बड़े भाग मानुष तन पावा; Dhanbad के दो हजार से भी अधिक लोगों ने आनंदमार्गी एप के जरिए ल‍िया आध्यात्मिक आनंद

आनंद मार्ग के प्रवर्तक तारक ब्रह्म श्रीश्री आनंदमूर्ति के जन्मशताब्दी वर्ष आनंद पूर्णिमा के पावन अवसर पर आयोजित धर्म महासम्मेलन के तीसरे दिन धनबाद एवं इसके आसपास के दो हजार से भी अधिक आनंदमार्गी एप के जरिए आध्यात्मिक आनंद लिया।

By Atul SinghEdited By: Publish:Wed, 09 Jun 2021 12:31 PM (IST) Updated:Wed, 09 Jun 2021 12:52 PM (IST)
बड़े भाग मानुष तन पावा; Dhanbad  के दो हजार से भी अधिक लोगों ने आनंदमार्गी एप के जरिए ल‍िया आध्यात्मिक आनंद
आनंद मार्ग के प्रवर्तक तारक ब्रह्म श्रीश्री आनंदमूर्ति के जन्मशताब्दी वर्ष आनंद पूर्णिमा के अवसर पर धर्म महासम्मेलन। (प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर)

धनबाद, जेएनएन : Dhanbad Newsआनंद मार्ग के प्रवर्तक तारक ब्रह्म श्रीश्री आनंदमूर्ति के जन्मशताब्दी वर्ष आनंद पूर्णिमा के पावन अवसर पर आयोजित धर्म महासम्मेलन के तीसरे दिन धनबाद एवं इसके आसपास के दो हजार से भी अधिक आनंदमार्गी एप के जरिए आध्यात्मिक आनंद लिया।

पुरोधा प्रमुख आचार्य विश्वदेवानन्द अवधूत ने साधकों से कहा कि परमपुरुष अविकार सत्ता है। वह चाहे तो विष को अमृत और अमृत को विष कर सकते हैं। किसी भी अवस्था में सुख-दुख से प्रभावित नहीं होते हैं। मनुष्य उसी सत्ता को जानने के लिए अनेकानेक धातों-प्रतिघातों के मध्य से गुजर कर मानव देह धारण करता है।

देह प्राप्त होने पर भी वह उस देह का उपयोग आध्यात्मिक साधना के लिए नहीं करता है तो वह निश्चय ही मूर्ख है। ऐसा नहीं करता है तो वह उस प्राप्त क्षमता का उपयोग नहीं कर रहा है। आत्मस्वरूप को अनुभूत करना ही आत्मज्ञान है। इस आत्मज्ञान को प्राप्त करने के लिए तीव्र इच्छा पैदा करनी होगी और उस परम सत्ता परम पुरुष के प्रति प्रेम पैदा करनी होगी। इसी साधना और प्रक्रिया के द्वारा आत्मज्ञान प्राप्त करके मुक्ति लाभ करना बुद्धिमान मनुष्य की पहचान है। इस अवसर पर आनंद मार्ग यूनिवर्सल रिलीफ टीम (अमर्ट) ग्लोबल के केंद्रीय सचिव आचार्य अभिरामानंद अवधूत की रिपोर्ट के अनुसार कोरोना महामारी काल में भारत सहित विश्व के अनेक देशों में 25 लाख से अधिक जरूरतमंदों तक भोजन एवं मेडिकल सेवा स्वयं सेवकों के जरिए पहुंचाया गया है। अमर्ट की बैठक में आनंद मार्ग प्रचारक संघ के महासचिव आचार्य चित्तस्वरूपानंद अवधूत ने कहा कि हर आनंद मार्गी को अपने आप को सुरक्षित रखते हुए पीड़ित मानव की सेवा के लिए तत्पर रहना होगा। मानव सेवा से बड़ा पुण्य कोई और नहीं है। हर मनुष्य को इसके लिए आगे आना चाहिए। इस अवसर पर आचार्य सत्याश्रयानंद अवधूत ने भी अपने विचार रखे।

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