तंत्र के गण... कोरोना काल में दो तोहफों से देश को नवाजा, दवा तैयार करने में शोध होगा मददगार

भौतिक विज्ञानी प्रो. त्रिपाठी ने बताया कि हर इंसानी दिमाग में एल्फा साइन्यूक्लीन प्रोटीन होता है। जो हमारी संदेश प्रक्रिया को नियंत्रित करता है। जब इस प्रोटीन के कई अणु मिलकर शृंखला बनाते हैं तो इसका प्रभाव खतरनाक हो जाता है।

By MritunjayEdited By: Publish:Sun, 24 Jan 2021 04:44 PM (IST) Updated:Sun, 24 Jan 2021 04:44 PM (IST)
तंत्र के गण... कोरोना काल में दो तोहफों से देश को नवाजा, दवा तैयार करने में शोध होगा मददगार
शोध करते आइआइटी (आइएसएम) के वैज्ञानिक उमाकांत त्रिपाठी ( फाइल फोटो)।

धनबाद [ राजीव शुक्‍ला ]। कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया को परेशान कर रखा है। साल 2020 को दुनिया कभी नहीं भूलेगी। बावजूद इसी साल इंडियन स्‍कूल ऑफ माइंस (आइआइटी) धनबाद के वैज्ञानिक प्रो. उमाकांत त्रिपाठी ने देश को दो तोहफों से नवाजा है। कोरोना वायरस को निष्‍प्रभावी करने वाले रसायन पिपराइन की पहचान की। यह काली मिर्च में पाया जाता है। 30 कार्बनिक यौगिकों के अध्‍ययन के बाद उन्‍होंने इसकी खूबि‍यों को पहचाना। अब प्रयोगशाला में यह परीक्षण हो रहे हैं कि वायरस को निष्‍प्रभावी करने के लिए इसकी कितनी मात्रा कारगर होगी। इसके अलावा इस व‍िज्ञानी ने खतरनाक पार्किंसन रोग की कारक प्रोटीन शृंखला की पहचान करने वाली डिवाइस भी बना ली है। जो बताएगी कि मरीज काे यह रोग है या नहीं। डिवाइस पार्किंसन के लिए बनाई गई दवा का भी परीक्षण करेगी। वह रोग में कारगर होगी या नहीं। दुनिया में पार्किंसन की अब तक सटीक दवा तैयार नहीं हुई है। बेशक कोरोना ने लोगों को परेशान किया पर इसी दौर में इस विज्ञानी ने खोज के रूप में देश को ये दो तोहफे दे दिए। 

कनाडा के नामचीन विश्‍वविद्यालयों में भी दीं सेवाएं  

देश हमें देता है सब कुछ हम भी तो कुछ देना सीखें, इस गूढ़ वाक्‍य को प्रो.त्रिपाठी ने आत्‍मसात कर लिया है। उन्‍होंने बताया कि विज्ञानी हूं, इसलिए देश के लिए हमेशा सोचना और अपने शोध से समाज को कुछ देना हमारा फर्ज है। उड़ीसा के ब्रह्मपुर के रहने वाले इस विज्ञानी ने प्रारंभिक शिक्षा अपने गांव गंजाम जिले के पितर में पूरी की। उसके बाद ब्रह्मपुर आकर भौतिक विज्ञान से एमएससी व आइआइटी मद्रास से पीएचडी की। कनाडा की यूनिवर्सिटी ऑफ सास्‍काचेवान में सात साल व मैकगिल में करीब साढ़े चार साल शोध व शिक्षण किया। पर, अपनी माटी के प्रति अगाध प्रेम था इसलिए वापस लौट आए। 2014 में आइएसएम में सेवाएं शुरू कीं। वे कहते हैं कि देश के लिए काम करने का आनंद ही अलग है। यहां आत्‍मसंतोष मिलता है। पुरोहित पिता गोपाल कृषण त्रिपाठी व मां विनोदिनी ने हमेशा यही नसीहत दी कि ऐसा काम करो जिससे देश व समाज का भला हो। बस उसी काम में शिद्दत से लगा हूं।

साइंस जनरल में मिली शोध को जगह
भौतिक विज्ञानी प्रो. त्रिपाठी ने बताया कि हर इंसानी दिमाग में एल्फा साइन्यूक्लीन प्रोटीन होता है। जो हमारी संदेश प्रक्रिया को नियंत्रित करता है। जब इस प्रोटीन के कई अणु मिलकर शृंखला बनाते हैं, तो इसका प्रभाव खतरनाक हो जाता है। ये संदेशों का आदान-प्रदान करनेवाली कोशिकाओं को नष्ट करती है। हमारी बनाई ऑप्टिकल डिवाइस में इस विषैली प्रोटीन शृंखला को पहचानने का गुण है। इसका प्रयोग मानव रक्त के प्लाज्मा के माध्यम से पार्किंसन की पहचान और उसकी दवा का प्रभाव जानने के लिए करेंगे। परीक्षण हो रहे हैं। यह शोध एसीएस केमिकल न्यूरोसाइंस जनरल में प्रकाशित हुआ है। वहीं काली मिर्च में पाए जाने वाले रसायन पिपराइन के वायरस पर प्रभाव संबंधी गुणों का प्रकाशन जर्नल ऑफ बायोमॉलिक्‍यूलर स्‍ट्रक्‍चर एंड डायनामिक्‍स में हुआ है। एंटी वायरल गुण वाले पिपराइन का मानव शरीर दुष्‍प्रभाव नहीं पड़ता। बेशक कोरोना का टीका आ गया है, पर पिपराइन की खूबियों की जानकारी देने वाले इस शोध के दम पर जल्‍द ही इसकी दवा भी बन सकेगी। इस दिशा में इमेजिनेक्‍स इंड‍िया प्राइवेट लिमिटेड के जीव विज्ञान विकास विभाग के निदेशक डाॅ. अशोक कुमार पात्रा की टीम परीक्षणों में जुटी है।

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