गोमो में पांच घंटे में उजड़ा परिवार, मां-बेटे की टूट गई सांसें
गोमो बाजार महज पांच घंटे में बुधवार को पुराना बाजार चमड़ा गोदाम के निवासी एसकेआई अहमद का परिवार बिखर गया। 65 साल की पत्नी पत्नी नरगिस जमाल ने दम तोड़ दिया। उसके बाद 35 वर्षीय पुत्र इमरान ने भी दुनिया को अलविदा कह दिया।
संवाद सहयोगी, गोमो बाजार : महज पांच घंटे में बुधवार को पुराना बाजार चमड़ा गोदाम के निवासी एसकेआई अहमद का परिवार बिखर गया। 65 साल की पत्नी पत्नी नरगिस जमाल ने दम तोड़ दिया। उसके बाद 35 वर्षीय पुत्र इमरान ने भी दुनिया को अलविदा कह दिया।
पाच घटे के अंतराल में मा-बेटे की मौत से पूरे इलाके में मातम छा गया है। दोनों का शव को गुरुवार की सुबह लालूडीह कब्रस्तान में सिपुर्द-ए-खाक किया गया। दरअसल इमरान तथा उसकी मा नरगिस जमाल कुछ दिनों से बीमार थे। दोनों को बुखार आ रहा था। अपना इलाज दोनों ही स्थानीय चिकित्सक से करा रहे थे। मगर उनकी सेहत में कोई सुधार नहीं हुआ। तब दोनों को शहीद निर्मल महतो मेमोरियल मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया। बावजूद उनकी हालत बिगड़ती गई। उनको ऑक्सीजन भी लगाई गई मगर शाम चार बजे नरगिस जमाल की मौत हो गई। रात करीब नौ बजे इरफान ने भी दम तोड़ दिया। इमरान की पत्नी रो रोकर बेहाल है। उसका छह साल का बेटा व तीन साल की बेटी भी मां को रोते देख बिलख रहे हैं। इमरान के चाचा हाजी मुश्ताक अहमद सिद्दीकी ने बताया कि दोनों टाइफाइड के शिकार थे। इसी कारण उनकी जान चली गई।
गरीबी से न लड़ पाया दंपती, निकल गए प्राण
संवाद सहयोगी, कतरास : गुहीबांध टावर के पास किराये के मकान में रहता था यह बुजुर्ग दंपती। 90 साल के सहदेव राम व 85 साल की पत्नी मीना देवी। गरीबी तो इनका मुकद्दर ही बन गई थी। गुरुवार की शाम पहले सहदेव राम की मृत्यु हो गई। जीवन साथी ने साथ छोड़ा तो मीना पर दुख का ऐसा पहाड़ टूटा कि आधे घंटे बाद उसके भी प्राण निकल गए। पति के जाने का गम वह बर्दाश्त न कर सकी। दोनों अकेले ही रहते थे। वंश का भी कोई नहीं था। जो था सब मोहल्ले वाले ही थे। मोहल्ले के लोग उनके अंतिम संस्कार की तैयारी कर रहे हैं। स्थानीय लोगों ने बताया कि दोनों बेहद गरीब थे। बस उनकी किसी प्रकार जिंदगी चल रही थी। एक तो बुढ़ापा उसके बाद करीब ढाई माह से सहदेव को बीमारी ने जकड़ रखा था। शरीर भी जवाब दे चुका था। बेबस पत्नी मीना ही उसका सहारा बनी थी, मगर उसकी भी उम्र 85 वर्ष हो गई थी। वह तो अपने ही शरीर का ख्याल नहीं रख पाती थी। बावजूद पति की सेवा में हमेशा जुटी रहती थी। मोहल्ले के लोग कुछ मदद करते तो वह खुद जाकर दवा लाकर पति को देती थी। मगर उसे अस्पताल ले जाने की जरूरत थी। एक तो गरीबी दूसरे इन दिनों चल रही कोरोना की लहर, नतीजा वह उसे अस्पताल भी न ले जा सकी। आखिर कहां से ले जाती, अस्पताल में भी कौन इलाज करता। घर में बिस्तर पर सहदेव को कराहते देखती तो रो पड़ती। वह काफी कमजोर हो गई थी। सहदेव को वृद्धा पेंशन मिलती थी मगर हर माह भुगतान नहीं होता था। बस राशन कार्ड था, जो डूबते को तिनके का सहारा बना था। मकान मालिक ने बताया कि वे दोनों का ख्याल रखते थे, मकान का किराया नहीं लेते थे। दोनों एक दूसरे के सहारा थे। अंतिम समय भी साथ नहीं छोड़ा और एक के पीछे दूसरा भी मौत के सफर पर बढ़ गया।