पति के लंबी आयु व खुशहाल वैवाहिक जीवन के लिए की जाती रोहिणी व्रत, जानिए विधि व इससे जुड़ी कथाएं
जैन समुदाय में रोहिणी व्रत महत्वपूर्ण व्रत में से एक है। रोहिणी व्रत मुख्य रूप से विवाहित महिलाओं अपने पति के लंबे आयु व खुशहाल वैवाहिक जीवन के लिए रखा जाता है। हिंदु एवं जैन कैलेंडर के अनुसार सत्ताईस नक्षत्रों में से एक है।
धनबाद, जेएनएन: जैन समुदाय में रोहिणी व्रत महत्वपूर्ण व्रत में से एक है। रोहिणी व्रत मुख्य रूप से विवाहित महिलाओं अपने पति के लंबी आयु व खुशहाल वैवाहिक जीवन के लिए रखा जाता है। हिंदु एवं जैन कैलेंडर के अनुसार सत्ताईस नक्षत्रों में से एक है। जिस दिन सूर्योदय के बाद रोहिणी नक्षत्र पड़ता है, उस दिन यह व्रत किया जाता है। इस बार यह व्रत 24 जनवरी को मनाया जाएगा।पंडित सुभाष पांडेय के अनुसार हर वर्ष में बारह रोहिणी व्रत होते हैं। आमतौर पर रोहिणी व्रत का पालन तीन, पांंच या सात वर्षों तक लगातार किया जाता है। इसके बाद अपने इच्छा अनुसार किया जा सकता है।
धैया स्थित जैन मंदिर से जुड़े मुकेश जैन ने बताया कि जैन धर्म में मान्यता है कि इस व्रत को पुरुष और स्त्रियां दोनों कर सकते हैं। इस दिन महिला सजती और संवरती है। और इस दिन महिलाओं की खुशी देखते ही बनती है । रोहिणी जैन और हिंदू कैलेंडर में सत्ताईस नक्षत्रों में से एक नक्षत्र है। यह व्रत वर्ष में 12 बार रोहिणी नक्षत्र में किया जाता है।
रोहिणी व्रत का महत्वः
ऐसा माना गया है कि जो लोग रोहिणी व्रत का पालन करते हैं, वे सभी प्रकार के दुखों और गरीबी से छुटकारा पा सकते हैं। और इसीलिये इस व्रत का बहुत अधिक महत्तव है। रोहिणी नक्षत्र का पारगमन रोहिणी नक्षत्र के समाप्त होने पर मार्गशीर्ष नक्षत्र के दौरान किया जाता है।
रोहिणी व्रत में उपवास का महत्वः
रोहिणी नक्षत्र पर उपवास रखने की प्रथा न केवल उपवास का पालन करने वाले व्यक्ति को, बल्कि परिवार के सदस्यों के लिए भी बहुत फायदेमंद है। इस दिन उपवास समृद्धि, खुशी और परिवार में एकता बनाए रखने के लिए रखते है। महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सलामती के लिए व्रत भी रखती हैं। जैन घरों में कई महिलाएं अपने घर में राज करने के लिए शांति और शांति के लिए उपवास रखती हैं।