World Sparrow Day 2021: हर गांव-शहर की एक ही कहानी, अब न आंगन रहा और न फुदकती गौरैया

World Sparrow Day 2021 आज विश्व गौरेया दिवस है। यह हर साल 20 मार्च को मनाया जाता है। यह दिवस देश-दुनिया को गाैरैया पक्षी के संरक्षण के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए मनाया जाता है। साल 2010 में पहली बार यह दिवस मनाया गया था।

By MritunjayEdited By: Publish:Sat, 20 Mar 2021 06:57 AM (IST) Updated:Sat, 20 Mar 2021 07:07 PM (IST)
World Sparrow Day 2021: हर गांव-शहर की एक ही कहानी, अब न आंगन रहा और न फुदकती गौरैया
अब गाैरैया सिर्फ तस्वीरों में ही दिखती हैं ( फाइल फोटो)।

साहिबगंज [ धनंजय मिश्र ]।  एक समय था जब गौरैया हर घर के आंगन में फुदकती दिखती थी। जरा सा उसकी ओर बढ़े कि वह फुर्र। वक्त ऐसा बदला कि आज गौरैया गायब हो गई है। न घरों के आंगन पर दिखती न छत और पेड़ों की डाल पर। आखिर कहां गई। जी हां गौरैया विकास के लिए हो रहे शहरीकरण, बढ़ते मोबाइल टावरों से निकलते विकिरण, दाना पानी की सुलभ व्यवस्था न होने जैसे कारणों से लुप्त हो रही है। गंगा तट पर बसे झारखंड के साहिबगंज जिले में भी गौरैया की कहानी देश-दुनिया से अलग नही है।

 

80 फीसद खत्म हो गई गौरैया

वन विभाग की मानें तो साहिबगंज में करीब बीस वर्ष पहले 20 हजार से अधिक गौरैया का वास था। जो अब चार हजार से कम रह गई हैं। 80 फीसद तक इसकी आबादी घट  गई है। हालांकि ऐसा कोई आधिकारिक आंकड़ा उपलब्ध नहीं है। पेड़ों की अनाप शनाप कटाई, खेतों में रसायनिक खाद का अधिक प्रयोग, घरों में शीशे की खिड़कियां, मोबाइल टावर इनके जीवन के प्रतिकूल साबित हुए। शहरों के विस्तारीकरण के कारण कंक्रीट के जंगल तैयार हुए और हरियाली गायब होती गई।  गांव की गलियों का पक्का होना व उसमें बहता प्रदूषित पानी भी उनके जीवन के लिए घातक बन गया है। क्योंकि गौरैया को स्वस्थ रहने के लिए स्नान करना पसंद करती है। केंद्रीय पर्यावरण और वन मंत्रालय तथा भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद भी मानता है कि गौरैया की संख्या में तेजी से कमी आई है।

 

गंगा तट पर बसा साहिबगंज शहर

प्रकृति ने गौरैया के रूप में मानव  को जो उपहार दिया है, उसको इंसान ही अपनी कार्यप्रणाली से समाप्त कर रहा है। जब घर फूस या खपरैल  के होते थे तो गौरैया उसी में अपना  बसेरा बना लेती थी, अब घर पक्के बनने लगे हैं। यह कहां घोंसला बनाए। घरों के आसपास रहकर    दाना खाकर जीवित रहती थी, अब न प्राकृतिक स्त्रोत बचे न कहीं दाना मिलता है। मोबाइल टावर का रेडिएशन भी इसे परेशान कर रहा है। इनका जाल गौरैया के जी का जंजाल बन चुका

वन विभाग की ओर से गौरैया को बचाने के लिए योजना बन रही है। पहले की भांति घरों में धान, बाजरा की बालियां लटकानी होंगी। गौरैया घोंसले बना सके इसके उपाय करने होंगे। गर्मियों में इनके लिए पीने के लिए पानी की उचित व्यवस्था करनी होगी। गौरैया की रक्षा के लिए सभी को जागरूक होने की जरूरत है।

-मनीष कुमार तिवारी, जिला वन प्रमंडल पदाधिकारी, साहिबगंज

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