Jharkhand Politics: जल, जंगल और जमीन के नाम पर बहुत हुई राजनीति, अब संताल को चाहिए जवाब

संताल परगना झामुमो का गढ़ है। दुमका से मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के भाई बसंत सोरेन विधायक हैं। बगल की सीट जामा से उनकी भाभी सीता सोरेन विधायक हैं। मुख्यमंत्री बरहेट विधानसभा का प्रतिनिधित्व करते हैं। भाजपा ने सोरेन परिवार के खिलाफ सत्याग्रह छेड़ रखा है।

By MritunjayEdited By: Publish:Wed, 04 Aug 2021 08:15 AM (IST) Updated:Wed, 04 Aug 2021 08:26 AM (IST)
Jharkhand Politics: जल, जंगल और जमीन के नाम पर बहुत हुई राजनीति, अब संताल को चाहिए जवाब
भाजपा के सत्याग्रह में भाग लेते बाबूलाल मरांडी ( फोटो जागरण)।

राजीव, दुमका। 15 नवंबर 2000 में बिहार से अलग होकर बना झारखंड अब 21 वर्ष का हो चुका है। मतलब नौजवान और बालिग भी। अब भी अगर झारखंड को सही दिशा नहीं मिल सका तो तय है कि आने वाले दिनों में यहां की दशा और बिगड़ जाए। अब तक झारखंड की राजनीति जल, जंगल और जमीन के इर्द-गिर्द ही घूम रही है। आबुआ राज का सपना कोसों पीछे छूटता जा रहा है। जिस खनिज संपदा के दम पर झारखंड को अमीर राज्य पुकारा जाता रहा है, उस संपदा का दोहन भी यहां की गरीब, दबे-कुचले और आदिवासी-मूलवासियों के ललाट को नहीं चमका सका है। इसके पीछे के कारणों को हर कोई समझ रहा है। राजनीति दलों के नेता भले ही जल, जंगल और जमीन को आगे रखकर भले ही अपनी राजनीति सधे अंदाज में साध रहे हैं लेकिन इनकी खूंट चालों को भी झारखंड की जनता समझ रही है लेकिन इनकी जुबां जरूरतों के आसरे खामोश है।

कोरोना काल में सामने आई कड़वी सच्चाई

झारखंड के संताल में युवाओं की हालत बदहाल है। कोविड-19 की मार से हर तरफ त्राहिमाम की स्थिति है। सरकारी नौकरी, स्वरोजगार, रोजगार सृजन के नाम पर होने वाले दावों से इतर झारखंड की कड़वी सच्चाई अब भी पलायन ही है। विस्थापन की लड़ाई और पलायन की लाचारी के बीच झारखंड की आबादी इस कदर गूंथ दिया गया है कि इसे सुलझाना असहज हो चला है। झारखंड में न तो जल, ना ही जंगल और नहीं जमीन की कमी है लेकिन बावजूद इसके यहां के धरती पुत्र अगर पलायन को विवश हैं तो निसंदेह सत्ता चलाने वालों के नियत में खोट है। राज्य में जमीन की सुरक्षा कवच एसपीटी एवं सीएनटी एक्ट की धज्जियां उड़ाकर जमीन की हरि बोल भी झारखंड गठन के बाद ही तेज हुई है जो अब तो थमने का नाम ही नहीं ले रहा है। जमीन की लूट में सफेदपोश, अफसर और बिचौलियों की तिकड़ी का खूब नाम उछल रह है।

संताल से ही झामुमो को मिली पहचान और ताकत

वर्तमान हालत पर नजर डालें तो 80 के दशक में जिस जल, जंगल, जमीन और महाजनी प्रथा को सामने रखकर झामुमो सुप्रीमो और अलग झारखंड राज्य के गठन अगुवा शिबू सोरेन ने फर्श से अर्श की राजनीतिक ऊंचाईयों को तय किया है उस पदचिह्न के समानांतर भले ही यहां की दूसरी राजनीतिक पार्टियां एक लकीर खींचने की जुगत में लगे हुए हैं लेकिन इसे साधना अब भी दूर की कौड़ी है। हालांकि जिस तरीके से झामुमो की राजनीति में तेज बदलाव की बयार बह रही है वह भी शिबू सोरेन के दौर में झामुमो के लिए तय नीतियां व सूत्र वाक्यों से दूर हो चली है। सत्ता की मिठास से झामुमो के संघर्ष की पृष्ठभूमि पर एक परत जमने का संकेत मिल रहा है और इसी संकेत को झामुमो के विरोधी दल अपने लिए उम्मीद मानकर आगे बढ़ने के फिराक में है।

झामुमो को घरने में जुटी भाजपा

झामुमो की राजनीतिक जमीन संताल परगना प्रमंडल और झारखंड की उपराजधानी दुमका में भाजपा नेत्री व पूर्व मंत्री डा.लुइस मरांडी की अगुवाई में जल, जंगल और जमीन की लड़ाई को सामने रखकर पांच दिवसीय सत्याग्रह आंदोलन के जरिए झामुमो के नेतृत्व में चल रही हेमंत सोरेन की सरकार पर प्रहार के कई मायने हैं। जिससे सबसे ऊपर झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन के इस अभेद दुर्ग में सेंधमारी है। कारण झामुमो के यहां के 18 विधान सभा सीटों में से 10 पर काबिज है। जबकि सत्ता में सहयोगी कांग्रेस के पास चार और चार सीट भाजपा के पास है। खास बात यह कि राजनीति में शिबू सोरेन के चीर प्रतिद्वंदी कहे जाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री व भाजपा में फिर से वापसी करने वाले बाबूलाल मरांडी खुद इस सत्याग्रह आंदोलन में दो दिन शामिल होकर हेमंत सरकार के अलावा शिबू सोरेन के परिवार पर हमला बोले हैं। भाजपा में उनकी पुनर्वापसी के बाद दुमका में यह पहला अवसर है जब बाबूलाल किसी मुद्दे को लेकर आयोजित कार्यक्रम में दो दिन मौजूद रहे हैं। बाबूलाल के अलावा दुमका के सांसद सुनील सोरेन, पूर्व मंत्री अमर बाउरी, रणधीर सिंह, सत्यानंद झा बाटुल के अलावा पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अभयकांत प्रसाद, पूर्व विधायक देवेंद्र कुंवर, मिस्त्री सोरेन, भाजपा के प्रभारी सत्येंद्र सिंह समेत कई नेता भी इस सत्याग्रह आंदोलन के गवाह बने हैं। ऐसे में अब यह देखना काफी दिलचस्प होगा कि इस पांच दिवसीय सत्याग्रह का नतीजा क्या सामने आता है।

बाबूलाल बोले - सोरेन परिवार को जनता से कोई लेना-देना नहीं

दुमका में भाजपा की ओर से अवैध खनन, खनिज संपदा की लूट व राजस्व की चोरी और विभिन्न जनमुद्दों पर फूलो- झानू चौक पर आयोजित भाजपा का पांच दिवसीय सत्याग्रह आंदोलन के पांचवें व अंतिम दिन पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने कहा कि शिबू सोरेन के परिवार को संताल परगना की जनता से कोई लेना-देना नहीं है। इन लोगों ने इस इलाके के लोगों का इस्तेमाल सिर्फ वोट बैंक के तौर पर किया है। कहा कि शिबू सोरेन का परिवार संताल परगना में यहां की जनता की समस्याओं के समाधान के लिए नहीं बल्कि पैसे वसूली के लिए आता है। बाबूलाल ने कहा कि इस सरकार को संताल परगना या राज्य के बेरोजगार युवकों की कोई चिंता नहीं है । संताल परगना का नेतृत्व सबसे ज्यादा शिबू सोरेन का परिवार करता रहा है लेकिन यहां अब तक विकास नहीं हो सका है। संताल परगना का विकास तब हुआ जब केंद्र और राज्य में भाजपा की सरकार रही। कहा कि झारखंड का विकास तभी संभव है जबकि सोरेन परिवार का बोरिया-बिस्तर समेट दिया जाएगा। इसके लिए भाजपा कार्यकर्ताओं को पूरी ताकत लगाने की जरूरत है।

प्रतिदिन लाखों रुपये अवैध खनन से हो रही उगाही

बाबूलाल मरांडी ने कहा कि शिबू सोरेन का परिवार यहां से लगातार चुनाव जीतता रहा है। दुमका जिले के शिकारीपाड़ा क्षेत्र से भी झामुमो के विधायक नलीन सोरेन लगातार चुनाव जीत रहे हैं। उनके इलाके में अवैध खनन हो रहा है लेकिन उन्हें कोई फिक्र नहीं है। उस इलाके से कोयला, बालू और पत्थर से प्रतिदिन तकरीबन 50 लाख रुपये की उगाही प्रतिदिन होती है।कहा कि इस पैसे की उगाही के लिए ही शिबू सोरेन के बहू -बेटे बीच-बीच में यहां आते हैं और उगाही के पैसे बटोर कर चले जाते हैं। उन्हें यहां की जनता के दुख -तकलीफों और उनकी समस्याओं से कोई मतलब नहीं है।

जन-जन तक पहुंचाया जाएगा आंदोलन

सत्याग्रह आंदोलन का अगुवाई कर रही पूर्व मंत्री डा.लुइस मरांडी ने कहा कि संताल परगना में हो रही लूट व भ्रष्टाचार को किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। कहा कि भाजपा अपने आंदोलन को जन-जन तक पहुंचा कर लोगों को सरकार के कृत्यों की जानकारी देगी। कहा कि हेमंत सरकार की विफलताओं को हर मोर्चा पर उजागर किया जाएगा। डा.लुइस ने कहा कि अब यहां की जनता भी समझ रही है कि सोरेन परिवार उनके विकास के लिए नहीं बल्कि अपने विकास के लिए जनता को ठग रही है।

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