Dumka: बारिश थमने के साथ ही दुमका के कुम्हारों की चाक ने पकड़ी रफ्तार
4 तारीख को दिवाली है और इसकी तैयारी जोर शोर से दुमका में शुरू हो गई है। जिस तरह से भारत में चाइना का विरोध किया जा रहा है इस बार कुम्हारों के मिट्टी के बर्तन का कारोबार खूब चलने की उम्मीद जताई जा रही है।
जागरण संवाददाता, दुमका : चार नवंबर को दीवाली है। सो, दीवाली की तैयारियां शुरु हो गई है। कुम्हारों की चाक भी धीरे-धीरे रफ्तार पकड़ने लगा है। दुमका शहर के राखाबनी, रसिकपुर, रेलवे स्टेशन रोड, खिजुरिया, लक्खीकुंडी में कुम्हारों की आबादी है। सालों भर जरूरत के हिसाब से यहां मिट्टी के बर्तन, चाय की चुक्कड़ और विभिन्न पर्व-त्योहारों के लिए जरूरत के हिसाब दीये व अन्य सामग्रियां तैयार करते हैं।
अभी दीवाली के दीयों के लिए इनका चाक घूम रहा है। हालांकि बीते चार की लगातार बारिश से कुम्हारों में थोड़ी मायूसी जरूर है। बारिश के कारण मिट्टी गिला हो गया है। इसकी वजह से इसे सूखा कर फिर से फूलाने की जरूरत पड़ रही है। इसकी वजह से
इन्हें दीया तैयार करने में भी विलंब हो रहा है।
10 हजार दीया तैयार करने में कम से कम लगता है एक सप्ताह
राखाबनी के रामदेव पंडित कहते हैं कि 10 हजार दीया तैयार करने में करीब एक सप्ताह का वक्त लगता है। रामदेव के मुताबिक एक दिन में चाक चलाकर दो हजार कच्चा दीया तैयार होता है। इसके बाद इसके सूखाने व फिर पकाने में भी वक्त लगता है। दीयों को तैयार करने में खर्च के बाबत रामदेव बताते हैं कि मेहनत के हिसाब से मजूरी कर मिलता है बाबू। अब 1200 रुपये में एक ट्रैक्टर मिट्टी खरीदते हैं। इससे
30 हजार दीया तैयार हो जाता है। 30 हजार दीया तैयार करने में मेहनत-मजदूरी, कोयला, गोयठा, पुआल मिलाकर 12 से 15 हजार रुपये खर्च होता है। तैयार दीया की कीमत बाजार में एक रुपये या इससे कम ही मिलता है। पिछले साल दीवाली में 60 रुपये सैकड़ा दीया बिका था। इस बार महंगाई को देखते हुए उम्मीद है कि 80 रुपये सैकड़ा बिक जाए। तकरीबन 90 वर्ष की आयु में भी दीया व पूजन सामग्री तैयार करने वाले गणेश पंडित कहते हैं कि अब पहले वाली बात नहीं है। बस परंपरा का निर्वहन कर रहे हैं। नई पीढ़ी तो इस परंपरागत पेशे से दूर हो चले हैं।
दीवाली में दुमका बाजार में पांच लाख दीये की खपत
दीवाली में दुमका बाजार में पांच लाख दीये की खपत हो पाती है। चायनीज बल्ब और अन्य रोशनी की सामग्रियों की वजह से मिट्टी के दीयों की खपत कम होती है। दुमका बाजार में शहरी क्षेत्र के अलावा देवघर के पालोजोरी, सारठ से दीया लाकर बेचा जाता है। इसके अलावा फैंसी दीये पश्चिम बंगाल से भी आते हैं।
वर्जन
परंपरागत पेशा भारी पड़ने लगा है। चायनीज बाजार के कारण अब मिट्टी के दीयों की प्रचलन कम हो गई है। दीवाली पर सीमित मात्रा में ही दीया बनाते हैं। इस बार बारिश के कारण इसमें भी परेशानी हो रही है।
रामधनी पंडित, राखाबनी, दुमका
हर साल दीवाली पर दीया बनाते हैं। इससे कुछ आमदनी जरूर हो जाती है लेकिन मेहनत के अनुरूप आमदनी नहीं होती है। दुमका बाजार में मिट्टी के दीयों की मांग दीवाली में रहती है।
गजेंद्र पंडित, राखाबनी, दुमका