Bihar की प्रशासनिक कमजोरी का फायदा उठा झारखंड में नेटवर्क मजबूत करने में जुटे नक्सली, सीमावर्ती इलाकों में बढ़ा खौफ
झारखंड के गिरिडीह की सीमा के उस पार बिहार में 60 किमी. की दूरी पर पहला थाना चकाई है। इस कमजोरी का फायदा माओवादी उठा रहे हैं। गिरिडीह से सटे बिहार के इलाके मेंं माओवादियों का दस्ता आराम से रहता है। बिहार से आकर हिंसा व लेवी वसूलता है।
गिरिडीह [ दिलीप सिन्हा ]। बिहार के जमुई जिले एवं झारखंड के गिरिडीह जिले के भेलवाघाटी, देवरी, तिसरी एवं गावां थाना क्षेत्रों को मिलाकर माओवादियों ने सीमांचल जोन बनाया है। इस जोन में माओवादी जमकर उत्पात मचाते हैं और लेवी वसूलते हैं। इस इलाके में खूब खून खराबा भी किया है। भेलवाघाटी एवं चिलखारी जैसे नरसंहार इसी इलाके में माओवादियों ने किए हैं। पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी के पुत्र की जान चिलखारी नरसंहार में जा चुकी है। इन दो नरसंहारों के बाद झारखंड ने अपने इलाके में जगह-जगह सीआरपीएफ कैंप व थाना खोल दिए हैं। इस सीमांचल जोन में झारखंड ने औसतन आठ से दस किमी. की दूरी पर थाना व सीआरपीएफ कैंप खोले हैं। बिहार की स्थिति इसके ठीक विपरीत है।
गिरिडीह और चकाई की लगती सीमा
झारखंड की सीमा के उस पार बिहार में 60 किमी. की दूरी पर पहला थाना चकाई है। इस कमजोरी का फायदा माओवादी उठा रहे हैं। गिरिडीह से सटे बिहार के इलाके मेंं माओवादियों का दस्ता आराम से रहता है। बिहार से आकर यही दस्ता झारखंड में हिंसा व लेवी वसूलता है। इसके बाद आराम से सुरक्षित बिहार निकल जाता है। चकाई से पुलिस को गिरिडीह से सटे अपने इलाके में आने के लिए गिरिडीह के देवरी होकर पहुंचना पड़ता है। इस कारण, बिहार पुलिस का माओवादियों के इस इलाके में कोई दबदबा नहीं बन पाता है। इसका नतीजा है कि मात्र दर्जनभर माओवादी इस जोन में झारखंड एवं बिहार दोनों ओर आतंक बरपा रहे हैं। पींटू राणा एवं करूणा दी के दस्ते पर दोनों राज्यों की पुलिस लाख कोशिश के बावजूद अंकुश नहीं लगा पा रही है। दोनों के खिलाफ झारखंड एवं बिहार सरकार ने इनाम घोषित कर रखे हैं।
चिलखारी-भेलवाघाटी नरसंहार के बाद खोले गए थाना व सीआरपीएफ कैंप
बिहार की सीमा से सटे गिरिडीह जिले के भेलवाघाटी एवं चिलखारी नरसंहार से झारखंड सरकार हिल गई थी। इस इलाके में थाना और सीआरपीएफ कैंप खोलने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने सरकार पर दबाव बनाया था। इसका नतीजा हुआ कि भेलवाघाटी, लोकाय नयनपुर, मंसाडीह, द्वारपहरी, थानसिंह रायडीह, खटपोंक में सीआरपीएफ कैंप खुल गए। जगह-जगह सीआरपीएफ कैंप एवं थाना खुलने से माओवादी दस्ता का इस इलाके में आराम से घूमना कम हो गया। पुलिस का दबाव बना। माओवादियों ने भी अपनी रणनीति बदल ली। माओवादी अब बिहार से आकर यहां कांड को अंजाम देकर वापस बिहार लौट जाते हैं।
गिरिडीह होते हुए अपने इलाके में पहुंचती है बिहार पुलिस
झारखंड में जहां आठ से दस किमी. की दूरी पर थाना व सीआरपीएफ कैंप है, वहीं बिहार की स्थिति इसके ठीक विपरीत है। गिरिडीह जिला से सटा बिहार के जमुई जिला का बरमोरिया पंचायत है। यह चकाई थाना अंतर्गत पड़ता है और माओवादियों का गढ़ है। चकाई थाना पुलिस को यहां तक पहुंचने के लिए गिरिडीह जिले के चतरो देवरी से भेलवाघाटी होते हुए जाना पड़ता है। यहां तक पहुंचने के लिए 60 किमी. का सफर चकाई थाना पुलिस को तय करना पड़ता है। आवागमन की इस कमी को देखते हुए चकाई थाना के एक पुलिस अधिकारी को गिरिडीह जिले के भेलवाघाटी थाना में तैनात किया जाता है। बरमोरिया पंचायत में कोई घटना घटने पर यह अधिकारी भेलवाघाटी थाना एवं सीआरपीएफ कैंप से जवानों को लेकर वहां जाते हैं। आवागमन की इस कमजोर का भरपूर फायदा माओवादी उठाते हैं।