Matix Fertilizers & Chemicals से शुरू की हो गई आपूर्ति, अब झारखंड में कम होगी खाद की किल्लत
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फरवरी माह में दुर्गापुर के पानागढ़ औद्योगिक क्षेत्र स्थित मैटिक्स खाद कारखाने में आने वाली गैस पाइपलाइन का आनलाइन उद्घाटन किए था। इसके उपरांत करीब सात माह बाद पानागढ़ कारखाने में खाद का उत्पादन शुरू हो गया है।
राजीव, दुमका। मौसम खरीफ हो या रबी, अब झारखंड में खाद की किल्लत कम होगी। कारण झारखंड के पड़ोसी राज्य पश्चिम बंगाल के दुर्गापुर के पानगढ़ में मैट्रिक्स खाद कारखाना में उत्पादन शुरू हो गया है। अब यहां डाक्टर फसल यूरिया के नाम से खाद का उत्पादन हो रहा है, जो इफको समेत अन्य ब्रांडों की गुणवत्ता व कीमत के बराबर है। दुर्गापुर में खाद कारखाना चालू होने के कारण संताल परगना में भी खाद की उपलब्धता आसानी से होगी। दुर्गापुर में उत्पादित खाद की पहली खेप 1206 मीट्रिक टन 21 सितंबर को जसीडीह में पहुंच चुका है। अब यह खाद केंद्र सरकार से नियुक्त होलसेलर के माध्यम रिटेल दुकानदारों को आवंटित होगी।
पीएम नरेंद्र मोदी ने की थी फरवरी में कारखाने में आने वाली गैस पाइपलाइन का उद्घाटन
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फरवरी माह में दुर्गापुर के पानागढ़ औद्योगिक क्षेत्र स्थित मैट्रिक्स खाद कारखाने में आने वाली गैस पाइपलाइन का आनलाइन उद्घाटन किए था। इसके उपरांत करीब सात माह बाद पानागढ़ मैट्रिक्स कारखाने में खाद का उत्पादन शुरू होने के बाद रेलवे रैक के माध्यम से अन्य राज्यों में खाद की आपूर्ति भी शुरू हो गई है। मैट्रिक्स फर्टिलाइजर्स और केमिकल्स लिमिटेड की स्थापना एक अक्टूबर 2017 को हुई थी, जो कि पानागढ़ क्षेत्र में 500 एकड़ से अधिक भूमि पर फैला हुआ है। इस संयंत्र की दो इकाइयों में अमोनिया प्लांट की क्षमता 2200 टन प्रतिदिन है। दूसरी यूनिट यूरिया प्लांट की क्षमता 3850 टन प्रति दिन है। जबकि, इसकी क्षमता प्रतिवर्ष 13 लाख टन खाद का उत्पादन करने की है। मैट्रिक्स कारखाने ने नौ सितंबर को लगभग 2000 टन की अधिकतम दैनिक क्षमता के साथ उत्पादन शुरू कर दिया है।
केंद्र सरकार ही तय करती है खाद वितरण व सब्सिडी की नीति
देश भर में केंद्र सरकार के जरिए ही खाद वितरण एवं सब्सिडी की नीति तय की जाती है। वर्तमान में इफको देश भर में सबसे ज्यादा खाद की आपूर्ति करती है। केंद्र सरकार के स्तर बहाल होलसेलर्स के आइडी पर खाद की मात्रा आवंटित की जाती है। होलसेलर के आइडी से ही रिटेलर्स की आइडी में खाद उपलब्ध कराई जाती है। केंद्र सरकार के स्तर से ही राज्यों को जरूरत के हिसाब से खाद का कोटा तय किया जाता है।
झारखंड ने खरीफ के लिए मांगी थी ढाई लाख मीट्रिक टन खाद
इस वर्ष झारखंड ने केंद्र से ढाई लाख मीट्रिक टन खाद की मांग की थी, जिसमें केंद्र ने 1.95 लाख मीट्रिक टन खाद का कोटा आवंटित किया है, जिसमें अप्रैल माह से शुरू होने वाले खरीफ के लिए एक लाख 70 हजार मीट्रिक टन खाद की जरूरत बताई गई थी। इसके एवज में अब तक एक लाख 10 हजार मीट्रिक टन खाद उपलब्ध कराई गई है। केंद्र सरकार ने मैट्रिक्स को भी झारखंड में 30 हजार मीट्रिक टन खाद आवंटित करने का कोटा निर्धारित किया है, जिसमें पहली खेप 21 सितंबर को 1206 मीट्रिक टन खाद की आपूर्ति की गई है।
दूरी के हिसाब से केंद्र तय करती है राज्यों को खाद का कोटा आवंटित
खाद कारखानों की दूरी के हिसाब से ही केंद्र सरकार राज्यों को कोटा आवंटित करती है। चूंकि, पहले बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल में खाद का कोई कारखाना चालू नहीं था इसलिए यहां खाद की आपूर्ति फूलपुर, अलीगढ़ समेत कई अन्य राज्यों से हो रही थी। झारखंड में खाद तकरीबन 800 से 1000 किमी. दूर से पहुंच रहा था, लेकिन अब दुर्गापुर कारखाना खुल जाने के बाद दूरी काफी कम हो गई है। केंद्र सरकार ने भी दुर्गापुर में उत्पादन शुरू होने के साथ ही 30 हजार मीट्रिक टन खाद मुहैया कराने का कोटा आवंटित है, जो भविष्य में उत्पादन बढऩे के साथ बढऩा तय है।
कीमत व गुणवत्ता में नहीं है कोई कमी
दुर्गापुर में उत्पादित खाद की गुणवत्ता देश के विभिन्न कारखानों में उत्पादित खाद की गुणवत्ता के समतुल्य है। इसलिए इसकी कीमत भी अन्य कंपनियों के खाद के बराबर तय की गई है। वर्तमान में केंद्र सरकार के स्तर से 45 किलो खाद के पैकेट की कीमत 266.50 रुपये है। जबकि, केंद्र सरकार इस 700 रुपये की सब्सिडी देती है।
झारखंड में दूसरी राज्यों की तुलना में खाद की कम जरूरत पड़ती है। राज्य सरकारें केंद्र सरकार को खाद आपूर्ति के लिए मात्रा भेजती हैं और इसी के आधार पर केंद्र खाद कंपनियों को कोटा तय कर राज्यों को खाद आपूर्ति का निर्देश देती हैं। प्रविधान के तहत केंद्र नजदीकी खाद कारखानों से ही आसपास के राज्यों में खाद आपूर्ति की व्यवस्था करती है। ऐसे में, दुर्गापुर खाद कारखाना शुरू हो जाने से पश्चिम बंगाल के अलावा झारखंड व बिहार में खाद की किल्लत दूर होने की संभावना है। निकट भविष्य में दर में भी कमी आ सकती है।
-अजय कुमार सिंह, संयुक्त कृषि निदेशक, संताल परगना