Ganga-Damodar Express बोले तो, नाम बड़े और दर्शन छोटे; जानें रेलवे की उत्कृष्टता का पैमाना

जी हां अगर आपको भी रेलवे की ओलिंपिक की ट्रेङ्क्षनग को नजदीक से देखना हो तो रङ्क्षनग रूम के काठ के पुल के पास आ जाइए। ओलिंपिक की ट्रेङ्क्षनग जैसा नजारा यहां आपको दिखेगा। लोग ऊंची-ऊंची छलांग लगाकर बंद ओवरब्रिज को पार करते दिख जाएंगे।

By MritunjayEdited By: Publish:Sun, 01 Aug 2021 11:40 AM (IST) Updated:Sun, 01 Aug 2021 11:40 AM (IST)
Ganga-Damodar Express बोले तो, नाम बड़े और दर्शन छोटे; जानें रेलवे की उत्कृष्टता का पैमाना
धनबाद से पटना के बीच चलने वाली गंगा-दामोदर एक्सप्रेस ( फाइल फोटो)।

तापस बनर्जी, धनबाद। उत्कृष्ट ट्रेन माने गंगा-दामोदर एक्सप्रेस। नाम के साथ उत्कृष्ट जुड़ते ही धनबाद से चलने वाली सबसे महंगी ट्रेन बन गई। सेकेंड सीटिंग से फर्स्ट एसी तक का किराया त्योहार स्पेशल के नाम पर बढ़ा दिया गया। स्लीपर का सफर 195 से बढ़कर 295 तो थर्ड एसी की यात्रा 465 से उछल कर 770 पर पहुंच गई। अभी कौन सा त्योहार है ये तो रेलवे ही जाने। पर किराया बढ़ने और नाम के साथ उत्कृष्ट जुड़ने के बाद भी सुविधाएं ठन ठन गोपाल। धनबाद के अधिवक्ता जय सिंह से ना रहा गया। इस ट्रेन से जुड़ा अपना अनुभव साझा कर ही दिया। लिखते हैं, लगातार तीसरी बार इस ट्रेन से सफर के दौरान खराब एसी से सामना हुआ। न जाने क्यों रेलवे समाधान नहीं तलाश रही। ज्यादा किराया चुकाने के बाद भी ऐसी व्यवस्था से ठगा महसूस कर रहे हैं। पब्लिक का कुछ तो सोचिए हुजूर।

दरवाजा खोलिए, टायलेट जाना है

अगर आपका पड़ोसी रोज सुबह दरवाजा खटखटाए और खुलते ही टायलेट की ओर दौड़ पड़े तो...। आप खुन्नस तो खा ही जाएंगे। सामने वाला भी शर्मसार होगा, मगर क्या करे, दूसरा चारा भी तो नहीं। गोमो के बेचारे डिप्टी सीआइटी बाबू को रोज यही करना पड़ रहा है। वो ही नहीं पूरा परिवार शौच के लिए पड़ोसी के रेलवे क्वार्टर के बाहर लाइन लगा रहा है। दरअसल गोमो में रहने वाले वाणिज्य विभाग के डिप्टी सीआइटी का क्वार्टर नंबर 318 सीडी आरई कालोनी में है। उनके क्वार्टर का टायलेट कई महीनों से जाम है। आइओडब्ल्यू से फरियाद भी कर चुके हैं। पर साहब ठहरे इंजीनियरिंग विभाग के, वाणिज्य विभाग से क्या लेना-देना। उनके पास और भी बहुत काम है। सो, फरियाद पर कान नहीं धर रहे। नतीजा, अब पड़ोसी का ही सहारा है। देखिए कब तक साथ देंगे। कहीं किसी दिन दरवाजा न खोला तो...।

माइक्रोस्कोप से दिखेगी सीमेंट

कुछ महीने पहले की बात है। गोमो में सड़क निर्माण के लिए ठेकेदार जिस सामग्री का इस्तेमाल कर रहे थे, उसमें झोल था। रेलवे कर्मचारी खुद सवाल उठा रहे थे। मगर रेलवे की जांच में उसे सौ फीसद खरा बताया गया। ठीक वैसा ही मामला अब निचितपुर में रेलवे ब्रिज की सड़क निर्माण में आया है। कंस्ट्रक्शन मैटेरियल में गड़बड़ी की न सिर्फ शिकायत मिल रही है, बल्कि उपयोग में लाई जा रही सामग्री की तस्वीरें वायरल हो रही हैं। अपने सूरज बाबू से रहा नहीं गया सो सीधे डीआरएम का दरवाजा खटखटाया है। बताया कि रेलवे ब्रिज में रिपेयङ्क्षरग का काम किया जा रहा है। इसमें उपयोग हो रही सामग्री में गड़बड़ी है। मेटल की जगह पर ईंट की बजरी का इस्तेमाल हो रहा है। सीमेंट की मात्रा इतनी है कि उसे माइक्रोस्कोप से खोजना होगा। साहब अब कुछ तो करिए, मामला जनता का है।

यहां हो रही ओलिंपिक की ट्रेनिंग

जी हां, अगर आपको भी रेलवे की ओलिंपिक की ट्रेङ्क्षनग को नजदीक से देखना हो तो रङ्क्षनग रूम के काठ के पुल के पास आ जाइए। ओलिंपिक की ट्रेङ्क्षनग जैसा नजारा यहां आपको दिखेगा। लोग ऊंची-ऊंची छलांग लगाकर बंद ओवरब्रिज को पार करते दिख जाएंगे। अंग्रेजों के जमाने के काठ पुल पर खतरा बढ़ गया था। अफसरों को भनक मिली तो तुरंत इस ब्रिज को बंद कर लोहे की ऊंची जालियां लगा दीं। 30 अप्रैल से काठ पुल पर लोगों की आवाजाही पर पाबंदी है। इस पुल को तोड़कर पास ही नया पुल बनना शुरू हुआ। नए पुल को पिछले साल नवंबर-दिसंबर में ही बन कर तैयार हो जाना था। मगर, जानते ही हैं, ठेकेदार की माया अपार, उसके आगे किसकी चलती है भला। पहले कोरोना के नाम पर काम बंद। फिर ठेकेदार कर रहा मनमानी। इसलिए भैया अभी तो छलांग लगाते ही रहिए।

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