Mobile Game से बच्चे बन रहे हिंसक; न्यूरो ट्रांसमीटर में हो रहा बदलाव, खुद को नुकसान पहुंचाने से भी नहीं करते गुरेज

धनबाद के बाल रोग विशेषों के पास ऐसे केस आ रहे हैं जिसमें गेमिंग डिसऑर्डर की वजह से ब्रेन के न्यूरो ट्रांसमीटर में बदलाव हो रहा है। इससे बच्चों के व्यवहार में बदलाव देखने को मिला।

By Sagar SinghEdited By: Publish:Thu, 03 Sep 2020 06:38 PM (IST) Updated:Thu, 03 Sep 2020 06:53 PM (IST)
Mobile Game से बच्चे बन रहे हिंसक; न्यूरो ट्रांसमीटर में हो रहा बदलाव, खुद को नुकसान पहुंचाने से भी नहीं करते गुरेज
Mobile Game से बच्चे बन रहे हिंसक; न्यूरो ट्रांसमीटर में हो रहा बदलाव, खुद को नुकसान पहुंचाने से भी नहीं करते गुरेज

धनबाद, [आशीष सिंह]। मोबाइल गेमिंग किस कदर बच्चों पर दिन प्रतिदिन हावी होता जो रहा है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि बच्चे कुछ भी कर गुजरने को तैयार है। खुद को नुकसान पहुंचाने के साथ-साथ अपने आसपास के लोगों को भी चोट पहुंचाने से गुरेज नहीं करते। कुछ महीने पहले धनबाद का महज आठ साल के कक्षा तीसरी में पढ़ने वाला छात्र खुदकशी कर लेता है। अंतिम समय में यह बात सामने आती है कि मोबाइल गेम खेलते-खेलते कमरे चला जाता है। जब मां नाश्ते के लिए बुलाती है तो बच्चा पंखे से लटकते हुए मिलता है। विशेषज्ञ बताते हैं कि मोबाइल गेमिंग से बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हो रही है। कुछ बोलिए तो चिढ़ जाते हैं। नकारात्मक प्रभाव काफी पड़ रहा है।

दरअसल, गेम्स खेलने की लत से अटेंशन डेफिसिट डिसॉर्डर, हाइपरएक्टिविटी और स्लीप डिसॉर्डर जैसी बीमारियां घर कर रही हैं। धनबाद के बाल रोग विशेषों के पास ऐसे केस आ रहे हैं, जिसमें गेमिंग डिसऑर्डर की वजह से ब्रेन के न्यूरो ट्रांसमीटर में बदलाव हो रहा है। इसी बदलाव से बच्चों के व्यवहार में बदलाव देखने को मिलता है। पबजी को भले ही सरकार ने बैन कर दिया है, लेकिन और भी कई ऐसे ऑनलाइन गेम हैं जो बच्‍चों के लिए खतरनाक साबित हो रहे हैं। इनमें पोकेमॉन गो, द कार सर्फिंग चैलेंज, वैंपायर बीटिंग, स्त्रार्टिंग चैलेंज, काइली लीप चैलेंज, द चोकिंग गेम, इंटू द डेड टू, एस्पहॉल्ट 9 लीजेंड्स, प्रो इवैल्यूएशन स्कोर, इको पुल और डेयर एंड ब्रेव जैसे वीडियो गेम शामिल हैं।

बच्चों का घट रहा वजन : छह साल के सौविक का वजन लगभग 20 किलो था। पिछले 2 महीने में सौविक के वजन में तेजी से कमी आई। जब उसके गिरते वजन और सेहत को देखते हुए अभिभावकों ने डॉक्टर से संपर्क किया, तो डॉक्टर का पहला सवाल था, क्या बच्चे को खाना खाते हुए मोबाइल पर वीडियो देखने या गेम्स खेलने की आदत है। सौविक की मां ने इसका जवाब हां में दिया। सौविक ऐसा अकेला बच्चा नहीं है, जिसे खाना खाते हुए मोबाइल पर वीडियो देखने या गेम्स खेलने की लत लग गई है। इन दिनों कई बच्चों में वजन घटने, कुपोषण जैसी सामान्य सी लगने वाली समस्याएं बढ़ती जा रही हैं। बाल रोग विशेषज्ञ डॉ.अशोक तालपात्रा के अनुसार खाना खाते हुए फोन देखने और गेम्स खेलने की लत की वजह से अटेंशन डेफिसिट डिसॉर्डर, हाइपरएक्टिविटी और स्लीप डिसॉर्डर जैसी बीमारियां भी बच्चों को घेर रही हैं।

क्या है गेमिंग डिसऑर्डर

गेमिंग डिसऑर्डर की वजह से ब्रेन के न्यूरो ट्रांसमीटर में बदलाव आने शुरू हो जाते हैं। इसी बदलाव से बच्चों के व्यवहार में बदलाव देखने को मिलता है। बार-बार एक ही तरह के विचार और सस्पेक्ट्रम डिसऑर्डर जैसी बीमारियां होनी शुरू हो जाती है। इन गेम्स की वजह से कई बार बच्चे खुद को ओवर बर्डन या ओवर प्रेशर में महसूस करते हैं। गुस्सा करने के साथ ही जिद्दी हो जाते हैं। नींद में कमी आने से एजुकेशन में भी उनकी परफॉर्मेंस कमजोर होती है।

गेम का बच्चों पर असर नींद की समस्या होना समाज से कटना एकाग्रता में कमी, भूलने की बीमारी होना गेम से आक्रामकता बढऩा बच्चों के स्वभाव में चिड़चिड़ापन रचनात्मक कार्य करने को समय की कमी आंखों की रोशनी प्रभावित हो रही। लगातार बैठे रहने से मोटापा, ब्लड प्रेशर और डायबिटीज जैसी समस्याएं। खुद को और दूसरों को नुकसान पहुंचाना।

इस तरह बच्चों की करें पहचान

बच्चा गुमसुम और लोगों से अलग-अलग (एकाकी) रहता हो बच्चे में गुस्सा कम आता हो, लेकिन चिड़चिड़ापन हो पढ़ाई में सामान्य हो लेकिन खेलकूद में सबसे कमजोर शारीरिक दुबले-पतले और मौसमी बीमारियों से ग्रसित रहने वाले

गेमिंग डिसऑर्डर बचाव का तरीका

मेंटल स्टेट्स एग्जामिनेशन। क्लिनिकल इवैल्यूएशन। साइकोलॉजिकल टेस्ट और ब्रेन इमेजिंग। साइकोथेरेपी, बिहेवियर थेरेपी और दवाइयां। बच्चों के लिए मां-बाप का समय।

ये हैं खतरनाक गेम : पबजी (अब बैन), पोकेमॉन गो, द कार सर्फिंग चैलेंज, वैंपायर बीटिंग, स्त्रार्टिंग चैलेंज, काइली लीप चैलेंज, द चोकिंग गेम, इंटू द डेड टू, एस्पहॉल्ट 9 लीजेंड्स, प्रो इवैल्यूएशन स्कोर, इको पुल और डेयर एंड ब्रेव जैसे वीडियो गेम।

तकनीक से भी रखें नजर गूगल प्ले स्टोर पर जाएं। वहां सेटिंग ऑप्शन में जाकर माय एप्स एंड गेम्स को ओपन करें। इसमें लाइब्रेरी, अपडेट्स और इन्स्टॉल्ड में जाकर ये देखें कि क्या इंस्टॉल और क्या अनस्टॉल हुआ है। बच्चे के मोबाइल में भी पेरेंट्स अपना ही मेल आइडी और पासवर्ड दें, ताकि बच्चा जब भी कोई गेम, एप आदि इंस्टॉल करे तो या तो वह आपसे पासवर्ड मांगेगा या फिर उसकी जानकारी आपके मेल आइडी में आ जाएगी। स्क्रीन रिकॉर्डर सॉफ्टवेयर भी अपलोड कर सकते हैं। इससे लाभ यह होगा कि जो भी काम उस मोबाइल पर किया है वह आप भी देख सकेंगे। बी स्मार्ट एप या एप लॉक जैसे एप्लीकेशंस को डाउनलोड करके कई गेम्स, एप्लीकेशन आदि को काफी हद तक डाउनलोड होने से रोक सकते हैं।

कई बच्चे गेम इसलिए खेलते हैं जो किन्हीं कारणों से खुद को अकेला महसूस करते हैं या किसी कारण से निराश हैं। ऐसे मामले एक-दूसरे को देखकर और भी बढ़ जाते हैं। ऑनलाइन पढ़ाई  भी मोबाइल पर हो रही है,  इसलिए अब बच्चों के लिए अधिक ज्यादा सतर्क होने की जरूरत है। हानिकारक गेम्स खेलने के दौरान बच्चों के बर्ताव में नकारात्मक परिवर्तन आता है उस पर गौर करें। इसके लिए उनके दोस्त और टीचर्स से मुलाकात करें। बच्चों के शरीर पर ध्यान दें कि कहीं उन्होंने खुद को नुकसान पहुंचाने की कोशिश तो नहीं की। इस तरह की गेम बच्चों को हिंसक बना रहे हैं। -डॉ. अशोक तालपात्रा, बाल रोग विशेषज्ञ।

अगर बच्चे मोबाइल इस्तेमाल कर रहे हैं तो इस बात पर नजर रखी जाए कि वह किन चीजों में ज्यादा दिलचस्पी ले रहे हैं। अगर बच्चा मोबाइल में गेम या कोई अन्य गेम का लती हो रहा है तो उसे समझाएं। धीरे-धीरे उसकी एनर्जी बांटने की कोशिश करें। उसे अन्य कामों में लगाएं। गेम को डिलीट कर दें। इसके बाद उसकी निगरानी करते रहें। उसके साथ अपनापन दिखाने का प्रयास करें। डांटे-फटकारें नहीं बल्कि उसे लगातार इसके नुकसान के बारे में समझाएं। सबसे जरूरी बात बच्चों को अपना समय दें। -डॉ. मीना श्रीवास्तव, साइकोलॉजिस्ट सह प्रॉक्टर बीबीएमकेयू।

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