शहरी बाबू नहीं, हमें देहाती बना रहने दीजिए... नगर निगम से मुक्ति के लिए झटपटा रहे JHARIA के 27 गांवों का दर्द काैन समझेगा
27 गांवों को नगर निगम से अलग करने की आवाज उठाने वाले पंचायत बचाव संघर्ष समिति के अध्यक्ष किसान कार्तिक तिवारी कहते हैं कि अब 45 गांव अलग करने की मांग कर रहे हैं। गांव शहर में शामिल क्या हुए किसानों का अर्थतंत्र चौपट हो गया।
राजीव शुक्ला, धनबाद। दूर-दूर तक लहलहाते खेत, बारिश के मौसम से हर ओर हरियाली, परिंदों का कलरव, बड़े-बड़े दरख्त और पास में एक गांव भूतगढिय़ा। शाम का वक्त हो रहा है। मवेशियों को चारा देने की तैयारी है। यहां के वाशिंदों की अपनी पीड़ा है। शहरी होने की। सोच रहे होंगे, यह क्या बात हुई। तो जान लीजिए कि शहरी होने के कारण इन ग्रामीणों के सामने जीवनयापन का गंभीर संकट है। सिर्फ यही गांव नहीं धनबाद नगर निगम में शामिल हर गांव के किसानों का यह दर्द है। शहरी बने तो किसानों को मिलनेवाली सुविधाएं छिन गईं। न चेकडैम बन रहे, न सिंचाई की योजना आ रही, तब खेती कैसे करें। सो, दस साल से 27 गांवों के करीब दस हजार किसान आवाज उठा रहे हैं, हमें नगर निगम से हटा दीजिए, पंचायत का हक दीजिए।
अब हाई कोर्ट पर सबकी नजरें
इन किसानों को अब उम्मीद जगी है। झरिया की विधायक पूर्णिमा सिंह ने दस मार्च को इस मुद्दे से मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को अवगत कराया है। इसी माह नवयुवक संघ कालीमेला ने हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर की है। 27 गांवों को नगर निगम से अलग करने की आवाज उठाने वाले पंचायत बचाव संघर्ष समिति के अध्यक्ष किसान काॢतक तिवारी कहते हैं कि अब 45 गांव अलग करने की मांग कर रहे हैं। गांव शहर में शामिल क्या हुए, किसानों का अर्थतंत्र चौपट हो गया। सब्सिडी पर बीज, खाद, कृषि उपकरण अब नहीं मिलते। खेती में सामान्य किसान की तुलना में शहर के हम ग्रामीणों को अधिक रुपये खर्च करने पड़ रहे।
ऐसे फंसे 27 गांव शहरीकरण की जाल में
साल 2010 से पहले धनबाद नगर निगम का निर्माण हुआ। तब नगर निगम के लिए 10 लाख की आबादी की अनिवार्यता थी। इसे पूरा करने के लिए धनबाद शहर के अलावा झरिया, बलियापुर, गोविंदपुर और बाघमारा अंचल के राजस्व गांवों को शामिल किया गया। इस क्रम में झरिया अंचल के सभी गांवों को एक साथ धनबाद नगर निगम में शामिल कर लिया गया। नतीजा यह हुआ कि झरिया अंचल के ठेठ गांवों पर भी नगर निगम के टैक्स का बोझ बढ़ गया है। तभी से 27 राजस्व गांवों के लोग नगर निगम से बाहर होने के लिए आंदोलन चला रहे हैं।
ये गांव हैं नगर निगम में शामिल
साल 2010 में नगर निगम बना। उस दौरान भूतगढ़िया, जीतपुर, सिरगुजा, कपूरगढ़ा, डुंगरी, बस्ताकोला, शिमलाबहाल, होरलाडीह, जोड़ापोखर, भौंरा, गौरखूंटी, मोहलबनी, नुनूडीह, नुनुकडीह, जियलगोरा, परघाबाद, राधाचक, सुदामडीह, चासनाला,पाथरडीह, सुतुकडीह, सवारडीह, डुमरियाटांड़, टासरा, भाटडीह, पारबाद, चंद्राबाद, अपर कांड्रा, हेट कांड्रा, चिटाही, रोहड़ाबांध, मनोहरटांड़, सिजुआ, भेलाटांड़, कंदुआडीह, बलिहारी, भागाबांध, जामाडोबा, लालपुर फुटाहा, भूली बस्ती, भदरीचक, बेलंजाबाद, रांगामाटी समेत 45 गांव नगर निगम में शामिल किए गए थे।
सानों की परेशानी से नगर विकास विभाग के सचिव व प्रदेश के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को अवगत कराया है। खनन क्षेत्र व ग्रामीण इलाका होने के बाद भी झरिया को नगर निगम में ले लिया। जब गांव को नगर निगम में शामिल किया जा रहा था, उस समय के जनप्रतिनिधियों ने विरोध नहीं किया। किसानों से कई सहूलियतें छीन ली गईं। सिर्फ धनबाद ही नहीं कई अन्य जिलों में भी गांवों को नगर निगम में शामिल किया गया है। भले ही कुछ समय लग जाए, मगर हम गांवों को नगर निगम से अलग कराकर दम लेंगे।
-पूर्णिमा सिंह, विधायक, झरिया विधानसभा क्षेत्र