Dr. Rajendra Prasad Birth Anniversary 2021: अपनी गलती पर जब नाैकर से मांगी माफी, जानिए राजेंद्र बाबू की दिल छू देने वाली बातें
Dr. Rajendra Prasad Birth Anniversary 2021 भारत के पहले राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद की सादगी और त्याग की जितनी बातें की जाय कम होंगी। वह अपनी सत्यनिष्ठा और कर्तव्यनिष्ठा के कारण सधारण मानव से महादेव बन गए थे।
जागरण संवाददाता, धनबाद। देश-दुनिया की राजनीति में डा. राजेंद्र प्रसाद जैसा उदाहरण दूसरा नहीं मिलेगा। उनकी सादगी और त्याग की जितनी भी बातें की जाय कम होंगी। वे अपनी सत्यानिष्ठा और कर्त्तव्यनिष्ठा के कारण ही साधारण मानव से महादेव बन गए थे। आज देश उनकी 137वीं जयंती मना रहा है। उनका जन्म बिहार के सिवान जिले के जीरादेई में 3 दिसंबर, 1884 को हुआ था। उनके जीवन का एक-एक प्रसंग हमारे लिए प्रेरणादायक है। इन्हीं में से एक उनके द्वारा अपने नाैकर से माफी मांगने का वाकया है। ऐसी सादगी की उम्मीद आज साधारण व्यक्ति से भी हम नहीं कर सकते हैं।
नाैकर से माफी मांगने का वाकया
देशरत्न डॉ. राजेंद्र प्रसाद, इतने क्षमाशील थे कि अपनी गलती का जरा सा भी भान होने पर क्षमा मांगने में भी पीछे नहीं हटते थे। एक दिन सुबह कमरे की झाड़पोंछ करते हुए राष्ट्रपति के पुराने नौकर तुलसी से एक हाथी दांत का पेन टूट गया। राजेन्द्र प्रसाद बहुत गुस्सा हुए। यह पेन किसी ने भेंट की थी। उन्हें इस पेन बहुत की लगाव था। उन्होंने गुस्सा दिखाके हुए तुरंत तुलसी को अपनी निजी सेवा से हट जाने का आदेश दे दिया। इस घटना के बाद राजेंद्र बाबू अंदर से अपने व्यवहार को लेकर बहुत दुखी हुए। उस दिन वह बहुत व्यस्त रहे, लेकिन दिन भर उन्हें लगता रहा कि उन्होंने तुलसी के साथ अन्याय किया है। जैसे ही उन्हें मिलने वालों से अवकाश मिला राजेन्द्र प्रसाद ने तुलसी को अपने कमरे में बुलाया और उससे कहा- "तुलसी मुझे माफ़ कर दो।" तुलसी इतना चकित हुआ कि उससे कुछ बोला ही नहीं गया। "तुलसी, तुम क्षमा नहीं करोगे क्या?" इस बार सेवक और स्वामी दोनों की आंखों में आंसू आ गये।
बड़े भाई की अनुमति से लड़ी आजादी की लड़ाई
डॉ राजेंद्र प्रसाद ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि गोपाल कृष्ण गोखले से मिलने के बाद वे आज़ादी की लड़ाई में शामिल होने के लिए बेचैन हो गए। मगर परिवार की ज़िम्मेदारी उनके ऊपर थी। 15-20 दिन तक काफ़ी सोचने समझने के बाद अपने बड़े भाई महेंद्र प्रसाद और पत्नी राजवंशी देवी को भोजपुरी में पत्र लिखकर देश सेवा करने की अनुमति मांगी। उनका ख़त को पढ़कर उनके बड़े भाई रोने लगे। वे सोचने लगे कि उनको क्या जवाब दें। बड़े भाई से सहमति मिलने पर ही राजेंद्र प्रसाद स्वतंत्रता आंदोलन में उतरे।
12 साल तक सागदी का मूरत बना रहा राष्ट्रपति भवन
राष्ट्रपति भवन में जब 12 वर्षों तक प्रथम राष्ट्रपति के तौर पर डॉ. राजेंद्र प्रसाद रहे थे, तो इस दौरान यह आलीशान इमारत सादगी की मूरत बन चुका था। आंगन में तुलसी, द्वार पर रंगोली, भवन में आरती और दीपमाला, इसके अलावा सादा जीवन-सादा भोजन। प्रथम राष्ट्रपति के साथ देश की प्रथम महिला नागरिक की जिम्मेदारी निभाने वाली राजवंशी देवी ने भी कभी अपने पद और मान पर रत्ती भर का अहंकार नहीं किया। राष्ट्रपति भवन में जब कभी विदेशी अतिथि आते तो उनके स्वागत में उनकी आरती की जाती थी और राजेंद्र बाबू चाहते थे कि विदेशी मेहमानों को भारत की संस्कृति की झलक दिखाई जाए।