IIT (ISM) के छात्रों ने बनाई अनूठी मशीन, तीन घंटे में 80 किलो कचरे से बन रहा 20 किलो खाद
पर्यावरण इंजीनियरिंग विभाग ने रैपिड ऑर्गेनिक वेस्ट स्टेबिलाइजर विकसित किया है। इस तकनीक का उपयोग कर तीन से चार घंटे में सड़ने-गलने योग्य गीले कचरे को खाद में बदल देती है। इससे पहले संस्थान में आर्गेनिक वेजिटेबल बेस्ट थ्रू ड्रम कंपोस्टिंग का उपयोग किया जा रहा था।
धनबाद [ शशिभूषण ]। आलू, मटर के छिलके, बैगन गोभी का तना या जूठन ही क्यों न हो। इससे खाद बनाने का तरीका तो आपने सूना ही होगा। खाद बनाने में पहले एक महीने का वक्त लग जाता था पर अब महज कुछ घंटों में ही खाद बनकर तैयार हो जाएगा। ऐसा पहली बार हो रहा है। यह तकनीकि देश के शीर्ष तकनीकि संस्थानों में शुमार आइआइटी आइएसएम ने एक ऐसी तकनीक विकसित की है जिससे केवल तीन से चार घंटो में ही खाद बनकर तैयार हो जा रहा है।
पर्यावरण इंजीनियरिंग विभाग नेबनाई मशीन
संस्थान के पर्यावरण इंजीनियरिंग विभाग ने रैपिड ऑर्गेनिक वेस्ट स्टेबिलाइजर विकसित किया है। इस तकनीक का उपयोग कर तीन से चार घंटे में सड़ने-गलने योग्य गीले कचरे को खाद में बदल देती है। इससे पहले संस्थान में आर्गेनिक वेजिटेबल बेस्ट थ्रू ड्रम कंपोस्टिंग का उपयोग किया जा रहा था। जिससे गीले कचरे से खाद बनाने में 21 दिनों का वक्त लगता था। इससे एक बार ड्रम भर जाने के बाद नए कचरे का निस्तारण भी मुश्किल हो जाता था। कचरे को तुरंत खाद में परिवर्तित किया जा सके इस तकनीक पर आइएसएम के पीएचडी स्कॉलर नितिन कुमार की टीम काफी दिनों से काम कर रही थी।
80 किलो आर्गेनिक कचरे से तीन घंटे में 20 किलो बनेगा खाद
रिसर्च स्कॉलर नितिन कुमार ने बताया कि रैपिड आर्गेनिक वेस्ट स्टेबिलाइजर छोटी मशीन है। जिसमें 80 किलो आर्गेनिक कचरा डालने पर करीब 20 किलो खाद बनकर तैयार हो जाता है। यह मशीन प्रोटोटाइप है। नितिन कुमार ने बताया कि किचन और फूड वेस्ट से खाद बनाने की प्रक्रिया में थर्मल ट्रीटमेंट का उपयोग करते है। कचरे को 150-200 डिग्री तापमान से गुजारा जाता है। गर्म हवा के कारण गीले कचरे की नमी खत्म हो जाती है और खाद बनने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। नितिन ने बताया कि डैमो के तौर पर फिलहाल इसे ओपल हॉस्टल के पीछे लगाया गया है।