना विद्युत शवदाह गृह अफसरों की शिथिल कार्यशैली के कारण बेकार पड़ा हुआ है। जबकि कोरोना की पहली लहर के दौरान जुलाई 2020 में उपायुक्त उमाशंकर सिंह ने ही मोहलबनी का दौरा किया और दो माह में विद्युत शवदाह गृह शुरू करने का जो वादा किया था। इसके लिए नगर निगम के अधिकारियों को भी निर्देश दिया था। लेकिन नौ माह बाद भी स्थिति जस की तस है। उस समय इसकी मरम्मत के लिए 70 लाख रुपये खर्च करने की तैयारी भी हुई थी, बकायदा इसके लिए डीपीआर बनाने का निर्देश भी जारी हुआ था। लेकिन कोरोना संक्रमण की रफ्तार धीमी पड़ते ही सब शांत हो गया। न तो डीपीआर बना और न ही इसपर अफसरों ने कोई ध्यान दिया। अब एक बार फिर से कोरोना ने जब अपना कहर बरपाना शुरू किया तो फिर से विद्युत शवदाह गृह बनाने की कवायद शुरू हुई है। काम कुछ भी नहीं दो बार हुआ उद्घाटन : मोहलबनी में वर्ष 1997 में माडा की ओर से विद्युत शवदाह गृह की शुरूआत की गई थी। इससे पहले 1992 में तत्कालीन उपायुक्त व्यासजी ने इसका शिलान्यास किया था। बिहार सरकार के नगर विकास मंत्री नारायण यादव ने उद्घाटन किया। इसे चलाने के लिए बिजली और जनरेटर की व्यवस्था की गई थी। बाद के दिनों में दोनों मिलना बंद हुआ तो शवदाह गृह भी बंद हो गया। सात सालों के बाद वर्ष 2005 में तत्कालीन उपायुक्त डॉ. बीला राजेश ने फिर इसे शुरू कराया। जब तक डॉ. राजेश यहां रहीं तक तक यह चलता रहा। उनके स्थानांतरण के बाद यहां लगे उपकरण, दरवाजे, खिड़की समेत जनरेटर व ट्रांसफॉर्मर भी गायब हो गए।

शव जलाने को लेकर हुआ विवाद तब से बंद : अक्टूबर 1998 में लोदना से आए शव का अंतिम संस्कार के लिए लोग विद्युत शवदाह गृह पहुंचे थे। उस समय यहां बिजली नहीं थी। विद्युत शवदाह गृह में तैनात माडा कर्मियों ने शव को जलाए बिना उसे पीछे ले जाकर रख दिया। काफी देर बाद कहा कि शव को जला दिया गया है। इसके बाद कर्मी शव का राख भी मृतक के परिवार वालों को दे दिया। इसी बीच मृतक परिवार का एक व्यक्ति पीछे गया तो देखा कि शव पड़ा हुआ है। इससे नाराज लोगों ने कर्मी की पिटाई कर उस पर शवों की तस्करी करने के गंभीर आरोप लगाए। विवाद बढ़ने के कारण प्रशासन की ओर से इसे बंद कर दिया गया।

यह होता फायदा :

-पारंपरिक तरीके से दाह-संस्कार करने पर जहां महंगी लकड़ी और अन्य मदों में पांच-छह हजार रुपये खर्च होते हैं। विद्युत शवदाह गृह में महज कुछ सौ रुपये में शवों को जलाया जा सकता था।

-लकड़ी की चिता पर दाह-संस्कार करने में तीन से चार घंटे का समय लग जाता है। जबकि विद्युत शवदाह गृह में 30 से 45 मिनट में यह कार्य संपन्न हो जाता।

-विद्युत शवदाह गृह शुरू होने से न सिर्फ कम समय लगता बल्कि घाट और नदी का प्रदूषण भी काफी हद तक कम होता। इनकी थी जिम्मेदारी

जिला प्रशासन - इसे शुरू करने की जिम्मेवारी जिला प्रशासन की थी। उपायुक्त ने इसे लेकर दौरा भी किया व निर्देश भी दिया। लेकिन इसके बाद फिर कभी इसपर कोई ध्यान नहीं दिया गया। जबकि उस समय भी उपायुक्त उमाशंकर सिंह ही थे। नगर निगम - उपायुक्त ने नगर निगम को इसके मरम्मत के लिए डीपीआर बनाने का निर्देश दिया था। 70 लाख का डीपीआर बनाने की तैयारी थी। लेकिन निगम के अफसरों ने इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया। अब फिर से इसके लिए टेंडर निकाला जा रहा है। संचालन समिति - इसे सुचारू रूप से चलाने के लिए तत्कालीन डीसी बीला राजेश ने संचालन समिति का गठन किया था। इसमें बीसीसीएल, टिस्को, झारखंड राज्य विद्युत बोर्ड, खनिज क्षेत्र विकास प्राधिकार के अधिकारियों को संचालन व देखरेख का जिम्मा सौंपा था। लेकिन उपायुक्त बीला राजेश के स्थानांतरण होते ही सभी अधिकारी शिथिल पड़ गए। -------------

जिले में विद्युत शवदाह गृह बनाने को लेकर नगर निगम ने कार्य आरंभ कर दिया है। मोहलबनी घाट पर ही नया विद्युत शवदाह गृह बनाया जाएगा। इस पर 1.30 करोड़ रुपये खर्च होंगे। शवदाह गृह बनाने को लेकर निविदा प्रकाशित की जा चुकी है। इसके फाइनल होते ही निर्माण कार्य शुरू कर दिया जाएगा।

- मो. अनीस, कार्यपालक पदाधिकारी, धनबाद नगर निगम।

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