Weekly News Roundup Dhanbad: यह बहुत नाइंसाफी है... खोलो शौचालय का ताला

नगर निगम में मौखिक आदेश पर खेल नई बात नहीं है। अब ऐसे आदेश पर सोच समझकर अमल करना। दरअसल 2017 का प्रकरण तो नहीं भूले होंगे। पूर्व मेयर की स्कॉर्पियो के चारों पहिए खोल लिए गए थे।

By MritunjayEdited By: Publish:Sat, 27 Feb 2021 11:59 AM (IST) Updated:Sat, 27 Feb 2021 12:06 PM (IST)
Weekly News Roundup Dhanbad: यह बहुत नाइंसाफी है... खोलो शौचालय का ताला
पेट्रोल पंपों पर ग्राहकों के लिए शौचालय सुविधा।

धनबाद [ आशीष सिंह ]। हर पेट्रोल पंप पर शौचालय की व्यवस्था होती है। यह दीगर है कि कई जगह उसमें ताला लगा होता है। वह इसलिए भैया कि आम लोग दूरी बनाए रखें। मगर क्या जानते हैं कि शौचालयों के मेंटेनेंस का शुल्क कौन देता है। अरे आप ही देते हैं, चौंक गए ना, जब आप किसी पेट्रोल पंप से डीजल या पेट्रोल खरीदते हैं तो उसमें शौचालय का मेंटेनेंस शुल्क भी ले लिया जाता है। बाकायदा प्रतिलीटर पेट्रोल पर शुल्क छह पैसे और प्रतिलीटर डीजल पर चार पैसे। इससे पंप संचालकों को अच्छी खासी आय हो जाती है। एक पेट्रोल पंप हर माह औसतन एक लाख 80 हजार लीटर पेट्रोल-डीजल बेचता है। यानी शौचालयों की देखभाल के लिए नौ हजार रुपये का कमीशन उसे मिल ही जाता है। इसलिए पेट्रोल पंप के शौचालयों के मेंटेनेंस में उसके ग्राहक का भी योगदान है। इस बात को गांठ बांध लें।

मौखिक आदेश, ना बाबा ना

नगर निगम में मौखिक आदेश पर खेल नई बात नहीं है। अब ऐसे आदेश पर सोच समझकर अमल करना। दरअसल 2017 का प्रकरण तो नहीं भूले होंगे। पूर्व मेयर की स्कॉर्पियो के चारों पहिए खोल लिए गए थे। टायर के बिल का भुगतान नहीं हुआ तो उस कंपनी ने यह कारनामा किया था। बिल रोकने का तर्क था कि लिखित तौर पर टायर की स्वीकृति नहीं ली गई। इस बार सर्विसिंग का जिन्न निकला है। नगर निगम में मङ्क्षहद्रा कंपनी की नौ गाडिय़ां हैं। इन गाडिय़ों की सर्विङ्क्षसग के मद में साढ़े छह लाख रुपये का बिल निगम भेजा गया। बिल देख नगर आयुक्त सत्येंद्र कुमार की छठी इंद्री जागृत हुई। खोजबीन में पता चला,  पूर्व नगर आयुक्त के समय मौखिक आदेश से सर्विङ्क्षसग की अनुमति मिली। कुमार साहब ने बिल रोक दिया। नतीजा गलियों तक सरगोशियां हो रहीं, मौखिक आदेश, ना बाबा ना।

यहां भी कमाई की नीयत

धनबाद में डोर टु डोर कचरा कलेक्शन को एजेंसी काम कर रही है। बरटांड़ बस स्टैंड को नगर निगम ने खाली कराया है। यहां एजेंसी कचरा डंप करती थी। अंबार लग जाने पर इसे स्टैंड से उठाकर अन्यत्र भेज दिया गया। साहब ने एजेंसी को निर्देश दिया कि अब वहां कचरा तो है नहीं, कुछ  मिट्टी के साथ मिला है तो उसे समतल कर दें। साहब का निर्देश मिला तो एजेंसी रेस हो गई, इसलिए और कि खेल का मौका मिला। समतल करने की जगह बाकायदा कचरे का बिल दे दिया। दो हजार रुपये प्रति टन के हिसाब से। अब 27 टन कचरे का बिल देख साहब की आंखें लाल हो गईं। बिल रोक दिया। चेतावनी दी कि दोबारा ऐसा हुआ तो एकरारनामा रद। इससे कंपनी की किरकिरी खूब हुई। कहने वालों का भी मुंह बंद नहीं हो रहा, कमाई की ऐसी नीयत ठीक नहीं।

जहां मौका वहां चौका

नगर निगम कुछ सुविधाएं हैं तो कुछ का इंतजार है। अब सेप्टेज प्रबंधन की बात करते हैं। सेप्टिक टैंक से निकलने वाली गंदगी (मल-मूत्र) को डिस्पोज करने की नगर निगम के पास कोई व्यवस्था नहीं। यहां के टैंकर जहां मौका मिलता है वहीं चौका जड़कर सरक लेते हैं। सेप्टिक टैंक की सफाई करने वाले दो दर्जन अवैध टैंकर भी यही कारनामा कर रहे हैं। गली हो या मैदान, गंदगी फेंकने में नहीं चूकते।  रात में खेल अक्सर होता है। उस वक्त सब सो रहे होते तो बल्लेबाजी में आउट होने का डर नहीं रहता। दिन में करेंगे तो जनता गेंदबाजी कर सकती है। 15 वर्ष से ऐसे ही सेप्टेज प्रबंधन हो रहा है। यह अपशिष्ट सेहत के लिए बहुत खतरनाक होता है, मगर किसी को चिंता नहीं। जनप्रतिनिधियों को न अधिकारियों को। हां जहां चौका पड़ता है वहां की जनता जरूर कई दिन भन्नाई रहती है। 

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