गर पहले चेत जाते तो झारखंड के बड़े सरकारी अस्पतालों में नहीं होता Oxygen Crisis, मात्र 50 लाख में बैठता प्लांट
500 से 1000 बेड के अस्पतालों के लिए 10 केएल का ऑक्सीजन प्लांट सामान्य समय के लिए उपयुक्त है । इसमें 30 लाख के उपकरण लगते हैं। 15 से 20 लाख रुपए इंस्टॉलेशन चार्ज लगता है। मात्र दो माह का समय लगता है। झारखंड में सिर्फ BGH में है।
बोकारो [ बीके पांडेय ]। आज जिस प्रकार ऑक्सीजन के लिए मारामारी हो रही है, यदि कोरोना की पहली लहर आते ही सजग हो जाते तो ऐसे भयावह हालात नहीं होते। सरकारें एक दूसरे पर तोहमत लगा रही हैं । सच्चाई यह है कि राज्य सरकारों व तंत्र ने इस दिशा में ध्यान नहीं दिया । झारखंड की बात करें तो छोटे अस्पतालों को छोड़ दें तब भी पहले के तीन मेडिकल कॉलेज और नए खुले तीन मेडिकल कॉलेजों में 30 से 50 लाख के खर्च पर ऑक्सीजन प्लांट लग जाता। एकीकृत ऑक्सीजन सप्लाई सिस्टम तैयार हो जाता। तब यह स्थिति कतई न होती। बोकारो जनरल अस्पताल को देखें तो यहां इसी प्रणाली के कारण ऑक्सीजन की कमी नहीं है।
रिम्स और एसएनएमएमसीएच में लगाया जा सकता था प्लांट
प्रत्येक मेडिकल कॉलेज में साल में इतनी राशि का फर्नीचर खरीद लिया जाता है मगर जीवन रक्षक ऑक्सीजन के लिए सार्थक कदम न उठाए गए। अब कोरोना काल में स्थिति बिगड़ी है तो राजधानी रांची समेत कई जिले बोकारो पर नजर लगाए हैं। राज्य में सबसे अधिक मरीजों की भर्ती होने से लेकर उनकी जांच और उनके इलाज का काम रिम्स में होता है। धनबाद में मेडिकल कॉलेज है, मगर यहां भी सरकार ने ध्यान नहीं दिया। यदि इसकी व्यवस्था होती तो रिम्स व शहीद निर्मल महतो मेडिकल कॉलेज अस्पताल धनबाद के मरीज ऑक्सीजन की किल्लत न झेलते।
यह है प्लांट लगाने का खर्च
500 से 1000 बेड के अस्पतालों के लिए 10 केएल का ऑक्सीजन प्लांट सामान्य समय के लिए उपयुक्त है । इसमें 30 लाख के उपकरण लगते हैं। लगाने में 15 से 20 लाख रुपए इंस्टॉलेशन चार्ज लगता है। मात्र दो माह का समय लगता है। बिहार, बंगाल के कई अस्पतालों में यह व्यवस्था है। यहां बोकारो जनरल अस्पताल में है। बियाडा औद्योगिक क्षेत्र में ऑक्सीजन प्लांट चलाने वाले राकेश कुमार गुप्ता का कहना है कि उनकी कंपनी झारखंड स्टील ऑक्सीजन प्लांट लगाने से लेकर उसके अनुरक्षण का काम करती है। फिलहाल बिहार के दानापुर , बक्सर में प्लांट को स्थापित कराने एवं उसके संचालन का काम किया है। बियाडा में उनकी इकाई पर उन्हें औद्योगिक सिलिंडर बनाने की अनुमति है।
2020- 21 में बिकी थी 6116 टन मेडिकल ऑक्सीजन
बोकारो से प्रत्येक दिन लगभग 700 से 800 टन तरल ऑक्सीजन देश की अलग-अलग औद्योगिक इकाइयों को बेचा जाता है । वहां से वर्ष 2020- 21 में मात्र 6116 टन तरल ऑक्सीजन मेडिकल उपयोग के लिए बेची गई । पूरे वर्ष में प्रत्येक दिन की मांग औसतन 16 से 17 टन ही थी । अप्रैल 2021 माह में कोरोना चरम पर है और ऑक्सीजन की मांग बढ़ी है, तब भी 40 टन के खरीदार ही आए।
सिलेंडर बनाने का खर्च व बिक्री
एक टन तरल आक्सीजन बॉटलिंग करने वाली कंपनियां आइनोक्स या लिंडसे या फिर सेल से 6300 रुपये में खरीदती हैं। इसे सात क्यूबिक मीटर के 100 सिलिंडर में भरा जाता है। बॉटलिंग , प्रोसेसिंग व अन्य खर्च 100 रुपये होता है। बाजार में बॉटलिंग प्लांट के आपूर्तिकर्ता 250 रुपये से लेकर 300 रुपये तक में बेचते हैं। इस सिलिंडर से चौबीस घंटे से अधिक गैस एक व्यक्ति को दे सकते हैं।