Dhanbad: गरीबों के मसीहा थे शक्तिनाथ महतो, करोना के खतरे के कारण इस बार भी नहीं लगेगा मेला

दो अगस्त 1948 को तेतुलमुड़ी बस्ती में किसान गणेश महतो व गृहिणी सधुवा देवी के घर एक बालक का जन्म हुआ। माता-पिता ने बालक का नाम शक्तिनाथ महतो रखा। अपने नाम के अनुरूप ही शक्ति ने सामाजिक कुरीतियों को दूर करने को मुक्त कराते हुए प्राणों की आहुति दे दी।

By Atul SinghEdited By: Publish:Sat, 27 Nov 2021 11:57 AM (IST) Updated:Sat, 27 Nov 2021 11:59 AM (IST)
Dhanbad: गरीबों के मसीहा थे शक्तिनाथ महतो, करोना के खतरे के कारण इस बार भी नहीं लगेगा मेला
सूदखोरों के आतंक से गरीब, असहाय को मुक्त कराते हुए प्राणों की आहुति दे दी। (प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर)

तरुण कांति घोष, सिजुआ: दो अगस्त 1948 को तेतुलमुड़ी बस्ती में किसान गणेश महतो व गृहिणी सधुवा देवी के घर एक बालक का जन्म हुआ। माता-पिता ने बालक का नाम शक्तिनाथ महतो रखा। अपने नाम के अनुरूप ही शक्ति ने सामाजिक कुरीतियों को दूर करने तथा सूदखोरों के आतंक से गरीब, असहाय को मुक्त कराते हुए प्राणों की आहुति दे दी। गांधी स्मारक उच्च विद्यालय सिजुआ से मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद शक्ति ने आइटीआइ धनबाद में दाखिला लिया। कुमारधुबी में फीटर ट्रेड का प्रशिक्षण प्राप्त कर मुनीडीह प्रोजेक्ट में योगदान दिया। उनदिनों कोलियरी क्षेत्रों में सूदखोरी का धंधा चरम पर था।

भोलेभाले मजदूरों की गाढ़ी कमाई को सूदखोरों के जेब में जाता देख शक्ति का मन विचलित हो उठा। उन्होंने मजदूरों को सूदखोरों के चंगुल से आजाद कराने तथा न्यूनतम मजदूरी दिलाने के लिए आंदोलन का बिगुल फूंक दिया। इस दौरान वह विनोद बिहारी महतो के संपर्क में आए और 21 जनवरी 1971 को शिवाजी समाज की जोगता थाना कमेटी का गठन किया गया। कमेटी में शक्ति को मंत्री बनाया गया।

उन्होंने बाल विवाह, दहेज प्रथा, नशा उन्मूलन के खिलाफ मुहिम छेड़ दी। समाज के लोगों को शिक्षित करने के उद्देश्य से रात्रि पाठशाला का शुभारंभ किया। इस अभियान का असर भेलाटांड, कपुरिया, परसिया, पुटकी, धोबनी, चीरूडीह, कारीटांड, बलिहारी से राजगंज-तोपचांची तक पड़ा। आपातकाल के दौरान शक्ति 22 माह तक धनबाद, भागलपुर तथा मुजफ्फरपुर के जेलों में बंद रहे। शोषण, अन्याय व अत्याचार के खिलाफ चलाए जा रहे आंदोलन को कुचलने के लिए माफिया तत्वों ने उनकी हत्या की साजिश रची। 22 म ई 1975 को कारीटांड में हुई बैठक के बाद शक्ति की हत्या की कोशिश की ग ई। रात गांव में ही बिताने के कारण अपराधियों के कहर से वे तो बच ग ए, लेकिन उनके तीन साथी को मौत के घाट उतार दिया गया। 28 नवंबर 1977 का दिन कोयलांचल के लिए काला दिन साबित हुआ और सिजुआ में गोली व बम मारकर आंदोलन के प्रणेता शक्तिनाथ की निर्मम हत्या कर दी गई।

इस बार भी नहीं लगेगा मेला: शहीद शक्ति की स्मृति में टाटा सिजुआ 12 नबंर (आजाद सिजुआ) स्थित समाधि स्थल पर आयोजित होने वाले नौ दिवसीय मेला व सांस्कृतिक कार्यक्रम इस बार भी नहीं होगा। कोरोना के खतरे को देखते हुए मेला व सांस्कृतिक कार्यक्रमों के आयोजन नहीं करने का निर्णय बीते दिनों मेला कमेटी व ग्रामीणों की हुई बैठक में लिया गया था। 28 नवंबर को शहादत दिवस पर शहीद के आदमकद प्रतिमा पर स्वजन, विभिन्न राजनीतिक व सामाजिक संगठन, छात्र व बुद्धिजीवी श्रद्धांजलि अर्पित करेंगे।

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