यहां के लोग चट्टान पर सहेजते है हित-कुटुंब की यादें Dhanbad News

प्राचीन काल में मानव पत्थरों व चटटानों पर शिलालेखन किया करते थे। पत्थरों या गुफाओं की पत्थरीली दीवारों पर उकेरा गया लेखन आज भी देश-दुनिया के कई हिस्सा में सुरक्षित है। शिलालेख वर्षों-वर्ष तक ब‍िल्‍कुल सुरक्षित रहते हैं।

By Atul SinghEdited By: Publish:Sun, 16 May 2021 03:24 PM (IST) Updated:Sun, 16 May 2021 07:25 PM (IST)
यहां के लोग चट्टान पर सहेजते है हित-कुटुंब की यादें Dhanbad News
प्राचीन काल में मानव पत्थरों व चटटानों पर शिलालेखन किया करते थे। (जागरण)

श्रवण कुमार, मैथन: प्राचीन काल में मानव पत्थरों व चटटानों पर शिलालेखन किया करते थे। पत्थरों या गुफाओं की पत्थरीली दीवारों पर उकेरा गया लेखन आज भी देश-दुनिया के कई हिस्सा में  सुरक्षित है।  शिलालेख वर्षों-वर्ष तक सुरक्षित रहते हैं। धनबाद जिला मुख्यालय से  लगभग 30 किमी दूर कलियासोल प्रखंड के  सालुकचापड़ा गांव में पत्थरों  का ऐसा चटटान है जिसमें  हित-कुटुंब अपनी यादों को सहेज कर रखने के लिए पत्थरों पर अपना नाम लिख जाते हैं। गांव के हित-कुटुंब ( सगे संबंधी ) जब कभी सालुकचापड़ा अपने रिश्तेदार के यहां पहुंचते हैं तो गांव के बाहर पत्थरों के चटटान में अपना नाम खोदकर लिखना नहीं भूलते हैं ताकि जब कभी वो सालुकचापड़ा पहुंचे तो पत्थरों में उकेरा गया अपना नाम देख सकें। सालुकचापड़ा गांव के बाहर पत्थरनुमा चटटान पर देव दत्ता, असिम डे, पुषार, डी. सेन जैसे नाम लिखे हुए हैं। इस प्रकार के नाम पत्थर पर खोदकर लिखे गए हैं। हित कुटुंब ही नहीं सालुकचापड़ा के ग्रामीणों के नाम भी पत्थरों पर लिखे पड़े हैं। सालुकचापड़ा निवासी असिम डे ने 38 साल पहले वर्ष 1983 में पत्थरों पर बांग्ला भाषा में अपना नाम लिखा था। असिम बताते हैं, जब वह स्कूल में पढ़ते थे तब् उन्होंने याद के तौर पर अपना नाम पत्थर के ऊपर लिखा था। आज भी उनका नाम पत्थर के ऊपर लि खा हुआ दिखता है।  इसी तरह यहां चट्टानों पर कई ग्रामीणों और उनके सगे संबंधियों द्वारा लिखे गए नाम आज भी मौजूद है। 

पत्थर के चट्टानों को अवैध उत्खनन बचा कर रखे हुए ग्रामीण  

सालुकचापड़ा गांव के बाहर चट्टान नुमा पत्थरों की बहुत बड़ी श्रंखला सैकड़ों साल से मौजूद है। एक दशक पहले खनन करने वाले लोगों की नजर इन चट्टानों पर पड़ी थी। लेकिन ग्रामीणों ने उनकी मंशा पूरी नहीं होने दी। ग्रामीण वेणु माधव मुखर्जी बताते हैं, जब उन्हें पता चला कि सालुकचापड़ा गांव के बाहर से पत्थरों का खनन करना चाहते हैं तो ग्रामीणों ने एकजुट होकर विरोध किया और पत्थरों का खनन नहीं होने दिया। सालुकचापड़ा पत्थर हमारी यादों से जुड़ी हुई है। यह हमारे गांव का अभिन्न अंग है। इसे किसी भी हालत में खत्म नहीं होने देंगे। अगर सरकार व जिला प्रशासन ध्यान दे दो इस क्षेत्र को पर्यटन के रूप में भी विकसित किया जा सकता है। 

बरसात में पत्थरों के बीच उगता सालुक फूल

सालुकचपड़ा पत्थर की एक और खूबी है। ग्रामीण बताते हैं कि  बरसात के मौसम में सालुक पत्थर के बीच विशेष तरह का फूल उगता है। उसे सालुक फूल के नाम से भी जाना जाता है। पत्थरों के बीच छोटे-छोटे गड्ढे बने हुए हैं इन्हीं गड्ढों में सालुक फूल उगते हैं।

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