स्वास्थ्य मंत्री जी, पीएमसीएच का नाम बदलने के अलावा एक साल में हुआ क्या

स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता शुक्रवार को धनबाद में एक निजी क्लीनिक का उद्घाटन करने आ रहे हैं। जिले की जनता उनका स्वागत करती है। लेकिन लोगों के मन में एक सवाल भी है। आखिर एक साल में उन्होंने या उनकी सरकार ने पीएमसीएच का नाम एसएनएमएमसीएच बदलने के अलावा किया क्या।

By JagranEdited By: Publish:Fri, 15 Jan 2021 06:30 PM (IST) Updated:Fri, 15 Jan 2021 06:30 PM (IST)
स्वास्थ्य मंत्री जी, पीएमसीएच का नाम बदलने के अलावा एक साल में हुआ क्या
स्वास्थ्य मंत्री जी, पीएमसीएच का नाम बदलने के अलावा एक साल में हुआ क्या

जागरण संवाददाता, धनबाद :

स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता शुक्रवार को धनबाद में एक निजी क्लीनिक का उद्घाटन करने आ रहे हैं। जिले की जनता उनका स्वागत करती है। लेकिन लोगों के मन में एक सवाल भी है। आखिर एक साल में उन्होंने या उनकी सरकार ने पीएमसीएच का नाम एसएनएमएमसीएच बदलने के अलावा किया क्या। जिले के सबसे बड़े अस्पताल एसएनएमएमसीएच में एक भी कार्डियोलॉजिस्ट व न्यूरोलॉजिस्ट नहीं है। स्वास्थ्य केंद्रों में दवा, इलाज तो दूर चिकित्सक के कई पद खाली हैं। जीएनएम छात्राओं का हॉस्टल पिछले आठ वर्षो में तैयार नहीं हो पाया है। पारा मेडिकल स्टूडेंट्स का कोई स्कूल व लाइब्रेरी नहीं है। जिले में स्वास्थ्य सेवा खुद ऑक्सीजन पर चल रही है। जिसका खामियाजा आम जनता को भुगतना पड़ रहा है। आइए नजर डालते हैं स्वास्थ्य से जुड़ी जिले की पांच प्रमुख समस्याओं पर..

बिना कार्डियोलॉजिस्ट के 14.50 करोड़ रुपये का कैथ लैब

एसएनएमएमसीएच में एक भी कार्डियोलॉजिस्ट और न्यूरोलॉजिस्ट नहीं है। वर्ष 2017 में अस्पताल परिसर में 14.50 करोड़ की लागत से ह्दय रोगियों के इलाज के लिए कैथ लैब बनाया गया। लेकिन तीन वर्ष के बाद भी कैथ लैब सेवा नहीं शुरू हो पाई। धनबाद में इलाज के लिए प्रति माह एक हजार ह्दय रोगियों को वेल्लोर, दिल्ली, कोलकाता सहित दूसरे जगहों पर जाना पड़ रहा है। वहीं अस्पताल में एक भी न्यूरोलॉजिस्ट या न्यूरोसर्जन नहीं है। इसके साथ ही किडनी रोग विशेषज्ञ, कैंसर रोग विशेषज्ञ भी नहीं हैं। इसके असाध्य रोगी को भी समान्य फिजीशियन की देखते हैं। सदर अस्पताल में चिकित्सक नहीं, ग्रामीण इलाके में भगवान का सहारा

सदर अस्पताल से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों के स्वास्थ्य केंद्रों में चिकित्सक नहीं है। सौ बेड के सदर अस्पताल में मात्र पांच चिकित्सक हैं, यह सभी अनुबंध पर हैं। वहीं जिले में आठ सीएचसी, 28 पीएचसी व 145 एपीएचसी में मात्र 70 चिकित्सक कार्यरत हैं। जबकि कुल स्वीकृत पदों की संख्या 125 है। ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य केंद्र महीनों में भी नहीं खुलता है। मजबूरन सुदूर इलाके के मरीज को समान्य इलाज के लिए भी शहर आना पड़ता है। प्रखंड के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में वर्ष भर दवाएं नहीं रहती हैं, मामूली मरहम-पट्टी के सामान भी मयस्सर नहीं है। कभी भी जा सकती है एसएनएमएमसीएच की मान्यता

एसएनएमएमसीएच (पुराना नाम पीएमसीएच) की मान्यता हमेशा खतरे में है। पहले यहां संसाधन (अस्पताल भवन, उपस्कर) नहीं थे। इसकी कमी लगभग 90 प्रतिशत पूरी हुई तो अब शिक्षकों की कमी सबसे बड़ा कारण बन रहा है। मेडिकल कॉलेज में प्रोफेसर के 30, एसोसिएट प्रोफेसर से 35, असिस्टेंट प्रोफेसर के 20, ट्यूटर व एसआर के 40 प्रतिशत पद खाली हैं। शिक्षकों की कमी के कारण मेडिकल कॉलेज में मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया से 100 सीटें घटाकर 50 कर दी है। अब शिक्षकों की कमी के कारण इन 50 सीटों पर भी मान्यता की तलवार लटक रही है। अपना हॉस्टल नहीं, बर्न वार्ड में रह रही 152 जीएनएम छात्राएं

एसएनएमएमसीएच की 152 जीएनएम (जेनरल नर्सिंग मिडवाइफ्री) छात्राओं की पढ़ाई तो दूर उन्हें हॉस्टल के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। अपना हॉस्टल व स्कूल नहीं होने के कारण छात्राओं को बंद नवनिर्मित बर्न वार्ड में रहना पड़ रहा है। तीन सत्र मिलाकर 152 के आसपास जीएनएम छात्राएं हैं। वर्ष 2016 में हॉस्टल टूटने के बाद इन्हें सदर अस्पताल के एएनएम हॉस्टल में शिफ्ट किया गया था। यहां दोनों के बीच मारपीट होने के कारण बगल के वेयर हाउस तो कुछ एसएनएमएमसीएच के जेआर के लिए बनाए क्वार्टर में शिफ्ट हो गई। हालांकि कैंपस में हॉस्टल का निर्माण शुरू किया जा रहा है। बेरोजगार हो गए पारा मेडिकल स्टूडेंट्स, नहीं बना स्कूल

मेडिकल कॉलेज में बढ़ने वाले पारा मेडिकल स्टूडेंट्स का 14 वर्षों के बाद भी न स्कूल बन पाया न ही लाइब्रेरी। लिहाजा स्टूडेंट बिना किसी थ्योरी के ही अस्पताल में केवल प्रैक्टिकल दे रहे हैं। वर्ष 2006 से यहां इसकी पढ़ाई हो रही है। लेकिन इसी वर्ष से अबतक पारा मेडिकल कर्मियों के लिए सरकारी बहाली नहीं हुई है। इस कारण ओटी असिस्टेंट, एनेस्थेसिया असिस्टेंट, इजीसी असिस्टेंट, एक्स रे असिस्टेंट आदि कोई करके युवा निजी क्लीनिक में बेहद कम तनख्वाह में काम कर रहे हैं। कई युवा बेरोजगार बैठे हैं। लगभग दस वर्षों से पास होने वाले छात्र बहाली के लिए आंदोलनरत हैं।

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