Oxygen Crisis के बीच सिंफर की पहल; तकनीक का लें सहारा, प्राणवायु की नहीं होगी कमी

Oxygen Crisis कोरोना वायरस के कहर के कारण देश में ऑक्सीजन का संकट खड़ा हो गया है। कोरोरा मरीजों के लिए ऑक्सीजन की बढ़ती मांग से संकट गहरा गया है। इसके समाधान के लिए सिंफर निदेशक ने झारखंड के मुख्य सचिव को पत्र लिखा है।

By MritunjayEdited By: Publish:Fri, 23 Apr 2021 08:56 AM (IST) Updated:Fri, 23 Apr 2021 09:04 AM (IST)
Oxygen Crisis के बीच सिंफर की पहल; तकनीक का लें सहारा, प्राणवायु की नहीं होगी कमी
देश में ऑक्सीजन के लिए हाहाकार ( फाइल फोटो)।

धनबाद [ तापस बनर्जी ]। विज्ञानियों ने ऐसी तकनीक विकसित की है जिससे हवा से ऑक्सीजन लेकर न सिर्फ उसे समृद्ध किया जा सकता है, बल्कि हर मिनट 500 लीटर ऑक्सीजन तैयार किया जा सकता है। प्रक्रिया आसान है और इससे तीन सप्ताह में ऑक्सीजन प्लांट विकसित कर सकते हैं। अगर 2500 लीटर प्रति मिनट ऑक्सीजन की जरूरत है तो एक स्थान पर पांच छोटे-छोटे प्लांट लगाए जा सकते हैं। अस्पतालों में फेब्रिकेटर के माध्यम से प्लांट लगाया जा सकता है। आइओटी आधारित होने से कितना उत्पादन हो रहा है इसकी निगरानी ऑनलाइन भी की जा सकेगी।

कोरोना की दूसरी लहर से जंग लडऩे को न सिर्फ ऑक्सीजन प्लांट बल्कि कई अन्य तकनीक भी विकसित की गई हैं। वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआइआर) की अलग-अलग इकाईयों में विकसित मानव उपयोगी तकनीकों को अपना कर राज्य में बढ़ते संक्रमण को नियंत्रित करने का कारगर प्रयास मुमकिन है। इसे लेकर धनबाद में स्थित केंद्रीय खनन एवं ईंधन अनुसंधान संस्थान (CIMFR) के निदेशक डॉ. प्रदीप कुमार सिंह ने झारखंड के मुख्य सचिव को पत्र लिखा है। निदेशक ने कहा है कि राज्य में कोरोना के मौजूदा हालात के मद्देनजर सीएसआइआर की तकनीकों को तत्काल उपयोग में लाया जाना कोरोना की रोकथाम के लिए अहम है। इन तकनीकों के लिए भी विज्ञानी तैयार आरटीपी mसीआर के विकल्प के तौर पर अपनाया जाएं फेलुदा टेस्ट: कोरोना टेस्ट के लिए आरटीपीसीआर के विकल्प के तौर पर फेलुदा टेस्ट को अपनाया जा सकता है। कई बार पाया जा रहा है कि आरटीपीसीआर टेस्ट में निगेटिव आने के बाद भी मरीज के शरीर में पॉजिटिव जैसे लक्षण दिख रहे हैं। जहां जटिल लक्षण वाले मरीजों के लिए आरटीपीसीआर उपलब्ध नहीं हैं वहां तेजी से पहचान के लिए फेलुदा प्लेटफॉर्म के टाटा-एमडी चेक का इस्तेमाल किया जा सकता है। ड्राई स्वॉब तकनीक देने को भी सीएसआइआर तैयार: आरटीपीसीआर के लिए ड्राई स्वॉब तकनीक भी विकसित की गई है जो आइसीएमआर से स्वीकृत है। विज्ञानियों की यह तकनीक ड्राई स्वॉब लेने की निदान विधि है। इससे बगैर आरएनए को अलग किए मरीजों का सीधे आरटीपीसीआर किया जा सकता है। रैपिड हॉस्पिटल बनाकर सौंपने को भी विज्ञानी तैयार:  बेड की कमी पूरी करने के लिए अगर जरूरत हो तो रैपिड हॉस्पिटल विकसित किया जा सकता है। जम्मू और हिमाचल प्रदेश में ऐसे हॉस्पिटल बनाए गए हैं। रैपिड हॉस्पिटल मॉड्यूलर होंगे और छोटे आकार के हॉस्पिटल कुछ घंटों में तैयार हो जाएंगे। नई तकनीक वाला वेंटिलेट: कोरोना के मरीजों को वेंटिलेटर पर रखने की भी जरूरत होती है। इसके लिए किफायती वेंटिलेटर भी विकसित किया गया है। स्वस्थ वायु नॉन इंवेसिव बीपैप वेंटिलेशन डिवाइस अस्पताल, डिस्पेंसरी और वार्ड में आसानी से इस्तेमाल किए जा सकते हैं। जरूरी होने पर इस डिवाइस से मरीज की 35 फीसद तक ऑक्सीजन की आवश्यकता पूरी की जा सकती है।

कोरोना के बिगड़ते हालात से जूझने के लिए विज्ञानी तैयार हैं। देशभर की अलग-अलग शोध इकाईयों ने कई तकनीक विकसित की हैं। राज्य प्रशासन को पत्र के माध्यम से उपलब्ध तकनीकों की जानकारी दी गई है। जिस तकनीक की आवश्यकता है, उसे संबंधित इकाई को सूचित कर तुरंत उपलब्ध कराया जाएगा।

- प्रदीप कुमार सिंह, निदेशक, सिंफर, धनबाद। 

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