Jitiya/Jivitputrika Vrat 2021: कब है जितिया व्रत ? जानें महत्व, शुभ मुहूर्त और पूजन विधि
Jivitputrika Vrat 2021 भुईफोड़ मंदिर के पुजारी सुभाष पांडेय के अनुसार जितिया व्रत के दौरान व्रत कथा सुनना बेहद फलदाई होता है। पूजा के दौरान जितिया व्रत कथा पढ़ने या सुनने से संतान की दीर्घायु आरोग्य व सुखमय जीवन के संतान प्राप्ति की कामना पूरी होती है।
जासं, धनबाद। संतान प्राप्ति, संतान की दीर्घायु, आरोग्य व सुखमय जीवन के लिए सालभर कई व्रत किए जाते हैं। उन्हीं में से एक है जितिया व्रत। हिंदू धर्म में इस व्रत का विशेष महत्व है। हिंदू पंचांग के अनुसार जितिया पर्व हर साल आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इस बार जितिया व्रत का पर्व 28 से 30 सितंबर तक मनाया जाएगा। जितिया का त्योहार महिलाएं बड़ी उत्साह के साथ मनाती है। जितिया का त्योहार महिलाएं बहुत ही भक्तिभाव से साथ करती हैं। इसमें माताएं अपनी संतान की लंबी आयु और सुखी जीवन के लिए निर्जला व्रत रखती हैं।
संतान प्राप्ति व सुखमय जीवन के लिए सुनी जाती है जितिया कथा
भुईफोड़ मंदिर के पुजारी सुभाष पांडेय के अनुसार जितिया व्रत के दौरान व्रत कथा सुनना बेहद फलदाई होता है। इस दिन पूजा के दौरान व्रत कथा सुननें से जितिया व्रत कथा पढ़ने या सुनने से संतान की दीर्घायु, आरोग्य व सुखमय जीवन के संतान प्राप्ति की कामना पूरी होती है। इससे संतान को लंबी आयु का वरदान प्राप्त होता है।
जितिया व्रत तीन दिनों तक चलता है
संतान की सुख व समृद्धि के लिए जितिया व्रत तीन दिनों तक चलता है। पहला दिन नहाए-खाए, दूसरा दिन जितिया निर्जला व्रत और तीसरे दिन पारण किया जाता है। इस व्रत को जिउतिया, जितिया, जीवित्पुत्रिका, जीमूतवाहन व्रत नाम से जाना जाता है। ये व्रत तीन दिन तक चलता है। संतान की लंबी आयु, निरोग जीवन, सुखी रहने की कामना से ये व्रत किया जाता है। मान्यता है कि अगर कोई इस व्रत की कथा को सुनता है तो उसके जीवन में कभी संतान वियोग नहीं होता। नहाए खाए के साथ व्रत शुरू हो जाता है। इस साल 28 सितंबर को नहाए खाए होगा। 29 सितंबर को निर्जला व्रत और 30 सितंबर को व्रत का पारण किया जाएगा।
Jivitputrika Vrat shubh muhurat
अष्टमी तिथि प्रारंभ- 28 सितंबर शाम 06:16 बजे से
अष्टमी तिथि समाप्त- 29 सितंबर रात 8: 29 बजे
Jivitputrika Vrat Pujan Vidhi
स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। भगवान जीमूतवाहन की पूजा करें। इसके लिए कुशा से बनी जीमूतवाहन की प्रतिमा को धूप-दीप, चावल, पुष्प आदि अर्पित करें. इस व्रत में मिट्टी और गाय के गोबर से चील व सियारिन की मूर्ति बनाई जाती है। इनके माथे पर लाल सिंदूर का टीका लगाया जाता है। पूजा समाप्त होने के बाद जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा सुनी जाती है। पारण के बाद यथाशक्ति दान और दक्षिणा दें।