Weekly News Roundup Dhanbad: हे भगवान ! सीधे कोविड हो जाए, इस यातना गृह से मिलेगी मुक्ति; पढ़ें सिस्मट की उलटबांसी
कोराना से बचाव का सबसे अहम मंत्र है- एसएमएफडी। एसएमएफडी बोले तो सैनिटाइजर मास्क और फिजिकल डिस्टेंसिंग। इसे जिसने जीवन में उतार लिया उसका वायरस कुछ नहीं बिगाड़ सकता।
धनबाद [ दिनेश कुमार ]। कोयलांचल में कोविड-19 के इलाज और क्वारंटाइन की अजब-गजब कहानी है। कोरोना से पीडि़त मरीज यहां तीन-चार दिन के इलाज के बाद अस्पताल से मुक्ति पा जा रहे हैं। लेकिन, संस्थागत क्वारंटाइन में रहनेवालों को 20-25 दिन बाद भी छुट्टी नहीं मिल रही है। इसके कारण कई क्वारंटाइन सेंटरों में चिल्लम-पो मची है। लोग बाहर निकलने को बेताब हैं। अब देखिए न, बाघमारा के क्वारंटाइन सेंटर में 23 दिन से लोग पड़े हुए हैं। कितने ही प्रवासी कामगार दिल्ली-महाराष्ट्र से से यहां पहुंचे हुए हैं लेकिन इतने दिनों में इनकी जांच पूरी नहीं हो पाई है। सरकारी स्तर पर रोज इनके खाने-पीने का इंतजाम करना पड़ रहा है। वहीं उसी क्षेत्र से कोविड-19 से पीडि़त मरीज सप्ताह भर में ठीक होकर अस्पताल से घर पहुंच गया। अब ये कह रहे हैं कि उनके लिए तो कोविड से महंगा क्वारंटाइन साबित हो रहा है। जायज भी है।
कोरोना से बचाव का मंत्र एसएमएफडी
कोराना से बचाव का सबसे अहम मंत्र है- एसएमएफडी। एसएमएफडी बोले तो सैनिटाइजर, मास्क और फिजिकल डिस्टेंसिंग। इसे जिसने जीवन में उतार लिया, उसका वायरस कुछ नहीं बिगाड़ सकता। सरकार भी बाहर निकलनेवालों के लिए मास्क अनिवार्य कर ही चुकी है। कोयलांचल में इसी सतर्कता के कारण अभी स्थिति बेकाबू नहीं हुई है। लेकिन, अनलॉक-1 में ढील क्या मिली, लोग बेपरवाह हो गए। खासकर युवा। सड़कों पर ऐसे युवा बाइकर्स बड़ी संख्या में दिखने लगे जो बचाव का प्रबंध नहीं कर रहे। न हेलमेट, न मास्क। दोहरा खतरा। लेकिन, पुलिस कहां चूकनेवाली है। शहर में कई स्थानों पर चेकिंग चलाई जा रही है। ऐसे में बिना मास्क लगाए युवाओं की खूब खातिरदारी हो रही है। घरवालों को जाकर जुर्माना भरना पड़ रहा है। जेब हल्की होते ही अभिभावक अपने बच्चों को नसीहत दे रहे हैं- निकलो ना बेनकाब..., कोरोना और पुलिस का खतरा है।
कोविड से महंगा क्वारंटाइन
कोयलांचल में कोविड-19 के इलाज और क्वारंटाइन की अजब-गजब कहानी है। कोरोना से पीडि़त मरीज यहां तीन-चार दिन के इलाज के बाद अस्पताल से मुक्ति पा जा रहे हैं। लेकिन, संस्थागत क्वारंटाइन में रहनेवालों को 20-25 दिन बाद भी छुट्टी नहीं मिल रही है। इसके कारण कई क्वारंटाइन सेंटरों में चिल्लम-पो मची है। लोग बाहर निकलने को बेताब हैं। अब देखिए न, बाघमारा के क्वारंटाइन सेंटर में 23 दिन से लोग पड़े हुए हैं। कितने ही प्रवासी कामगार दिल्ली-महाराष्ट्र से से यहां पहुंचे हुए हैं लेकिन इतने दिनों में इनकी जांच पूरी नहीं हो पाई है। सरकारी स्तर पर रोज इनके खाने-पीने का इंतजाम करना पड़ रहा है। वहीं उसी क्षेत्र से कोविड-19 से पीडि़त मरीज सप्ताह भर में ठीक होकर अस्पताल से घर पहुंच गया। अब ये कह रहे हैं कि उनके लिए तो कोविड से महंगा क्वारंटाइन साबित हो रहा है। जायज भी है।
जंगल में कोरोना संग दंगल
नक्सलियों के गढ़ में अक्सर पुलिस की दबिश पड़ती रहती है। उनकी टोह लेने के लिए जंगल में लांग रेंज पेट्रोलिंग के सहारे चप्पा-चप्पा छान मारती है। कोरोना काल में इन इलाकों में पुलिस की जिम्मेदारी और बढ़ गई है। अब कोरोना मरीज के लिए भी जंगल में भटकना पड़ रहा है। मामला टुंडी का है। यहां सैकड़ों प्रवासी कामगार वापस लौटे हैं। ऐसे ही एक श्रमिक में वायरस की पुष्टि हो गई। स्वास्थ्यकर्मी उसे लाने घर पहुंच गए। इससे मरीज बदहवास हो गया। कुछ सूझा नहीं तो भाग निकला, वो भी घने जंगल की ओर। अब नक्सल क्षेत्र के जंगल में बिना सुरक्षा स्वास्थ्यकर्मी उसे कैसे खोजने जाएं? फोर्स की मदद लेनी पड़ी। इलाके की घेराबंदी कर दी गई। काफी देर लुका-छिपी का खेल चला। आखिर उसे धर ही लिया गया। तब राहत की सांस ली गई। इसलिए भी कि नक्सली सामने नहीं आए।