Ghar Wapsi Campaign: धर्म-समाज से विमुख अपनों की जंगलों में खोज, जैसे खामोशी से मिशनरी धर्मांतरण कराती हैं, उसी अंदाज में घर वापसी
Ghar Wapsi Campaign घर वापसी भी बहुत आसान नहीं होती। आदिवासी समाज में अग्नि यज्ञ की परंपरा है। अग्नि यज्ञ में लोगों को वापस सनातन धर्म में लाया जाता है।
साहिबंगज [ डॉ. प्रणेश ]। कोरोना से बचाव के लिए लॉकडाउन लगने के कारण संथाल परगना में ईसाई से सनातन धर्म में वापसी की मुहिम रूक गयी थी। अनलॉक शुरू होने के बाद इस्कॉन, जनजाति सुरक्षा मंच, वनवासी कल्याण परिषद जैसे संगठनों ने ईसाई से सनातन धर्म में वापसी के लिए साझा प्रयास शुरू कर दिया है। जिस तरह बेबस, अनपढ़ और गरीब आदिवासियों के बीच जाकर धीरे धीरे उनके दिल एवं दिमाग पर हावी होती हैं, उसी अंदाज में ये संगठन भी मिल कर साल भर में लोगों को ईसाई से सनातन धर्म में वापसी के लिए तैयार कर रहे हैं। नतीजतन, पांच साल में पांच सौ से अधिक लोगों की घर वापसी हो चुकी है।
घर वापसी भी बहुत आसान नहीं होती। आदिवासी समाज में अग्नि यज्ञ की परंपरा है। अग्नि यज्ञ में लोगों को वापस सनातन धर्म में लाया जाता है। दहक रहे कोयला पर लोग नंगे पांव पार करते हैं। उसके बाद धार्मिक अनुष्ठान कर सामाजिक तौर पर उन्हें सनातन या सरना धर्म का होने की मान्यता दी जाती है। बीते मार्च में भी बरहेट के सिंदरी गांव में इसी तरह 70 परिवार के 126 लोगों ने धर्म वापसी की है।
दरअसल, संथाल परगना का बड़ा हिस्सा बेहद पिछड़ा है। संथाल एवं पहाडिय़ा जनजाति की आबादी अधिक है। बड़ी संख्या में आदिवासियों का धर्मांतरण हुआ है। ईसाई धर्म को अपनाने के बाद पहाडिय़ा ने अपना टाइटल मालतो कर लिया है। लॉकडाउन प्रभावी होने के बाद सनातन धर्म में वापसी की मुहिम में लगे लोगों ने पहाड़ एवं जंगलों के बीच बसने वाले आदिवासियों के बीच जाकर उनकी सहायता की। इस्कॉन, जनजाति सुरक्षा मंच एवं वनवासी कल्याण परिषद के प्रतिनिधि अब ऐसे लोगों को टटोलने में लग गये हैं जिन्हें सनातन धर्म में वापस लाने के लिए मानसिक तौर पर तैयार किया जा सकता है। ऐसे लोगों को चिह्नित करने के बाद साल भर तक उनकी रोजमर्रा के जीवन को सुगमता से आगे बढ़ाने के लिए सहयोग किया जाएगा। जो लोग ईसाई से वापस सनातनी हो चुके हैं, उन्हें भी गांवों में भेजा जा रहा है ताकि वे अपने सुखद अनुभव बता कर और लोगों को घर वापसी के लिए प्रेरित करें।
मिशनरी ने मदद की तो आदिवासी बन गए मसीही
संथाल परगना में देवघर को छोड़ दुमका, साहिबगंज, पाकुड़, गोड्डा एवं जामताड़ा जिले का बड़ा हिस्सा विकास से दूर रहा है। पीने को शुद्ध पानी नहीं, इलाज के लिए अस्पताल नहीं, पढऩे के लिए स्कूल नहीं। प्रतिकूल हालात में जी रहे आदिवासियों के बीच दशकों तक ईसाई मिशनरी ने काम किया। नतीजा हुआ कि आदिवासियों की बड़ी आबादी मसीही बन चुकी है। गोड्डा जिले के सुंदरपहाड़ी में अधिकतर पहाडिय़ा गांवों में चर्च है जहां प्रत्येक रविवार को प्रार्थना होती है। पांच साल से घर वापसी की मुहिम शुरू हुई है जिसमें आदिवासी धर्म गुरू बड़ी भूमिका निभा रहे हैं। इस्कॉन ने भी आदिवासियों के मिजाज को बदलने में महती भूमिका अदा की है। इस्कॉन कृष्ण भक्ति का प्रचार प्रसार करती है। वे लोग दूसरे धर्म को मानने वालों से भी मिलते हैं। उन्हें अपनी संस्था में आने से नहीं रोकते। ऐसे लोगों का भी सनातन धर्म की तरफ झुकाव बढ़ा है।
अग्नि यज्ञ के जरिए वापस आया तो सुकून मिला : डोबले
बरहेट के सिंदरी गांव में बीते मार्च में अग्नि यज्ञ हुआ था। बरहेट प्रखंड के जड़ीबेड़ो गांव में रहने वाले डोबले पहाडिय़ा कहते हैं, पूर्वजों ने ईसाई धर्म को अपना लिया था। अग्नि यज्ञ के जरिए सनातन धर्म में वापस आया तो बेहद सुकून मिला है। महसूस हो रहा है कि सर से कोई बोझ हट गया है। उसी गांव के असना पहाडिय़ा ने भी घर वापसी की है। वे कहते हैं, अब हल्का महसूस कर रहे हैं। गांव के कई लोगों ने घर वापसी की है।
सरना धर्म सबसे प्राचीन है। कुछ लोग भटक गए थे। अब वापस सरना धर्म में आ रहे हैं। घर वापसी के लिए फिर से अभियान शुरू हो चुका है। हरेक साल घर वापसी के लिए किसी न किसी गांव में अग्नि यज्ञ का आयोजन होता है। अगले साल भी होगा।
-शीतल सोरेन, धर्मगुरु, बरहेट
बोरियो और बरहेट इलाके में बड़े पैमाने पर धर्मांतरण हुआ है। 70 से 80 फीसद आदिवासी धर्म परिवर्तन कर चुके हैं। कई संगठन मिल कर घर वापसी का अभियान चला रहे हैं। पांच साल में 500 लोगों ने घर वापसी की।
-वरण किस्कू, सदस्य, वनवासी कल्याण आश्रम