हेडफोन बना रहा कोयलांचल को बहरा, बढ़ रहे मरीज

हीरापुर के 21 वर्षीय विजय कुमार को गाने सुनने का खूब शौक है। लेकिन पिछले कुछ दिनों ने दाहिने काम में परेशानी हो रही है। कुछ स्पष्ट नहीं सुनाई दे रहा है पहले तो लगा इयरफोन खराब हो गया है लेकिन समस्या बरकरार रहने पर उसने एसएनएमएमसीएच के इएनटी (नाम कान व गला) रोग विभाग में दिखाया।

By JagranEdited By: Publish:Wed, 03 Mar 2021 05:32 AM (IST) Updated:Wed, 03 Mar 2021 05:32 AM (IST)
हेडफोन बना रहा कोयलांचल को बहरा, बढ़ रहे मरीज
हेडफोन बना रहा कोयलांचल को बहरा, बढ़ रहे मरीज

मोहन गोप, धनबाद : हीरापुर के 21 वर्षीय विजय कुमार को गाने सुनने का खूब शौक है। लेकिन पिछले कुछ दिनों ने दाहिने काम में परेशानी हो रही है। कुछ स्पष्ट नहीं सुनाई दे रहा है, पहले तो लगा इयरफोन खराब हो गया है, लेकिन समस्या बरकरार रहने पर उसने एसएनएमएमसीएच के इएनटी (नाम, कान व गला) रोग विभाग में दिखाया। यहां ऑडियोलॉजी जांच में हेयरिग डिसऑर्डर से ग्रसित पाए गए। दरअसल, विजय की तरह धनबाद में आबादी का लगभग 40 फीसदी लोग मोबाइल व अन्य गैजेट्स से म्यूजिक सुनना पसंद करते हैं। कोयलांचल में कई लोग तेजी से सुनने संबंधी समस्याओं से ग्रसित पाए जा रहे हैं। इसमें लगातार ऊंची आवाज वाले क्षेत्र, हेड या इयरफोन पर घंटों गाने सुनना, इंफेक्शन से कोयलांचल में लोग बहरेपन की शिकायत कर रहे हैं। एसएनएमएमसीएच के इएनटी में हर दिन 100 के आसपास मरीज आ रहे हैं। 10 बहरेपन की समस्या से ग्रसित मिल रहे हैं। हेडफोन कभी कभी जेट प्लेन से भी ज्यादा करता है शोर : एसएनएमएमसीएच के इएनटी विभागाध्यक्ष डॉ. एके ठाकुर बताते हैं कि हेडफोन से नुकसान का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि एक जेट प्लेन या खचाखच भरा फुटबॉल स्टेडियम भी जैसे शोर कानों तक यह कर देता है। लगातार 15 मिनट तक भी तेज में म्यूजिक सुनने पर बहरापन का खतरा पैदा हो सकता है।

80 डेसिबल तक ही बर्दाश्त करने की क्षमता : डॉ. ठाकुर बताते हैं कि हमारा कान 80 डेसिबल स्तर तक ही शोर को बर्दाश्त कर सकता है। इससे ज्यादा शोर खतरनाक होते हैं। कान से दिमाग तक इलेक्ट्रिक सिग्नल पहुंचाने वाले नर्व सेल पर मेलिन शीट नाम की कोटिग होती है। यह इलेक्ट्रिक सिग्नल को सेल के साथ आगे बढ़ने में मदद करती है। अगर 110 डेसिबल लेवल से ज्यादा का साउंड सुनते हैं, तो इससे मेलिन परत फट सकती है, जिससे इलेक्ट्रिक सिग्नल का प्रभावित होने का खतरा बन जाता है। मतलब यह हुआ है कि नर्व सेल कान से दिमाग तक सिग्नल पहुंचाने में अक्षम हो जाते हैं। जानिए धनबाद में कितने लोग कानों की समस्या से परेशान

एसएनएमएमसीएच के अडियोलाजिस्ट गणेश चक्रवर्ती बताते हैं कि इयरफोन, वाहनों के तेज ध्वनि, प्रदूषण से भी बहरापन बढ़े हैं। ऑडियोलॉजी जांच के बाद पता चला कि धनबादवासी तेजी से बहरेपन के शिकार हो रहे हैं। -हर 10 में एक व्यक्ति कान की समस्या से परेशान

-8 फीसदी की स्पष्ट सुनने की क्षमता पर फर्क पड़ा रहा

सात प्रतिशत लोगों ने कान में सीटियां बजने की शिकायत

-4.5 प्रतिशत कानों को ब्लाक महसूस कर रहे

-5.6 फीसदी के कानें में भारीपन महसूस हो रहा जानिए कितने झेल सकते हैं कान

-60-65 डेसिबल : आम बातचीत में यह ध्वनि पैदा होता है, खतरनाक नहीं है।

-124 डेसिबल : इस स्तर के या इससे ज्यादा के शोर से कानों में दर्द होने लगता है

140 डेसिबल : इस स्तर के शोर में रहने से व्यक्ति बहरा हो सकता है। वर्जन

कान हमारे शरीर का सबसे नाजुक अंग है। 80 डेसिबल के ऊपर कानों को हानि पहुंचने लगता है। धनबाद में बैंक मोड़, स्टील गेट, कचहरी, सिटी सेंटर जैसे इलाके में कभी कभी 80 डेसिबल ध्वनि सुनाई पड़ता है। बाकी कसर कानों में लगाए जाने वाले हेडफोन या इयरफोन लोगों को तेजी से बहरा कर रहा है।

डॉ. एके ठाकुर, विभागाध्यक्ष, इएनटी, एसएनएमएमसीएच आज शिविर का आयोजन

इएनटी विभाग में विश्व श्रवण दिवस पर शिविर का आयोजन किया गया है। शिविर सुबह दस बजे शुरू होगा। इसमें बहरेपन की जांच विभिन्न एडवांस मशीनों से की जायेगी।

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