West Singhbhum IED Blast: गोड्डा के लाल दवेंद्र की शहादत पर पिता को गर्व, पर थम नहीं रहे आंसू
West Singhbhum IED Blast पश्चिमी सिंहभूम के टोकलो थाना क्षेत्र में गुरुवार को नक्सलियों ने IED ब्लास्ट कर झारखंड जगुआर के जवानों पर हमला बोला। इनमें तीन जवान शहीद हो गए। शहीद जवानों में एक देवेंद्र कुमार ठाकुर गोड्डा जिले के रहने वाले थे।
धानाबिंदी (गोड्डा), जेएनएन। West Singhbhum IED Blast गोड्डा के बोआरीजोर प्रखंड का बड़ा धानाबिंदी गांव। इसी गांव के थे झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम के टोकलो थाना क्षेत्र के लांजी जंगल में नक्सलियों की ओर से किए गए आइईडी विस्फोट में बलिदान देने वाले देवेंद्र कुमार पंडित। पश्चिम सिंहभूम के होयाभातु गांव के पास जंगल में गुरुवार सुबह नौ बजे IED विस्फोट हुआ। इसमें झारखंड जगुआर के तीन वीर जवान देश की सेवा में अपने प्राणों की आहुति दे दी। विस्फोट के बाद बेटे के शहादत की सूचना 75 वर्षीय पिता जीवलाल पंडित को जानकारी मिली तो आंखों से आंसुओं का सैलाब बह उठा। कई बार तो रोते रोते वे गश खाकर गिर गए, मगर बार बार यही कह रहे कि हमें अपने बेटे पर गर्व है। उसने देश के लिए अपनी जान दे दी। पर उसके बिना अब कैसे जीवन गुजरेगा। बेटे का वियोग सहन नहीं कर पा रहा।
शहीद देवेंद्र कुमार पंडित ( फाइल फोटो)
बेटा देश की सेवा में गया तो सीना चाैड़ा हो गया था
दोपहर होते होते लोगों की भीड़ उनके घर पर जुट गई। गांव के लोग उनको सांत्वना दे रहे थे। पर इस दुखी पिता का दर्द वे भी समझ रहे थे। रोते रोते जीवलाल यही कहते कि हम तो एक किसान हैं। बेटा देश की सेवा में गया तो सीना चौड़ा हो गया था। अब कौन हमारा सहारा बनेगा। उनको सांत्वना दे रहे लोगों की भी आंखों से उनका दर्द देख आंसू बह रहे थे। देवेंद्र बच्चों की पढ़ाई के लिए साहिबगंज में परिवार रखे थे। दोपहर बाद उनकी पत्नी दोनों बच्चों के साथ गांव पहुंची। दुख से बेहाल वह गश खाकर गिर पड़ी। शहीद देवेंद्र के भाई वीरेंद्र भी पुलिस सेवा में हैं। छोटा भाई ओंकार अभी पढ़ाई कर रहा है।
शहादत की सूचना मिलते ही चिखने-चिल्लाने लगीं देवेंद्र की पत्नी और मां
साल 2003 में पुलिस में हुए थे भर्ती
देवेंद्र 2003 में पुलिस में भर्ती हुए थे। वर्ष 2016 में वे जगुआर पुलिस बल में आए। 1982 में जन्मे देवेंद्र ने महज 39 वर्ष की आयु में देश के लिए जान दे दी। उनकी मां मां सोहिया देवी की हालत बेटे की शहादत की सूचना के बाद से खराब हो गई है। रो रोकर बलिदानी की पत्नी ही उनको भी संभालने में जुटी थी। देवर वीरेंद्र और ओंकार अपने भतीजों राहुल और आनंद को कलेजे से लगाए थे। बच्चे भी रो रहे थे। कभी वे चाचा से लिपट जाते तो कभी दादा से। यह कारुणिक दृश्य वहां मौजूद सभी की आंखें नम कर गया।