बारूद की गंध के दिन गए, अब यहां फूलों की महक; पढ़ें रेड कॉरिडोर में बदलाव की कहानी
बोकारो के कसमार प्रखंड की हिसिम व मुरूरहुलसुदी पंचायत में नक्सलियों का प्रभाव दिखता था। ऊपर से जंगली जानवर व हाथियों का आतंक। पहले यहां के लोग पत्ते व लकड़ी बेचकर गुजारा करते थे। मगर अब इनकी जिंदगी में बदलाव आया है। यह फूलों की खेती से हुआ है।
बोकारो [ बीके पांडेय ]। झारखंड के बोकारो के कसमार प्रखंड की हिसिम व मुरूरहुलसुदी पंचायत के गांव महक रहे हैं। दरअसल यहां फूलों की खेती होती है। पश्चिम बंगाल की सीमा पर स्थित ये गांव पहाडिय़ों व जंगलों से घिरे हैं। इन पंचायतों में 15 टोले हैं। आबादी करीब छह हजार से अधिक। एक समय था जब यह इलाका रेड कॉरिडोर का हिस्सा था। इसे लालगढ़ (नक्सिलयों के प्रभाव वाला इलाका) कहा जाता था। बारूद की गंध तब अक्सर हवाओं में बसी रहती थी। अब यहां की फिजा बदल गई है।
15 से 20 हजार रुपये तक की कमाई करता एक परिवार
बोकारो के कसमार प्रखंड की हिसिम व मुरूरहुलसुदी पंचायत में नक्सलियों का प्रभाव दिखता था। ऊपर से जंगली जानवर व हाथियों का आतंक। पहले यहां के लोग पत्ते व लकड़ी बेचकर गुजारा करते थे। मगर अब इनकी जिंदगी में बदलाव आया है, यहां लोगों ने फूलों की खेती शुरू कर दी है। कई ने लॉकडाउन के दौरान इसकी खेती प्रारंभ की। करीब सौ परिवार यह खेती कर रहे हैं। फूलों के इस कारोबार से हर माह 15 से 20 हजार रुपये हर परिवार कमाता है। जबकि पहले चार-पांच हजार की बमुश्किल कमाई से चूल्हा जलता था।
अनलॉक में फिर से बही बयार
कुछ गांवों में महिला समूह तो कुछ इलाकों में पुरुष फूलों की खेती में जुटे हैं। लॉकडाउन का जब समय आया उस समय बाहर से फूलों की आवक कम हुई थी। कई ग्रामीणों ने इसे अवसर माना और इसकी खेती शुरू कर दी। उनका कहना है कि फूल बेचने के लिए हमें कहीं दूर जाना नहीं पड़ता है। खरीदार खुद आते हैं और फूलों की बड़ी खेप रजरप्पा मंदिर चली जाती है। वहां फूलों की बहुत खपत है। कुछ हिस्सा बोकारो फूल मंडी भी जाता है। फूलों की खेती से यहां 50 डिसमिल में खेती करने वाला एक किसान करीब 15 से 20 हजार रुपये तक मासिक आय कर ही लेता है। हालांकि इसके लिए ये हाड़तोड़ मेहनत करते हैं। इनका पसीना फूलों को महका देता है।
किसान लगुन किस्कू ने दी प्रेरणा तो गांव में आने लगी समृद्धि
कसमार प्रखंड के किसान लगुन किस्कू ने इस इलाके में सबसे पहले फूल की खेती की। चार वर्ष पहले रामगढ़ स्थित गोला के संग्रामपुर में वे अपनी मौसी के घर गए थे। यहां मौसेरे भाई अमीर हांसदा को फूलों की खेती करते देखा। उनकी आय अच्छी थी। बस उनसे खेती के तरीके व बाजार की जानकारी ली। भाई ने ही उनको पहली बार बीज व दवा दी। बस लौटकर उन्होंने भी यह खेती प्रारंभ की। इस काम में लगुन को अच्छी सफलता मिली। उन्होंने अन्य ग्रामीणों को इसकी खेती के लिए प्रेरित किया और अब कई किसान लगुन की राह पर चल पड़े हैं। आसपास जंगल है तो गुलदस्तों में लगने वाली सजावटी पत्तियों मसलन अशोक व फर्न का भी हम फूलों के साथ कारोबार किया जा रहा है।