एनएसयूआइ ने एनएमपी नीति को लेकर केंद्र सरकार पर साधा निशाना, कांग्रेस का बचाव
रजनीकांत के अनुसार सरकार ने दिसंबर 2019 में राष्ट्रीय अवसंरचनात्मक पाइपलाइन (एनआइपी) प्रोग्राम घोषित किया था। जिसका प्रमुख उदेश्य अगले पांच वर्षों में (2020-2025) अवसंरचात्मक क्षेत्र में कुल 111 लाख करोड़ का निवेश करना है यानी प्रतिवर्ष 21 लाख करोड़ रुपये के निवेश को आधिकारिक संरचना क्षेत्र में किया जाएगा।
जागरण संवाददाता, धनबाद। देश के समावेशी विकास के लिए अवसंरचनात्मक क्षेत्र का विकास होना अनिवार्य व आवश्यक है। इसी उद्देश्य को केंद्र में रखकर केंद्र सरकार ने इसी वर्ष 23 अगस्त को राष्ट्रीय मोद्रीकरण पाइपलाइन (एनएमपी) नीति की घोषणा की। इसके अंतर्गत सरकार ने देश की सार्वजनिक संपत्तियों का मोद्रिकरण करके अगले चार वर्षो में कुल छह छह लाख करोड़ यानी प्रति वर्ष डेढ़ लाख करोड़ रुपये के राजस्व प्राप्ति का लक्ष्य निर्धारित किया है। विडंबना यह है कि केंद्र सरकार ने सार्वजानिक संपतियों, इकाइयों के मौद्रिकरण में विपक्ष, सिविल समाज, सरकार व निजी संगठनों की न तो सहमति ली और न ही उन्हें विश्वास में लिया। देश की सार्वजनिक इकाइयों व संपत्तियों का इस प्रकार मौद्रिकरण करना देश की अर्थवयवस्था और विशेष तौर पर असंगठित क्षेत्र के हितार्थ में नहीं है। यह कहना है एनएसयूआइ के राष्ट्रीय संयोजक रजनीकांत तिवारी का। एनएसयूआइ की राष्ट्रीय कनवीनर धनबाद निवासी आरूषि वंदना सिंह यह बयान जारी करते हुए बताया कि रजनीकांत तिवारी उत्तर प्रदेश, झारखंड समेत अन्य राज्यों में युवाओं एवं छात्रों के हित की लड़ाई लड़ चुके हैं।
रजनीकांत के अनुसार सरकार ने दिसंबर 2019 में राष्ट्रीय अवसंरचनात्मक पाइपलाइन (एनआइपी) प्रोग्राम घोषित किया था। जिसका प्रमुख उदेश्य अगले पांच वर्षों में (2020-2025) अवसंरचात्मक क्षेत्र में कुल 111 लाख करोड़ का निवेश करना है, यानी प्रतिवर्ष 21 लाख करोड़ रुपये के निवेश को आधिकारिक संरचना क्षेत्र में किया जाएगा। इसी उद्देश्य के लिए केंद्र सरकार ने इस वर्ष के वित्तीय बजट (2021-22) में एनएमपी की घोषणा की। यह एनआइपी कार्यक्रम के अंतर्गत 15-18 प्रतितशत राजस्व की आपूर्ति करेगा। सूची में शामिल संपत्ति केंद्र सरकार के इस विशाल विक्रय कार्यक्रम में विशेष तौर पर तीन सार्वजानिक संपत्तियों को ज्यादा प्राथमिकता दी है। इसमें सड़क (27 फीसद), रेलवे (25) और विद्युत हस्तांतरण (आठ फीसद) शामिल है। देश के प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री सार्वजनिक संपत्ति के अनुपात को शून्य करने का कार्य कर रहे हैं। देश में निजीकरण व विनिवेश की नीति की शुरुआत वर्ष 1991 से भीमकाय आर्थिक सुधार के साथ हुई थी। इनका प्रमुख उद्देश्य राजस्व प्राप्त करना और अन्य वैकल्पिक लक्ष्य के तौर पर पूंजी निवेश को बढ़ाना, बाजार के दायरे को वृहद करना, आधुनिक तकनीकों के शामिल करना था। इन सभी उदेश्यों की प्राप्ति वैधानिक मानदंडों को केंद्र में रखकर की गई थी, जबकि वर्तमान सरकार के इस तथाकथित एनएमपी प्रोग्राम में इन मापदंडों को दरकिनार किया गया है।