UP-Bihar में गंगा में कोरोना संक्रमितों के शवों का खौफ पहुंचा झारखंड, मछलियों के नहीं मिल रहे भाव

झारखंड में सिर्फ साहिबगंज जिले से होकर गंगा गुजरती है। यहां मछुआरों का करीब 20 समूह साहिबगंज से लेकर राजमहल तक गंगा में नियमित रूप से मछली मारने का काम करता है। कुछ लोग व्यक्तिगत रूप से भी थोड़ा बहुत मछली मारते हैं।

By MritunjayEdited By: Publish:Mon, 17 May 2021 05:57 PM (IST) Updated:Tue, 18 May 2021 08:01 AM (IST)
UP-Bihar में गंगा में कोरोना संक्रमितों के शवों का खौफ पहुंचा झारखंड, मछलियों के नहीं मिल रहे भाव
साहिबगंज में गंगा से निकली बड़ी मछली दिखाता मछुआरा ( फोटो जागरण)।

साहिबगंज, जेएनएन। बिहार व उत्तर प्रदेश में गंगा नदी से कोरोना संक्रमितों का शव मिलने का खौफ पांच सौ-हजार  किलोमीटर दूर झारखंड के साहिबगंज में पहुंच गया है। साहिबगंज में गंगा से निकलने वाली मछलियों की मांग अचानक कम हो गई है। पहले की तरह मछलियों के खरीदार नहीं मिल रहे हैं। रेट भी कम हो गया है। सामान्य दिनों में 200 रुपये प्रति किलो बिकनेवाली बड़ी मछली इन दिनों 150 रुपये तो 150 रुपये प्रति किलो बिकने वाली मछली 110 रुपये प्रति किलो बिक रही है। इस वजह से कई मछुआरों ने मछली मारना भी छोड़ दिया है। संक्रमण का खौफ इस कदर है कि नियमित रूप से गंगा नहानेवाले कुछ लोगों ने इन दिनों उधर का रुख करना छोड़ दिया है। 

साहिबंगज में मछुआरों का 20 समूह

झारखंड में सिर्फ साहिबगंज जिले से होकर गंगा गुजरती है। यहां मछुआरों का करीब 20 समूह साहिबगंज से लेकर राजमहल तक गंगा में नियमित रूप से मछली मारने का काम करता है। कुछ लोग व्यक्तिगत रूप से भी थोड़ा बहुत मछली मारते हैं। मार्च-अप्रैल तक 15-20 क्विंटल मछली प्रतिदिन गंगा से निकाली जाती थी लेकिन इन दिनों वह घटकर चार-पांच क्विंटल पर आ गई है। वैसे मई से जुलाई तक का महीना मछलियों के प्रजनन का होता है। इसलिए इस अवधि में गंगा में बड़ा जाल लगाने पर रोक भी रहती है। मछुआरे छोटे-छोटे जाल से मछली मारते थे लेकिन मांग में कमी आने से मछुआरों ने कई मछुआरों ने मछली मारना छोड़ दिया है। शुक्रवार को राजमहल में काली घाट पर एक शव होने की सूचना पर गंगा नहाने गए कई लोग बिना नहाए लौट गए थे। बाद में थाना प्रभारी ने जाकर जांच-पड़ताल की तो वह एक मवेशी का निकला।

गंगा में मिलनेवाली मछलियां

साहिबगंज से बहनेवाली गंगा नदी में छोटी मछलियों में चपरी, फसवा, सुतरी, कौआलोली, चन्ना, पिहोरा, पतला, छोटी झींगा व बड़ी मछलियों में रोहू, कतला, मिरगल, बोआरी, फल्ली, टेंगरा आदि मिलती है। फरक्का से आगे बढ़ने पर बड़ी झींगा मिलती है।

गंगा की मछलियों की डिमांड इन दिनों घट गई है। खरीदार तालाब की मछलियों की खोज कर रहे हैं। डिमांड घटने की वजह से कई मछुआरों ने गंगा में जाल गिराना भी छोड़ दिया है। कुछ दिन पूर्व तक जिले में 15-20 क्विंटल मछली प्रतिदिन गंगा से निकाली जाती थी और वह तुरंत बिक जाती थी। फिलहाल चार-पांच क्विंटल से अधिक नहीं निकलती है।

-अरुण कुमार चौधरी, निदेशक, झासकोफिश रांची सह अध्यक्ष मछुआ साेसाइटी साहिबगंज

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