अवांछित काैन, एलबी या धनबाद पुलिस ? पढ़ें-SAIL के तासरा कोल प्रोजेक्ट की अंदरूनी कहानी

2004 के चुनाव में धनबाद में चार बार से काबिज भाजपा का शामियाना उखड़ गया था। चंद्रशेखर दुबे ने यहां कांग्रेस का परचम फहराया था। तब उनसे कम बधाई उनके सारथी रहे एके झा को भी नहीं मिली थी।

By MritunjayEdited By: Publish:Tue, 08 Jun 2021 07:56 AM (IST) Updated:Tue, 08 Jun 2021 07:56 AM (IST)
अवांछित काैन, एलबी या धनबाद पुलिस ? पढ़ें-SAIL के तासरा कोल प्रोजेक्ट की अंदरूनी कहानी
सेल के तासरा प्रोजेक्ट में कोयले का खनन।

धनबाद [ रोहित कर्ण ]। यह वाकया भी दिलचस्प है। स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड के टासरा प्रोजेक्ट में ग्रामीणों ने हंगामा किया। एकमुश्त जमीन अधिग्रहण करने और उसका लाभ मांगा। मजेदार यह कि हंगामे का जवाब भी काम कर रही एजेंसी ने हंगामाखेज तरीके से ही दिया। जैसे को तैसा की तर्ज पर। पुलिस पहुंची तो दोनों ही पक्षों के लोगों की सूची बनाई। उन्हें अवांछित सूची में डाल दिया। जाहिर है लाठीचार्ज करना उनका काम है, दूसरे क्यों करें। अब प्रबंधन क्या करे, काम उसी एजेंसी से कराए कि बदले। जाहिर है एलबी कंपनी को बदलने का खतरा तो वह मोल ले नहीं सकता। वरना हंगामा टासरा से सीधे उसके कार्यालय तक पहुंचेगा। सो प्रबंधन ने पुलिस की सूची पर ही सवाल खड़े कर दिए। कहा कि उनसे चूक हो गई। अब बोलें तो अवांछित कौन हुए, जिन्हें पुलिस कह रही वे या पुलिस स्वयं, जैसा प्रबंधन कह रहा।

अंगूर खट्टे हैं

ऐसा लगता है बच्चा गुट को पहले ही आभास हो चुका था कि जेबीसीसीआइ-11 में जगह नहीं मिलने वाली। सो 'खाने को न मिलें तो अंगूर खट्टे हैं' की तर्ज पर संगठन की खिंचाई समर्थकों ने शुरू कर दी थी। अचानक से इस ङ्क्षखचाई का रहस्य लोग समझ पाते कि तभी घोषणा हो गई, सिद्धार्थ होंगे जेबीसीसीआइ सदस्य। इसके बाद इंटरनेट मीडिया पर एचएमएस की ङ्क्षखचाई थमी नहीं है। कहा जा रहा है कि ऊपर के लोग तो बिल्कुल निरंकुश हो गए हैं। कोयला, बिजली, स्टील, डाक, रेल सभी में जुझारू कार्यकर्ताओं को दरकिनार कर पसंदीदा को ही तरजीह दी जा रही है। ऐसा न हो कि इससे विवाद बढ़े और एचएमएस का हाल भी इंटक जैसा ही हो। इसे चेतावनी कहें या नसीहत, मगर बात है तो जबरदस्त। सीधा संदेश कि लोकतांत्रिक परंपराओं का सम्मान बनाएं अन्यथा पीढिय़ां गुजर जाएंगी पर अदालतों में विवाद नहीं सलटेगा।

झाजी पर भारी चौबेजी

2004 के चुनाव में धनबाद में चार बार से काबिज भाजपा का शामियाना उखड़ गया था। चंद्रशेखर दुबे ने यहां कांग्रेस का परचम फहराया था। तब उनसे कम बधाई उनके सारथी रहे एके झा को भी नहीं मिली थी। चंद महीनों बाद जब मजदूर संगठन पर कब्जे को लेकर राजेंद्र व ददई गुट के बीच खेमेबंदी शुरू हुई तो लोग दंग रह गए। राजेंद्र गुट में रहे ललन चौबे नए बने सांसद चंद्रशेखर दुबे की ओर से मोर्चा संभाले हुए थे। एके झा आउट हो चुके थे। तेज झा जी ने फौरन राजेंद्र गुट का दामन थाम लिया और राष्ट्रीय कोलियरी मजदूर संघ के महामंत्री बनाए गए। समय फिर पलटा और अब चौबे का नाम रेड्डी गुट से जेबीसीसीआइ के लिए प्रस्तावित किया गया है। हालांकि बैठने का मौका मिले न मिले मगर चौबे जी एक बार फिर झा जी पर भारी पड़ते दिख रहे हैं।

मन लायक कंपनी नहीं बीसीसीएल

हम कहें तो बुरा लगेगा, मगर यहां तो अपने ही साहिबान तिलमिलाए हैं, कब बीसीसीएल से छुटकारा मिले। यह भी कोई कंपनी है। काम का कोई माहौल ही नहीं। खाया-पीया कुछ नहीं ग्लास तोड़ा बारह आना। कहने को हजारों करोड़ की कंपनी और मुख्यालय की कॉलोनी के मेंटेनेंस को भी फंड नहीं। साहब चंद महीने पहले ही कोल इंडिया की एक बड़ी कंपनी से पदोन्नति के बाद बीसीसीएल भेजे गए हैं। उनके एक और साथी हैं, वे तो यहां आने के बाद इतने अवसादग्रस्त हो चुके हैं कि मत पूछो। अपनी डेढ़-दो साल की नौकरी छोड़ कर जाने पर आमादा हो जाते हैं। ऐसे में एक ही जगह से आए दोनों एक-दूसरे को ढांढस बंधाते हैं। मजेदार यह कि साहब अनोखे बंगाली हैं जो सेवानिवृत्ति के बाद बंगाल नहीं जाना चाहते। दक्षिणेश्वर के गंगा घाट से अधिक शांति इन्हें जगन्नाथ की शरण में मिलती है।

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