Tantra Ke Gan: परदेस से आकर यहीं के हुए, ऐसी की सेवा जो बन गई मिसाल
श्री श्वेतांबर स्थानकवासी जैन संघ झरिया के अध्यक्ष दीपक उदानी ने बताया कि हमारा मकसद यही था कि जरूरतमंदों को भोजन पहुंचता रहे। कोई भूखा न सोए। इसमें हम कामयाब भी रहे। दूसरों की मदद करके ही हम इंसान बनते हैं।
धनबाद [ राजीव शुक्ला ]। कोरोना से बचाव को लगाए गए लॉकडाउन ने सबसे ज्यादा दर्द उन गरीबों को दिया था, जो रोज कमाते व खाते थे। लॉकडाउन लगा तो सब काम बंद। ऐसे में मजदूरी कहां करें। खाने तक के लाले पड़ गए। ऐसे में धनबाद के गुजराती समाज व श्री श्वेतांबर स्थानकवासी जैन संघ झरिया के युवाओं ने गरीबों की क्षुधा शांत करने का बीड़ा उठाया। झरिया के जैन मिलन भवन में 28 मार्च से रसोई सज गई। रोज करीब 400 पैकेट बनाए जाते और उनको गरीबों तक पहुुंचा दिया जाता। झरिया थाना भी कुछ पैकेट भेजे जाते, ताकि वहां से भी जरूरतमंदों को भोजन भेजा जा सके। 21 जून तक ये रसोई अनवरत चलती रही।
इस पुण्य कार्य की अगुवाई कर रहे श्री श्वेतांबर स्थानकवासी जैन संघ झरिया के अध्यक्ष दीपक उदानी ने बताया कि हमारा मकसद यही था कि जरूरतमंदों को भोजन पहुंचता रहे। कोई भूखा न सोए। इसमें हम कामयाब भी रहे। दूसरों की मदद करके ही हम इंसान बनते हैं। गुजराती समाज के लोगों ने भी इस पुनीत काम में पूरा सहयोग दिया। मानवीय संवेदनाओं की मिसाल पेश कर अनेक लोगों ने संकट की इस घड़ी में आर्थिक सहयोग भी किया। ताकि हमारी रसोई निरंतर चलती रहे और अधिक से अधिक जरूरतमंदों तक भोजन पहुंचे। इस दौरान भोजन की गुणवत्ता, सफाई व पैकिंग का भी ध्यान रखा गया। एक मिठाई रोज जरूर दी जाती। रसोई में बिना स्नान व मास्क लगाए किसी को प्रवेश नहीं दिया जाता था। झरिया समेत आसपास के इलाकों से विभिन्न संगठनों के लोग आते और जरूरतमंदों के लिए भोजन के पैकेट ले जाते। उनको मास्क भी बांटने के लिए दिए जाते थे, ताकि कोरोना संक्रमण से लोगों का बचाव हाे सके। सेवा के इस पुण्य काम में हिमांशु दोषी, आनंद मटालिया, हरीश जोशी, प्रकाश, सुरेश कामदार, गिरीश बोरा, जयेश मेहता, विपुल, विजय चौहान, कल्पेश सेठ, अशोक केसरी, दिलीप केसरी समेत समाज के अन्य लोगों ने शानदार काम किया। समाज दयालु लोगों ने आर्थिक मदद भी की कि 21 जून तक रसोई चली। उसके बाद भी 40 हजार रुपये बच भी गए। यह राशि गरीबों की मदद में ही खर्च की जाएगी।
बेजुबान पशुओं की भी सेवा की
दीपक ने बताया कि हम गरीबों तक तो भोजन पहुंचा ही रहे थे, तभी ख्याल आया कि बेजुबान पशुओं को पानी व खाना कैसे मिलेगा। उस समय गर्मी की दस्तक भी हो चुकी थी। तब झरिया में 15 स्थानों पर नाद रखवाई। उसके आसपास रहने वालों को यह जिम्मेदारी दी कि वे उसमें रोज पानी रखेंगे। नाद के बाहर रोटी व हरा चारा रखेंगे। आज भी उन जगहों पर नाद रखी हैं। स्थानीय लोग उसमें पानी व बाहर रोटी आदि रख देते हैं, इससे पशुओं की भी प्यास मिट जाती है।
ऑक्सीजन सिलिंडर की भी व्यवस्था की
किसी भी इंसान की जान ऑक्सीजन की कमी से नहीं जाए, इस सोच के तहत झरिया, कतरास व धनबाद के गुजराती समाज को एक-एक ऑक्सीजन सिलिंडर उपलब्ध कराया। बीमार लोगों की मदद के लिए समाज को एक-एक व्हील चेयर, वॉकर, बैसाखी, कमोड चेयर, बेडसोल किट भी गुजराती समाज को उपलब्ध कराई। लॉकडाउन के दौरान लोग घरों में ही थे। ऐसे में ऑनलाइन गरबा व रंगोली का भी आयोजन किया। ताकि लोग लॉकडाउन के समय का सदुपयोग कर सकें।