धनबाद में बनेगा अमर बलिदानी संग्रहालय; क्रांतिकारियों के जीवन से संबंधित पुस्तक व सामग्री होगी आकर्षण का केंद्र

आर्य समाज निरसा की ओर से शुक्रवार को महर्षि दयानंद सरस्वती के परम भक्त महान क्रांतिकारी पं. रामप्रसाद बिस्मिल के 125वीं जयन्ती वर्ष कोरोना काल को देखते हुए सभी कार्यकर्ता अपने अपने क्षेत्र में उनकी तस्वीर पर श्रद्धांजलि और शांति यज्ञ के जरिए मनाएंगे।

By Atul SinghEdited By: Publish:Thu, 10 Jun 2021 05:23 PM (IST) Updated:Thu, 10 Jun 2021 05:23 PM (IST)
धनबाद में बनेगा अमर बलिदानी संग्रहालय;  क्रांतिकारियों के जीवन से संबंधित पुस्तक व सामग्री होगी आकर्षण का केंद्र
सभी कार्यकर्ता अपने अपने क्षेत्र में उनकी तस्वीर पर श्रद्धांजलि और शांति यज्ञ के जरिए मनाएंगे। (जागरण)

धनबाद, जेएनएन : आर्य समाज निरसा की ओर से शुक्रवार को महर्षि दयानंद सरस्वती के परम भक्त महान क्रांतिकारी पं. रामप्रसाद बिस्मिल के 125वीं जयन्ती वर्ष कोरोना काल को देखते हुए सभी कार्यकर्ता अपने अपने क्षेत्र में उनकी तस्वीर पर श्रद्धांजलि और शांति यज्ञ के जरिए मनाएंगे।

दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा ने आर्य संदेश यूट्यूब चैनल और आर्य समाज निरसा के सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर शुक्रवार शाम सात बजे जयंती वर्ष कार्यक्रम प्रसारण किया जाएगा। हरहर आर्य ने बताया बहुत जल्द धनबाद जिले के अंतर्गत अमर बलिदानी संग्रहालय बनाया जाए। सभी क्रांतिकारी का जीवन से पुस्तक एवं अन्य सामग्री रखा जाएगा।

एचआरए झारखण्ड प्रदेश अध्यक्ष हरहर आर्य ने बताया राम प्रसाद 'बिस्मिल' (11जून 1897 से 19 दिसम्बर 1927) भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की क्रान्तिकारी धारा के एक प्रमुख सेनानी थे। 30 वर्ष की आयु में ब्रिटिश सरकार ने फाँसी दे दी। मैनपुरी षड्यन्त्र व काकोरी-काण्ड जैसी कई घटनाओं में शामिल थे। हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन के सदस्य भी थे। राम प्रसाद एक कवि, शायर, अनुवादक, बहुभाषाभाषी, इतिहासकार व साहित्यकार भी थे।

बिस्मिल उनका उर्दू तखल्लुस (उपनाम) था, जिसका हिन्दी में अर्थ होता है आत्मिक रूप से आहत। बिस्मिल के अतिरिक्त वे राम और अज्ञात के नाम से भी लेख व कवितायें लिखते थे। 11 जून 1897 को उत्तर प्रदेश के शाहजहाँपुर शहर के खिरनीबाग मुहल्ले में जन्मे रामप्रसाद अपने पिता मुरलीधर और माता मूलमती की दूसरी सन्तान थे। बालक की जन्म-कुण्डली व दोनों हाथ की दसो उँगलियों में चक्र के निशान देखकर एक ज्योतिषी ने भविष्यवाणी की थी - "यदि इस बालक का जीवन किसी प्रकार बचा रहा, यद्यपि सम्भावना बहुत कम है, तो इसे चक्रवर्ती सम्राट बनने से दुनिया की कोई भी ताकत रोक नहीं पाएगी। माता-पिता दोनों ही सिंह राशि के थे और बच्चा भी सिंह-शावक जैसा लगता था।

अतः ज्योतिषियों ने बहुत सोच विचार कर तुला राशि के नामाक्षर र पर नाम रखने का सुझाव दिया। माता-पिता दोनों ही राम के आराधक थे। इसलिए बालक का नाम रामप्रसाद रखा गया। माँ मूलमती तो सदैव यही कहती थीं कि उन्हें राम जैसा पुत्र चाहिये था। बालक को घर में सभी लोग प्यार से राम कहकर ही पुकारते थे। मुंशी इन्द्रजीत ने रामप्रसाद को आर्य समाज के सम्बन्ध में बताया और स्वामी दयानन्द सरस्वती की लिखी पुस्तक सत्यार्थ प्रकाश पढ़ने को दी। सत्यार्थ प्रकाश के गम्भीर अध्ययन से रामप्रसाद के जीवन पर आश्चर्यजनक प्रभाव पड़ा। 1915 में भाई परमानन्द की फाँसी का समाचार सुनकर रामप्रसाद ब्रिटिश साम्राज्य को समूल नष्ट करने की प्रतिज्ञा कर चुके थे। एक संगठन उन्होंने पं॰ गेंदालाल दीक्षित के मार्गदर्शन में मातृवेदी के नाम से खुद खड़ा कर लिया था। इस संगठन की ओर से एक इश्तिहार और एक प्रतिज्ञा भी प्रकाशित की गयी।

दल के लिये धन एकत्र करने के उद्देश्य से रामप्रसाद ने, जो अब तक 'बिस्मिल' के नाम से प्रसिद्ध हो चुके थे। जून 1918 में दो तथा सितम्बर 1918 में एक - कुल मिलाकर तीन डकैती भी डालीं। सोमवार 19 दिसम्बर 1927 को प्रात:काल छह बजकर 30 मिनट पर गोरखपुर की जिला जेल में उन्हें फाँसी दे दी गयी। बिस्मिल के बलिदान का समाचार सुनकर बहुत बड़ी संख्या में जनता जेल के फाटक पर एकत्र हो गयी। जेल का मुख्य द्वार बन्द ही रक्खा गया और फाँसीघर के सामने वाली दीवार को तोड़कर बिस्मिल का शव उनके परिजनों को सौंप दिया गया। शव को डेढ़ लाख लोगों ने जुलूस निकाल कर पूरे शहर में घुमाते हुए राप्ती नदी के किनारे राजघाट पर उसका अन्तिम संस्कार कर दिया।

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