शहीद शक्तिनाथ की स्मृति में 42 वर्षों से लगातार आयोजित होने वाले मेले पर कोरोना का ग्रहण

शहीद शक्तिनाथ की स्मृति में टाटा सिजुआ 12 नंबर स्थित समाधी स्थल पर बीते 42 वर्षों से लगातार आयोजित होने वाला नौ दिवसीय मेला व सांस्कृतिक कार्यक्रम का परंपरा इस बार टूट जाएगा। कोरोना काल की वजह से मेला

By Atul SinghEdited By: Publish:Thu, 26 Nov 2020 06:00 PM (IST) Updated:Thu, 26 Nov 2020 06:00 PM (IST)
शहीद शक्तिनाथ की स्मृति में  42 वर्षों से लगातार आयोजित होने वाले मेले पर कोरोना का ग्रहण
शहीद शक्तिनाथ की टाटा सिजुआ 12 नंबर स्थित समाधी स्थल

सिजुआ, जेएनएन : शहीद शक्तिनाथ की स्मृति में टाटा सिजुआ 12 नंबर स्थित समाधी स्थल पर बीते 42 वर्षों से लगातार आयोजित होने वाला नौ दिवसीय मेला व सांस्कृतिक कार्यक्रम का परंपरा इस बार टूट जाएगा। कोरोना काल की वजह से मेला व सांस्कृतिक कार्यक्रमों के आयोजन नहीं करने का निर्णय बीते दिनों मेला कमेटी व ग्रामीणों की हुई बैठक में लिया गया था।‌ 28 नवंबर को शहादत दिवस पर शहीद के आदमकद प्रतिमा पर परिजन, विभिन्न राजनीतिक व सामाजिक संगठन, छात्र व बुद्धिजीवी श्रद्धांजलि अर्पित करेंगे।

कौन थे शक्तिनाथ महतो: सामाजिक कुरीतियों को दूर करने तथा सूदखोरों के आतंक से गरीब, असहाय को मुक्त कराते हुए अपने प्राणों की आहुति देने वाले शक्तिनाथ महतो का जन्म दो अगस्त 1948 को तेतुलमुड़ी बस्ती में हुआ था। शक्ति के पिता गणेश महतो किसान थे। जबकि मां सधुवा देवी गृहणी। गांधी स्मारक उच्च विद्यालय सिजुआ से मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद शक्ति ने आइटीआइ धनबाद में दाखिला लिया। कुमारधुबी में फीटर ट्रेड का प्रशिक्षण प्राप्त कर मुनीडीह प्रोजेक्ट में योगदान दिया।

धनबाद के विकास में योगदान: कोलियरी क्षेत्र में मजदूरों को सूदखोरों के चंगुल से आजाद कराने तथा न्यूनतम मजदूरी दिलाने के लिए शक्ति ने आंदोलन का बिगुल फूंक दिया। इस बीच वह विनोद बिहारी महतो के संपर्क में आए और 21 जनवरी 1971 को शिवाजी समाज की जोगता थाना कमेटी का गठन किया गया। कमेटी में शक्ति को मंत्री बनाया गया। उन्होंने बाल विवाह, दहेज प्रथा, नशा उन्मूलन के खिलाफ मुहिम छेड़ दी। समाज के लोगों को शिक्षित करने के उद्देश्य से रात्रि पाठशाला का शुभारंभ किया। इस अभियान का असर भेलाटांड, कपुरिया, परसिया, पुटकी, धोबनी, चीरूडीह, कारीटांड, बलिहारी से राजगंज-तोपचांची तक पड़ा। आपातकाल के दौरान शक्ति 22 माह तक धनबाद, भागलपुर तथा मुजफ्फरपुर के जेलों में बंद रहे। शोषण, अन्याय व अत्याचार के खिलाफ चलाए जा रहे आंदोलन को कुचलने के लिए माफिया तत्वों ने उनकी हत्या की साजिश रची। 22 म ई 1975 को कारीटांड में हुई बैठक के बाद शक्ति की हत्या की कोशिश की गई। रात गांव में ही बिताने के कारण अपराधियों के कहर से वे तो बच गए, लेकिन उनके तीन साथी को मौत के घाट उतार दिया गया। 28 नवंबर 1977 का दिन कोयलांचल के लिए काला दिन साबित हुआ और सिजुआ में गोली व बम मारकर आंदोलनों के प्रणेता शक्तिनाथ की निर्मम हत्या कर दी गई।

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