Elephant Corridor Jharkhand: झारखंड में डेढ़ दर्जन डीएफओ कर रहे हाथी कॉरीडोर की तलाश, केंद्र सरकार लेगा अंतिम निर्णय
जंगली हाथी सालों भर गिरिडीह धनबाद हजारीबाग बोकारो पूर्वी एवं पश्चिमी सिंहभूम जामताड़ा दुमका समेत लगभग पूरे झारखंड में उत्पात मचाते हैं। प्रत्येक साल दर्जनों लोगों को जंगली हाथी कुचलकर मार डालते हैं। जान-माल की भारी क्षति होती है।
गिरिडीह [ दिलीप सिन्हा ]। जंगली हाथियों को सुरक्षित रखने एवं उनसे इंसानों की जिंदगी व उनकी संपत्ति की रक्षा करने के लिए केंद्र सरकार झारखंड में हाथी कॉरिडोर बनाने की रूपरेखा तैयार कर रही है। गिरिडीह, धनबाद, हजारीबाग, बोकारो, पूर्वी एवं पश्चिमी सिंहभूम से लेकर संतालपरगना के डेढ़ दर्जन से अधिक डीएफओ को गहन अध्ययन कर इसकी पूरी रिपोर्ट तैयार करने का निर्देश केंद्र सरकार ने दिया है। सरकार के निर्देश पर ये सभी डीएफओ हाथियों के आने-जाने के रास्ते को चिह्नित कर रहे हैं। सभी डीएफओ की रिपोर्ट आने के बाद झारखंड में कहां-कहां हाथी कॉरिडोर बनाया जाए। इस पर केंद्र सरकार अंतिम निर्णय लेगी। लंबे समय से झारखंड में हाथी कॉरिडोर बनाने की मांग उठ रही है। पूर्व में भी प्रस्ताव भेजा गया था, जो फाइलों में ही सिमटकर रह गया। हाथी कॉरिडोर बने, इसके लिए अदालत का भी सरकार पर दबाव है।
झारखंड के एक दर्जन जिले हाथियों की आवाजाही से परेशान
जंगली हाथी सालों भर गिरिडीह, धनबाद, हजारीबाग, बोकारो, पूर्वी एवं पश्चिमी सिंहभूम, जामताड़ा, दुमका समेत लगभग पूरे झारखंड में उत्पात मचाते हैं। प्रत्येक साल दर्जनों लोगों को जंगली हाथी कुचलकर मार डालते हैं। जान-माल की भारी क्षति होती है। वन विभाग के पास लोगों को इस संकट से मुक्ति दिलाने का प्रबंध नहीं है। पश्चिम बंगाल के बाकुड़ा से विशेषज्ञों को बुलाकर हाथियों को एक जिले से खदेड़कर उन्हें दूसरे जिले में भेज दिया जाता है। यह क्रम सालभर चलता रहता है।
सात साल पहले भी भेजा था प्रस्ताव
एक जंगल से दूसरे जंगल हाथियों के सुरक्षित आने-जाने के लिए हाथी कॉरिडोर बनाया जाता है। देशभर के 22 राज्यों में 27 हाथी कॉरिडोर है। झारखंड में एक भी हाथी कॉरिडोर नहीं है। करीब सात साल पहले पारसनाथ पहाड़ और उससे सटे वन क्षेत्र को हाथियों का कॉरिडोर चिह्नित करते हुए राज्य मुख्यालय को प्रस्ताव भेजा गया था। आज तक उस प्रस्ताव पर कोई काम नहीं हुआ। इसके अलावा धनबाद जिले के टुडी में भी हाथी कॉरिडोर बनाने का प्रस्ताव था। इसके अलावा दुमका एवं पश्चिमी व पूर्वी ङ्क्षसहभूम में हाथी कॉरिडोर बनाने का प्रस्ताव भेजा गया था। यह प्रस्ताव फाइलों में ही सिमटकर रह गया।
दुमका से टुंडी होते हुए हजारीबाग तक जंगली हाथियों का होता है आना-जाना
संतालपरगना के मसलिया एवं मसानजोर जंगल में 25 जंगली हाथियों का एक दल है। हाथियों का यह दल दुमका, जामताड़ा होते हुए धनबाद जिले के टुंडी प्रखंड के जंगलों से पारसनाथ पहाड़ पहुंचता है। इसके बाद गिरिडीह जिले के पीरटांड़, डुमरी, बिरनी, सरिया होते हुए हजारीबाग तक जाता है। फिर उसी रास्ते से वापस मसलिया एवं मसानजोर जंगल लौटता है। साल भर 25 हाथियों का यह दल इस रास्ते पर आना-जाना करता है। रास्ते में गांवों में घुसकर फसलों एवं घरों को क्षतिग्रस्त कर देते हैं। प्रत्येक साल इस रास्ते में एक दर्जन से अधिक लोगों को हाथी कुचलकर मार डालते हैं। हाथियों का यह झुंड सबसे अधिक समय तक टुंडी के जंगलों व पहाड़ों में रहता है। सालभर में छह महीने यह झुंड टुंडी में रहता है।
बोकारो के डीएफओ सतीश चंद्र ने बताया कि इसके अलावा लुगु पहाड़ी से रामगढ़ इलाके में एक दर्जन जंगली हाथियों का साल भर आना-जाना होता है। इस इलाके में भी हाथी बराबर इंसानों को कुचलकर मार डालते हैं। उन्होंने बताया कि झारखंड में हाथियों की संख्या बढ़ रही है। नुकसान पहुंचाने के बावजूद झारखंड का आम आदमी धार्मिक आस्था के कारण हाथियों को नुकसान नहीं पहुंचाता है।
हाथी कॉरिडोर के लिए केंद्र सरकार ने सभी संबंधित वन प्रमंडल पदाधिकारियों से रिपोर्ट मांगी है। हाथियों के आने-जाने के रास्ते पर अध्ययन कर रिपोर्ट दी जा रही है। रिपोर्ट के आधार पर केंद्र सरकार आगे की रुपरेखा तय करेगी।
-संजीव कुमार, वन संरक्षक हजारीबाग