Deoghar Heritage: झारखंड की सांस्कृृृृतिक राजधानी के गर्भ में छिपे लोकगीत व संगीत को मिलेगी संजीवनी
झारखंड सरकार ने विलुप्त हो रहे लोक कलाओं को संरक्षित करने का निर्णय लिया है। इससे सांस्कृतिक राजधानी देवघर के गर्भ में छिपे लोकगीत व संगीत को संजीवनी मिलेगी। कभी देवघर के झूमर और घैरा की गूंज झारखंड की नहीं असमऔर असम की घाटियों तक सुनाई देती थी।
आरसी सिन्हा, देवघर : झारखंड सरकार ने विलुप्त हो रहे लोक कलाओं को संरक्षित करने का निर्णय लिया है। इससे सांस्कृतिक राजधानी देवघर के गर्भ में छिपे लोकगीत व संगीत को संजीवनी मिलेगी। कभी देवघर के झूमर और घैरा की गूंज झारखंड की नहीं असम, बंगाल, बिहार, ओडिशा और असम की घाटियों तक सुनाई देती थी। धीरे-धीरे इस लोक गीत के मनमोहक सुर थमने लगे। झूमर संताल परगना का लोक संगीत है और घैरा में अनुभूति को शब्दों से पिरोया गया है।
देवघर बाबा मंदिर के सरदार पंडा भवप्रीतानंद ओझा ने किशोरावस्था से ही झूमर की रचना शुरू कर दी थी। उन्होंने इसे संगीतबद्ध भी किया था। वह 1928 से 1970 तक बैद्यनाथ मंदिर के सरदार पंडा रहे। बिहार सरकार ने वर्ष 1964 में उन्हें लोक कवि का सम्मान दिया था। लेकिन संताल परगना के लोकगीत को राष्ट्रीय पहचान नहीं मिल पाई। अब हेमंत सरकार ने लुप्त होते लोकगीत, लोक संगीत को संरक्षित करने का फैसला लिया है। भवप्रीता नंद ओझा की पदावली को लिपिबद्ध् कर सहेजा जाए तो यह चिरकाल तक रहेगा।
भवप्रीतानंद की जीभ पर वाणी बीज मंत्र
भवप्रीता नंद ओझा के पितामह शैलजानंद ओझा तंत्र शास्त्र के मर्मज्ञ और साधक थे। कहते हैं कि उन्होंने भवप्रीतानंद की जिह्वा पर वाणी बीज मंत्र लिख दिया था। इन्हें संताल परगना के महामना नाम से भी पुकारा जाता था। इनकी काव्य प्रतिभा शैव-शाक्त और वैष्णव भावधारा का संगम बन गया। महाकवि की रचनाओं को लिपिबद्ध् कर उसे सहेजने की पहल ङ्क्षहदी विद्यापीठ के व्यवस्थापक कृष्णानंद झा ने किया।
वर्जन
भावी पीढ़ी झूमर और घैरा से अनभिज्ञ न रहे इसके लिए विद्यापीठ से भवप्रीतानंद पदावली और झूमर रसमंजरी का प्रकाशन कराया। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने लोक संगीत को पुनर्जीवित करने का निर्णय लिया, यह स्वागत योग्य है।-- कृष्णानंद झा, व्यवस्थापक, ङ्क्षहदी विद्यापीठ सह प्रधान संपादक झूमर रस मंजरी
झारखंड सरकार ने विलुप्त हो रहे लोक संगीत को बचाने का निर्णय लिया है। यह एक अच्छी पहल है। सरकार से मांग है। वह सबसे पहले देवघर के झूमर और घैरा को प्राथमिकता दे। आज इस विधा के एक दो गायक ही रह गए हैं।
- डा. सुरेश भारद्वाज, अध्यक्ष पंडा धर्मरक्षिणी सभा